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Hindi News भारत राष्ट्रीय IPS में हुआ सेलेक्शन, लेकिन बंगाल के अकाल ने बदला जीवन, पढ़ें हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन की कहानी

IPS में हुआ सेलेक्शन, लेकिन बंगाल के अकाल ने बदला जीवन, पढ़ें हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन की कहानी

जब भारत अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था और भारत में अनाज का संकट और भूखमरी जैसे हालत बन रहे थे, उस दौरान एमएस स्वामीनाथन ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने का काम किया। एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक भी कहा जाता है।

Who is ms swaminathan father of green revolution in india history behind this story- India TV Hindi Image Source : PTI एमएस स्वामीनाथन

Who is MS Swaminathan: भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की 98 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। तमिलनाडु में उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल बिताए। बता दें कि उनका पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथ था। 7 अगस्त 1925 को तंजावुर में जन्में स्वामीनाथन को भारतीय हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है। स्वामीनाथन ने तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेजे जूलॉजी की पढ़ाई की थी। इसके बाद उन्होंने कोयंबटूर कृषि महाविद्यालय से कृषि विज्ञान में बीएससी की डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने साल 1988 में एमएस स्वामीनाथ रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना चेन्नई में की। इस संस्थान के वे संस्थापक अध्यक्ष, एमेरिटस अध्यक्ष और मुख्य संरक्षक थे। 

स्वामीनाथन की स्कूली शिक्षा

7 अगस्त 1925 को एमएस स्वामीनाथन का जन्म एक सर्जन एणके संबासिवन और पार्वती थंगम्मल के घर हुआ था। उन्होंने कुंभकोणम से ही अपनी स्कूली शिक्षा को पूरी की। स्वामीनाथन को कृषि विज्ञान में गहरी रूची थी। वे स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल रहे और महात्मा गांधी से वे काफी प्रेरित थे। महात्मा गांधी के प्रभाव ने एमएस स्वामीनाथन को कृषि के क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया, लेकिन इससे पहले वह पुलिस विभाग में नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रयास कर रहे थे। साल 1940 के अंत तक स्वामीनाथन ने पुलिस सेवा के लिए योग्यता हासिल कर ली। तब तक, उन्होंने दो स्नातक की डिग्रियां प्राप्त कर ली थी। इसमें से एक कृषि महाविद्यालय (तमिलनाडु कृषि महाविद्यालय) से संबंधित था। 

एमएस स्वामीनाथन का योगदान

एमएस स्वामीनाथन ने हरित क्रांत को सफल बनाने के लिए दो कृषि मंत्रियों सी. सुब्रमण्यम (1964-67) और जगजीवन राम (1967-70 और 1974-77) के साथ मिलकर काफी समय तक काम किया। इस दौरान उन्होंने देश में कई कृषि संबधित नियमों को लागू कराने का काम किया। साथ ही रसायनिक-जैविक प्रौद्योगिकी के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा गेहूं और चावल तथा अन्य अनाजों में बढ़ोत्तरी की दिशा में काम किया। बता दें कि साल 1970 के नोबेल पुरस्कार विजेता और मशहूर अमेरिका कृषि वैज्ञानिका नॉर्मन बोरलाग की गेहूं पर खोज ने इस संबंध में एक अहम भूमिका निभाई थी। 

आईपीएस छोड़कर करने लगे खेती-किसानी

एमएस स्वामीनाथन के पिता की मौत हो चुकी थी। उनके पिता का सपना था कि स्वामीनाथन मेडिकल की पढ़ाई करें। अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए एमएस स्वामीनाथन ने मेडिकल की पढ़ाई शुरू कर दी। इस दौरान साल 1943 में पश्चिम बंगाल में भीषण अकाल पड़ा। इस अकाल में हजारों की संख्या में लोगों की सड़कों पर मौत हो गई थी। भूखमरी का इस नजारे ने स्वामीनाथन को अंदर से झंकझोर दिया। देश में फैले इस अकाल को खत्म करने के लिए उन्होंने कृषि महाविद्यालय में दाखिल लिया। दिल्ली के इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट से पोस्ट ग्रैजुएशन की डिग्री लेने के बाद उन्होंने यूपीएससी परीक्षा में भाग लिया और उनका सेलेक्शन हो गया। उन्हें बतौर आईपीएस चुना गया था, लेकिन इस बीच उन्हें यूनेस्कों की एग्रीकल्चर रिसर्च फेलोशिप मिली। इस दौरान उन्होंने अकाल को खत्म करने के लिए अहम कदम उठाया और अपनी आईपीएस की नौकरी छोड़ दी और खेती-किसानी की तरफ मुड़ गए। 

इसके बाद वे नीदरलैंड के इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स पहुंचे। वे यही नहीं रूके, क्योंकि नीदरलैंड के बाद वो कैम्ब्रिज स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर के प्लांट ब्रीडंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करने के लिए पहुंचे थे। भारत लौटने के बाद 1972 में उन्हें इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट का डायरेक्टर बनाया गया। इसके बाद भारत में उन्होंने गेंहू के ऐसे बीजों की बुआई की जिससे उपज अच्छी मात्रा में होने लगी। साथ ही फसलों में उर्वरक, ट्रैक्टर और कीटनाशक के इस्तेमाल का चलन भी उन्होंने शुरू किया। इसके नतीजे चौंकाने वाले थे। दरअसल कुछ ही समय बात देश में गेहूं की पैदावार इतनी हो गई कि देश के 70 फीसदी हिस्से की जरूरतों को आसानी से पूरा किया जा सकता था। इस तरह गेहूं की तंगी को उन्होंने खत्म करने का काम किया, जिससे गेंहू के आयात में भी कमी आई। 

एमएस स्वामीनाथन आयोग

बता दें कि कई बार राजनीतिक दलों द्वारा किसानों से जुड़े मुद्दे पर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट का हवाला दिया जाता है। उस स्वामीनाथन आयोग के अध्यक्ष खुद एमएस स्वामीनाथन थे, जिसका गठन केंद्र सरकार ने 18 नवंबर 2004 को किया था। इस आयोग ने केंद्र सरकार से कुछ सिफारिशें की थीं, जिन्हें अबतक लागू नहीं किया जा सका है। इस आयोग ने किसानों के फसल की कीमत, उच्च गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराने, महिला किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड, किसानों में खेती को लेकर जागरुकता फैलना, ज्ञान चौपाल का आयोजन, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने जैसी कई सिफारिशें की थी।

 

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