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Year Ender 2021: सुर्खियों में रहा किसान आंदोलन, जानिए कैसे झुकी सरकार और खत्म हुए तीनों कृषि कानून

तीनों कानूनों के खिलाफ यूं तो आंदोलन की शुरुआत 2020 में हो गई थी। वर्ष 2021 से पहले ही किसान दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाल चुके थे। सरकार की ओर से भी बातचीत की पहल चल रही थी।

Year Ender 2021: सुर्खियों में रहा किसान आंदोलन, जानिए कैसे झुकी सरकार और खत्म हुए तीनों कृषि कानून- India TV Hindi Image Source : PTI Year Ender 2021: सुर्खियों में रहा किसान आंदोलन, जानिए कैसे झुकी सरकार और खत्म हुए तीनों कृषि कानून

Highlights

  • 26 जनवरी 2021 को किसानों की ट्रैक्टर रैली, लाल किला मार्च
  • 19 नवंबर 2021को पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानून रद्द करने का ऐलान किया
  • 29 नवंबर 2021 को संसद से तीनों कृषि कानून वापसी का बिल पारित हुआ

नयी दिल्ली: वर्ष 2021 में किसान आंदोलन ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं। इस आंदोलन में मुख्य तौर पर तीन राज्य पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान ही शामिल रहे लेकिन यह देशभर के किसानों के संघर्ष का प्रतीक बन गया था। केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में धीरे-धीरे इस आंदोलन को देशभर से लोगों का समर्थन मिलने लगा। हालांकि इस आंदोलन का विवादों से भी खूब नाता रहा। तरह-तरह के विवादों के बीच भी यह आंदोलन जारी रहा। करीब 380 दिनों तक चले इस आंदोलन के दौरान इसके नायकों ने संयुक्त किसान मोर्चा की छत्रछाया में संगठित होकर इसे आगे बढ़ाया और सरकार को अपनी मांगों के आगे घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। 

तीनों कृषि कानून 17 सितंबर 2020 को संसद से पास हुए थे। केंद्र सरकार के इन कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन की शुरुआत हुई थी। ये तीन कानून निम्नलिखित थे।

  1.  आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020-इसमें किसानों को अपने मन के मुताबिक अपनी फसल बेचने की सुविधा दी गई थी। 
  2.  कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020-इसके तहत देशभर में कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग के लेकर प्रावधान किए गए थे
  3.  कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020-इसमें खाद्य तेल, दाल, प्याज, तिलहन और आलू जैसी आवश्यक वस्तुओं को स्टॉक लिमिट को हटा लिया गया था।

26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले पर दूसरा झंडा लगाया
इन तीनों कानूनों के खिलाफ यूं तो आंदोलन की शुरुआत 2020 में हो गई थी। वर्ष 2021 से पहले ही किसान दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाल चुके थे। सरकार की ओर से भी बातचीत की पहल चल रही थी लेकिन 26 जनवरी को हुई ट्रैक्टर रैली और लाल किले पर तिरंगा उतारकर दूसरा झंडा लहराने की घटना ने इस आंदोलन पर एक बदनुमा दाग लगा दिया। इससे आंदोलन विवादों में घिर गया। हालांकि बाद में संयुक्त किसान मोर्चा ने इस घटना की निंदा की और कहा कि कुछ लोगों ने आंदोलन को बदनाम करने के लिए लाल किले की घटना को अंजाम दिया। 

Image Source : AP26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले पहुंचकर प्रदर्शनकारियों ने तिरंगे की जगह दूसरा झंडा लगाया

सरकार से बातचीत के दौरान मांगों पर अड़े रहे किसान
सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही। किसान अपनी जिद पर अड़े रहे और तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने से कम पर कोई भी बात मानने को तैयार नहीं हुए। किसान संगठनों का कहना था कि तीने कृषि कानूनों के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घराने के हाथों में चला जाएगा। इससे किसानों को बड़ा नुकसान होगा। इस कानून में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया था कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। ऐसे में हो सकता था कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने के लिए मजबूर करें। एक और बात जिस पर किसान संगठन विरोध कर रहे थे वह यह कि  सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है, लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वे सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें। 

पीएम मोदी ने किया कानून वापसी का ऐलान
बातचीत के दौरान सरकार किसानों के हिसाब से संशोधन के लिए तैयार थी लेकिन किसानों ने सरकार की कोई शर्त नहीं मानी और तीनों कृषि कानूनों की वापसी पर अड़े रहे। अंतत: किसानों की जिद के आगे सरकार को झुकना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को गुरु पूर्णिमा के दिन देश को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया और कहा कि हमने किसानों को अपनी बात समझाने की पूरी कोशिश की लेकिन उन्हें समझा नहीं पाए। इसलिए उनकी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला लिया है।

लखीमपुर खीरी में किसानों को जीप से कुचला
हालांकि 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह मंत्री अजय मिश्रा टेनी की यात्रा का विरोध कर रहे किसानों पर जीप चढ़ाने की घटना ने किसानों के अंदर गुस्से को और हवा दे दी। जीप से कुचलकर चार किसानों की मौत हो गई जबकि चार लोग बाद की हिंसा में मारे गए। इस घटना के बाद सरकार पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के इस्तीफे का दबाव भी बढ़ने लगा था। इस मामले में केंद्रीय राज्य मंत्री के बेटे समेत अन्य आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 

पांच राज्यों में हार के डर से झुकी सरकार?
हालांकि सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर रही कि अगर सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती तो आनेवाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता था। वर्ष 2022 के शुरुआती महीनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा के चुनाव होनेवाले हैं। जानकारों का मानना है कि किसान आंदोलन के साये में अगर ये चुनाव होते तो खासतौर पर बीजेपी को इन राज्यों में मुंह की खानी पड़ती। इसी आकलन के मद्देनजर सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया। यानी विधानसभा चुनावों में हार के डर से सरकार ने यह फैसला लिया। हालांकि किसानों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी पर समिति का गठन, आंदोलन के दौरान किसानों पर हुए मुकदमों की वापसी, मारे गए लोगों के परिजनों को आर्थिक सहायता जैसे मुद्दे अभी बाकी हैं। 

Image Source : PTIYear Ender 2021: सुर्खियों में रहा किसान आंदोलन, जानिए कैसे झुकी सरकार और खत्म हुए तीनों कृषि कानून  

किसान आंदोलन-इस साल का अहम घटनाक्रम

  • 7 जनवरी 2021-  सुप्रीम कोर्ट में तीनों कृषि कानून को लेकर याचिका दाखिल
  • जनवरी 2021- सुप्री कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी बनाई 
  • 26 जनवरी 2021- किसानों की ट्रैक्टर रैली, लाल किला मार्च
  • 6 फरवरी 2021- किसानों का चक्का जाम
  • 20 मार्च 2021- एक्सपर्ट कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी
  • जुलाई 2021- किसान संसद की शुरुआत, जंतर-मंतर पर किसान संसद का आयोजन
  • 19 नवंबर 2021- तीनों कृषि कानून रद्द, पीएम मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में किया ऐलान
  • 29 नवंबर 2021-लोकसभा और राज्यसभा में तीनों कृषि कानून वापसी बिल पारित 
  • 11 दिसंबर 2021- दिल्ली बॉर्डर से टेंट उखड़े, किसानों की घर वापसी

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