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Hindi News भारत राजनीति आधी रात को कैसे लगा आपातकाल? इंदिरा की इमरजेंसी की 20 कहानियां

आधी रात को कैसे लगा आपातकाल? इंदिरा की इमरजेंसी की 20 कहानियां

अपने उस रेडियो संदेश में इंदिरा गांधी भले ही देशवासियों से आतंकित नहीं होने को कह रही थी लेकिन इमरजेंसी के दौरान हिंदुस्तान में जो भी हुआ वो सियासी आतंक का पर्याय बनता चला गया। देश के बिगड़े अंदरूनी हालात का हवाला देकर वो सब कुछ हुआ जिसने आपातकाल को हिंदुस्तान के इतिहास का काला अध्याय बना डाला।

आधी रात को कैसे लगा आपातकाल?, इंदिरा की इमरजेंसी की 20 कहानियां

11. इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ शंकर रे को लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के पास गईं। तब इंदिरा का मकसद राष्ट्रपति को इमरजेंसी वाले फैसले को अवगत कराना था। राष्ट्रपति को इसके लिए राजी करा कर इंदिरा वापस लौट आईं। फिर इमरजेंसी के अंतिम मसौदे को लेकर इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर के धवन राष्ट्रपति के पास गए। कहते हैं राष्ट्रपति नींद से जागकर आधी रात के वक्त इमरजेंसी के मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए।

12. देश में इमरजेंसी क्या लगी जैसे सरकार को संविधान के साथ मनमानी करने का वीटो मिल गया। इमरजेंसी के दौरान संविधान और कानून को जम कर तोड़ा-मरोड़ा गया। इंदिरा गांधी को सबसे पहले राजनारायण के मुकदमे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले का तोड़ खोजना था इसलिए इन फैसलों को पलटने वाला कानून लाया गया। संविधान में संशोधन कर इस बात की कोशिश की गई कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष पर ताउम्र कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इस संशोधन को राज्यसभा ने पारित भी कर दिया लेकिन इसे लोकसभा में पेश नहीं किया गया।

13. इमरजेंसी के बहुत बाद अपने एक एक इंटरव्यू में इंदिरा गांधी ने कहा था कि उन्हें लगता था कि भारत को शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत है लेकिन कहा जाता है कि इस शॉक ट्रीटमेंट की प्लानिंग 25 जून से 6 महीने पहले ही बन चुकी थी। 8 जनवरी 1975 को सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा को एक चिट्ठी में आपातकाल का पूरा प्लान लिख भेजा था। चिट्ठी के मुताबिक ये योजना तत्कालीन कानून मंत्री एच आर गोखले, कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ और बांबे कांग्रेस के अध्यक्ष रजनी पटेल के साथ उनकी बैठक में बनी थी। हालांकि शुरू में इसे इंदिरा ने एक सिरे से खारिज कर दिया था लेकिन अपने खिलाफ लागातर बदलते हालात और सत्ता की लालच के हाथो मजबूर होकर इमरजेंसी लगाने का फैसला कर लिया।

14. कहा जाता है कि इमरजेंसी के दौरान भले ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर इंदिरा आसीन थी लेकिन फैसले की लंबी फेहरिस्त संजय गांधी की हुआ करती थी। संजय के कई फैसले ऐसे भी होते थे जिसके बारे में इंदिरा गांधी तक को जानकारी नहीं होती थी। संजय ने तब समाज का आइना कहे जाने वाले सिनेमा तक को नहीं बख्सा था। संजय गांधी के चहेते और तबके सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने तो मशहूर गायक किशोर कुमार के गानों को आकाशवाणी पर बैन कर दिया था। यहां तक कि उनके घर पर इनकम टैक्स के छापे डलवाए गए। वजह सिर्फ इतनी थी कि किशोर कुमार ने संजय गांधी के एक कार्यक्रम में गाना गाने से इनकार कर दिया था।

15. इमरजेंसी के दौरान फिल्मों की सेंसरशिप भी इतनी सख्त हो गई थी कि थिएटर के परदे पर पहुंचने से पहले फिल्मों को सरकार की मंजूरी लेनी पड़ती थी। इसी दौर में गुलजार की फिल्म आंधी पर भी बैन लगा दिया गया। कहा जाता है कि आंधी फिल्म की नायिका सुचित्रा सेन का किरदार इंदिरा गांधी से मिलजा जुलता था और आरती देवी के किरदार के चलते इंदिरा गांधी की गलत तस्वीर पेश होती है।

16. आपातकाल के दौरान किस्सा कुर्सी का नाम की फिल्म की प्रिंट तक जला दी गई। कहा जाता है प्रिंट जलाने का काम संजय गांधी के इशारे पर किया गया था। फ़िल्म किस्सा कुर्सी का जनता पार्टी सांसद अमृत नाहटा ने बनाई थी। प्रिंट की खोज के लिए कई स्थानों पर छापे डाले गए। अमृत नाहटा को जमकर प्रताड़ित किया गया। इसकी वजह ये थी कि ये फिल्म संजय गांधी पर बनाई गई पॉलिटिकल स्पूफ थी। आगे चल कर 1978 में इसे दोबारा बनाया गया और इमरजेंसी के बाद बने शाह कमीशन ने संजय गांधी को फिल्म के प्रिंट जलाने के मामले में दोषी पाया और कोर्ट ने उन्हें जेल भेज दिया लेकिन बाद में फैसला पलट दिया गया।

17. इमरजेंसी के बाद साल 1978 में नसबंदी नाम से फिल्मकार आई एस जौहर की फिल्म आई। ये इत्तेफ़ाक़ था या फिर सोचा समझा कदम लेकिन फिल्म के इस गीत को उसी किशोर कुमार की आवाज में रिकॉर्ड किया गया जिनके गानों को रेडियो पर बैन कर दिया था।

18. नसबंदी फ़िल्म संजय गांधी के नसबंदी कार्यक्रम का स्पूफ़ था जिसमें उस दौर के बड़े सितारों के डुप्लिकेटों ने काम किया था। फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह से नसंबदी के लिए ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पकड़ा गया। इमरजेंसी और नसबंदी पर तंज़ भरे बोल वाले इस गीत को हुल्लड़ मुरादीबादी ने लिखा था।

19. जून 1976 में इंदिरा गांधी के करीबियों ने उन्हें ये मशविरा दिया कि लोकसभा की मियाद 5 साल से बढ़ा कर 6 साल कर देना चाहिए और इमरजेंसी लागू रहे लेकिन कहते हैं कि 19 महीने के आपातकाल के बाद उन्हें अपनी गलती और लोगों के गुस्से का अंदाजा हो चला था। 18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। इंदिरा गांधी आपातकाल के जरिए जिस विरोध को शांत करना चाहती थीं, उसी ने 21 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया। इमरजेंसी के बाद अपने एक इंटरव्यू में इंदिरा गांधी ने कहा था कि आपातकाल लगने पर विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके थे।

20. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी को करारा शिकस्त मिला। खुद तो हारी हीं बेटे संजय गांधी भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। 22 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की मिली जुली सरकार बनी और आपातकाल का अंत हो गया लेकिन अपने पीछे जुल्म और सितम की अंतहीन कहानियां छोड़ गया जो आजाद हिंदुस्तान के लोकतंत्र पर किसी बदनुमा दाग से कम नहीं हैं।

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