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Blog: 'जंगल राज' के प्रतीक न बन जाएं लालू यादव के दोनों बेटे

बहुमुखी व्यक्तित्व वाले लालू यादव की छवि कभी एकांगी नहीं रही है। समय-समय उनके व्यक्तित्व में अलग अलग आयाम दिखते रहे हैं।

Tejaswi and Tej Pratap | PTI File Photo- India TV Hindi Tejaswi and Tej Pratap | PTI File Photo

बहुमुखी व्यक्तित्व वाले लालू यादव की छवि कभी एकांगी नहीं रही है। समय-समय उनके व्यक्तित्व में अलग अलग आयाम दिखते रहे हैं। मंडल आन्दोलन के दौरान गरीबों का मसीहा बनकर उभरे तो मंदिर आन्दोलन के दौरान लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक बन गए। कभी बिहार के 15 साल के जंगल राज के अगुवा के रूप में जाने गए। तो हाल फिलहाल तक मोदी विरोधी राजनीति के प्रतीक पुरुष की सशक्त भूमिका में दिखे। भूमिका कोई भी रही हो, सभी रूपों में लालू आत्मविश्वास से लबरेज दिखे। 

समय कैसा भी रहा, यहां तक की चारा घोटाले में जेल जाने के दौरान भी लालू का आत्मविश्वास विरोधियों पर भारी पड़ता दिखा, लेकिन बेनामी संपत्ति में आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी और परिजनों से पूछताछ के बाद लालू बदले-बदले नजर आ रहे हैं। तुनकमिजाज लालू न बात में खलल पड़ने पर कार्यकर्ताओं को डांट-फटकार रहे हैं, ना ही पत्रकारों के सवाल पर धीमी मुस्कान के साथ चुटकी ले रहे हैं। लालू का आत्मविश्वास लगातार हिलता हुआ दिख रहा है। दरअसल लालू यादव आज अकेले संकट में नहीं घिरे हैं, पुरा कुनबा संकट में है। दूसरी तरफ दुश्मन भी खरा है। साथ ही लालू ऐसे मोड़ पर भी खड़े हैं जहां उन्हें खुद से ज्यादा अपने बेटों के भविष्य की चिंता है। वो वही कार्य करना चाहते हैं जिससे बेटों का राजनीतिक भविष्य उज्ज्वल हो सके। उम्र के तीसरे पड़ाव को पार कर रहे लालू अपने बेटों की क्षमता से भलीभांति परिचित हैं। वो यह भी जानते हैं कि बेटों की सियासत की नींव ही नहीं, पूरा घरौंदा उन्हें ही तैयार करना है। यही वजह है कि हंसोड़ लालू आज गुमसुम दिख रहे हैं।

कहा जाता है कि बेटों में पिता के व्यक्तित्व की झलक दिखती है। लालू के व्यक्तित्व की झलक उनके बेटे तेजप्रताप और तेजस्वी यादव दिखती तो है पर आधी अधूरी। तेजप्रताप में लालू का तुनकमिजाज और विदुषक रूप तो दिखता है, पर वो सियासी समझ नहीं दिखती जो लालू हंसी-हंसी में कह जाते हैं और उलझे मामले को भी सहजता से सुलझा जाते हैं। साथ ही तेजस्वी यादव की छवि गंभीर नेता की तो है लेकिन उनमे पिता की तरह गरीबों को साथ लाने की कला नहीं दिखती। वह धीरे-धीरे लालू के घोटाले में घुले करप्शन के पोस्टर बॉय बनते ही नजर आ रहे हैं। तेजस्वी और तेजप्रताप में सिर्फ लालू के व्यक्तित्व की आंशिक झलक ही दिख रही है। दोनों सियासी कुमारों की सियासत की शुरुआत सुखद तो रही, लेकिन इसमे खुद के प्रकाश से अधिक दूसरे पर निर्भरता रही। इसमें नीतीश कुमार जैसे स्वच्छ छवि के नेता का साथ मिलना सबसे बड़ा प्लस पॉइंट रहा, लेकिन भ्रष्टाचार के ताजे आरोपों ने उन्हें गठबंधन की राजनीति के हाशिये पर खड़ा कर दिया है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि उनकी सियासत के जड़ में बहुत हद तक मट्ठा पड़ चुका है। कहने को ही लेकिन फिलहाल देश में साफ-सुथरी राजनीति का दौर चल रहा है। खुद नीतीश कुमार की पहचान भी साफ-सुथरी राजनीति के पैरोकार की है। ऐसे में भ्रष्टाचार के दाग तत्काल धुंधले नहीं पड़े तो नीतीश से दूरी बननी तय है और यह दूरी तेजस्वी और तेजप्रताप को सियासी हाशिये पर ले जा सकती है। दोनों यादव कुमारों का व्यक्तित्व ना ही अपने पिता जैसा बहुआयामी है और ना ही उनमे बार-बार छवि से बाहर निकलने की शक्ति है। ऐसे में कहीं ऐसा ना हो कि कोई विदुषक की खोल में ही सिमट कर जाए और कोई करप्शन का पोस्टर बॉय की छवि में बंध जाए।

(इस ब्लॉग के लेखक शिवाजी राय पत्रकार हैं और देश के नंबर वन हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं)

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