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सृजन घोटाले की एक अहम कड़ी की अस्पताल में मौत

बिहार के सृजन एनजीओ घोटाले में बीती रात नया मोड़ आया। घोटाले में गिरफ्तार कल्याण विभाग के कर्मचारी महेश मंडल भागलपुर मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में मौत हो गई।

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बिहार के सृजन एनजीओ घोटाले में बीती रात नया मोड़ आया। घोटाले में गिरफ्तार कल्याण विभाग के कर्मचारी महेश मंडल भागलपुर मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में मौत हो गई। हालंकि प्रशासन इस मौत को सामान्य बता रहा है और उसका कहना है कि महेश मंडल किडनी की बीमारी से पीड़ित था लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि महेश मंडल इस घोटाले की जांच की अहम कड़ी था और उसके पास कई अहम जानकारियां थीं। आज से बिहार विधानसभा का मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है... जिसके हंगामेदार होने के आसार हैं क्योंकि NGO स्कैम मुद्दे को लेकर लालू प्रसाद यादव ने नीतीश और सुशील मोदी के इस्तीफे की मांग की है।

बिहार में सृजन एनजीओ घोटाले में सरकार को कितना चूना लगाया गया, नेताओं से सरकारी अफसरों तक किन-किन लोगों के तार इस घोटाले से जुड़े हैं, इस बात का खुलासा होना अभी बाकी है लेकिन उससे पहले ही घोटाले के आरोपी महेश मंडल की मौत से हड़कंप मच गया है। जिस आरोपी महेश मंडल की मौत हुई है वो भागलपुर जिले में कल्याण विभाग का नाजिर था। महेश मंडल को 13 अगस्त को पुलिस ने गिरफ्तार किया था और कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया था। 

परिवार के मुताबिक महेश मंडल की किडनी खराब थी। उसका एक अस्पताल में इलाज भी चल रहा था। महेश को हर तीन दिन बाद डायलेसिस करवाना पड़ता था। इसके अलावा महेश मंडल को कैंसर भी था। बीती रात जेल में बंद महेश मंडल की तबीयत बिगड़ी जिसके बाद उसे भागलपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया जहां उसकी मौत हो गई।

बताया जा रहा है कि महेश मंडल इस घोटाले की जांच की अहम कड़ी था। उनके पास इस केस से जुड़ी कई अहम जानकारियां थीं जिससे इस घोटाले की तह तक जाया जा सकता था। महेश मंडल के परिवार का आरोप है कि उनका इलाज सही ढंग से नहीं किया गया जिसकी वजह से उनकी मौत हुई।

सृजन घोटाले को लेकर बिहार में राजनीतिक पारा बेहद गरम है। मुख्य विपक्षी दल आरजेडी ने इसमें सीधे-सीधे सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सुशील मोदी पर आरोप लगाए हैं।   

क्या है सृजन घोटाला ?    

सृजन एक एनजीओ है जिसकी स्थापना 1996 में भागलपुर के सबौर में हुई थी। मनोरमा देवी ने एनजीओ की शुरुआत महिलाओं को काम देने के मकसद से की थी।
बताया जा रहा है कि साल 2008 से सरकारी पैसे की बंदरबांट का घोटाला शुरू हुआ। सरकारी अफसरों की मदद से मनोरमा देवी ने सरकारी योजनाओं के पैसे सृजन के खाते में ट्रांसफर करवाना शुरू किया। सरकारी अधिकारियों के फर्जी दस्तखत और बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी पैसे सृजन के खाते में जमा होने लगे।
जब भी सरकार की ओर से किसी लाभार्थी को पैसे का भुगतान करना होता था तो सृजन के खाते से उतनी रकम सरकार के खाते में जमा करा दी जाती थी। और तो और घोटालेबाज बैंकों की मदद से फर्जी ई-स्टेटमेंट बनाकर डीएम दफ्तर में भेज देते थे ताकि किसी को कोई शक ना हो। इसी साल फरवरी में मनोरमा देवी की मौत के बाद उनकी बहू प्रिया कुमार सृजन एनजीओ का काम देख रही हैं।

ये घोटाला पकड में नहीं आता अगर एक सरकारी योजना के लिए भागलपुर के डीएम का चेक बाउंस ना होता। चेक बाउंस होने के बाद जब जांच हुई तो पता चला कि सरकार का बैंक अकाउंट खाली है। जांच में पता चला कि डीएम के फर्जी सिग्नेचर से बैंक से सरकारी पैसे निकालकर एनजीओ सृजन महिला विकास समिति के एकाउंट में ट्रांसफर किए गए।

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