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....तो क्या अटल बिहारी वाजपेयी देशद्रोही थे?

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता यशवंत सिन्‍हा ने श्रीनगर लोकसभा सीट पर हुए उप-चुनाव में बेहद कम वोटिंग पर चिंता जताते हुये जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला को राष्ट्रवादी करार दिया

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता यशवंत सिन्‍हा ने श्रीनगर लोकसभा सीट पर हुए उप-चुनाव में बेहद कम वोटिंग पर चिंता जताते हुये जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला को राष्ट्रवादी करार दिया और कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी अलगाववादियों से बातचीत के पक्षधर थे। इससे अटलजी आतंकवादी साबित नहीं हो जाते। (एक शहर, जहां आलू-प्याज से भी सस्ते बिकते हैं काजू!)

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने शेख अब्दुल्ला की जयंती पर हुर्रियत नेताओं की कश्मीर की आजादी की मांग का समर्थन किया था। इसके बाद उनके बयान पर काफी विवाद हो गया। यशवंत सिन्हा ने उस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'फारुख अब्दुल्ला हमेशा से राषट्रवादी रहे हैं। उपचुनाव के लिए राज्य में चुनाव प्रचार जोरों पर था। ऐसे में मुझे नहीं पता कि उनका बयान किस संदर्भ में आया।'

उन्होंने बुधवार को कहा, 'आज के समय में यदि आप अलगाववादियों से बातचीत करते है तो आपको राष्ट्रद्रोही कहा जाता है। तो क्या इसका मतलब यह है कि अटलजी भी देशद्रोही थे?'

इससे पहले भी यशवंत सिन्हा ने 18 फरवरी को कश्मीर में 'बिगड़ते हालात' पर चिंता जताई थी और केंद्र सरकार से जम्मू एवं कश्मीर में सभी पक्षों से वार्ता प्रक्रिया शुरू करने को कहा था। सिन्हा ने कहा था, "हम कश्मीर घाटी के बिगड़ते हालात से बेहद चिंतित हैं। हालिया घटनाओं में अनावश्यक ही लोगों की जानें गईं, उसे टाला जा सकता था।"

इस संबंध में जारी एक बयान में सिन्हा और 'कन्सर्ड सिटिजन्स ग्रुप' के सदस्यों ने कहा, "जम्मू एवं कश्मीर एक राजनीतिक मुद्दा है और यह राजनीतिक समाधान की मांग करता है।" सिन्हा ने कहा था, "मौजूदा रक्तपात खत्म होना चाहिए और यह केवल बातचीत के माध्यम से ही संभव है।"

सिन्हा ने दिसंबर 2016 में 'कन्सर्ड सिटिजंस ग्रुप' का नेतृत्व किया था, जिसमें वजाहत हबीबुल्लाह, शुशोभा बार्वे, भारत भूषण तथा सेवानिवृत एयर मार्शल कपिल काक मौजूद थे। इस ग्रुप ने कश्मीर में शांति को लेकर सभी पक्षों से बातचीत की थी।

उन्होंने एक रिपोर्ट भी जारी की थी, जिसमें घाटी में शांति बहाल करने को लेकर सुझाव दिए गए थे। इस दौरे का उद्देश्य कश्मीर में शांति बहाली के तरीके ढूंढना था, जो जुलाई 2016 में आंतकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाने के बाद से ही हिंसा की आग में जल रहा है।

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