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Hindi News भारत उत्तर प्रदेश यूपी में यात्राओं के जरिए राजनीतिक दल तैयार कर रहे अपनी सियासी जमीन

यूपी में यात्राओं के जरिए राजनीतिक दल तैयार कर रहे अपनी सियासी जमीन

भाजपा के सहयोगी के रूप में आरपीआइ प्रमुख और केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले उत्तर प्रदेश के हर जिले में अनुसूचित जाति के मतदाताओं को राजग की ओर मोड़ने में जुटेंगे।

Political parties preparing political ground through 'Yatras' in UP- India TV Hindi Image Source : PTI UP में होने वाले चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दल यात्राओं के जरिए अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगे है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दल यात्राओं के जरिए अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगे है। भारतीय जनता पार्टी ने जहां चुनाव से पहले जन आर्शीर्वाद यात्रा निकाल कर कार्यकर्ताओं को एक्टिव मोड में जुटी है, समाजवादी पार्टी 12 अक्तू बर से यूपी के चुनाव में आक्रामक रूप से जुट जाएगी। इसके लिए पार्टी ने विजय रथ यात्रा निकालने का निर्णय लिया है। इस यात्रा के तहत सपा अयक्ष अखिलेश यादव प्रदेश के हर जिले व तहसील का दौरा करेंगे और सपा के लिए माहौल बनाएंगे। वह जनता से परिवर्तन की अपील करेंगे और जनसमर्थन मांगेंगे।

विधानसभा चुनाव से पहले अगस्त माह चुनावी यात्राओं के नाम पर रहा वहीं सितंबर में भी कई यात्राएं निकाली गयी। जहां दोबारा सत्ता में आने के लिए भाजपा, मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने यात्राओं के माध्यम से अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में लगी है, आने वाले समय में यूपी में यात्राओं के जरिए माहौल और गरमाएगा और कई नई यात्राएं भी देखने को मिल सकती है।

अगस्त माह में मोदी सरकार में मंत्री बने संसदों ने 'जन आशीर्वाद यात्रा' यूपी के अलग-अलग इलाकों से यात्रा कर चुके हैं। इस यात्रा के बहाने वो यूपी की 3 लोकसभा सीटों और 120 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों से गुजरते हुए करीब 3500 किमी से अािक की यात्रा तय कर केन्द्र और राज्य सरकार की उपलब्धियों बखान किया है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा की यह यात्रा कई मायनों में काफी अहम मानी जा रही है।

इससे पहले सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बाराबंकी और उन्नाव से 'रथ यात्रा' की शुरुआत की जिसके बाद 5 अगस्त को यूपी में पार्टी की साइकिल यात्रा निकाली गई। सीतापुर के महमूदाबाद से 'किसान नौजवान पटेल यात्रा' नाम से एक और यात्रा शुरुआत की गई। यात्रा में यूपी इकाई के अयक्ष नरेश उत्तम और उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी सहित पार्टी के कई नेताओं ने भाग लिया था।

इसके साथ ही सपा के सहयोगी दलों ने भी पूर्वांचल और पष्चिम क्षेत्र से चुनावी यात्रा निकाल सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है- 'महान दल की भाजपा हटाओ यात्रा'। यूपी के रुहेलखंड इलाके के पीलीभीत जिले से शुरू होगी और इटावा में तक चली। वहीं, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) की 'भाजपा हटाओ-प्रदेश बचाओ, जनवादी जनक्रांति यात्रा' बलिया से शुरू होकर अयोध्या तक चली। इसके पहले आम आदमी पार्टी ने तिरंगा यात्रा निकाल कर लोगों में जोश भरने का काम किया था।

उधर, प्रगतिशील समाज पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल ने भी अपने भतीजे अखिलेश को 11 अक्टूबर तक अल्टीमेटम दिया है। उसके बाद वह भी 12 अक्तू बर को ही मथुरा से सामाजिक परिवर्तन यात्रा शुरू करेंगे, जिसके तहत वह पूरे प्रदेश का दौरा करेंगे।

वहीं, कांग्रेस छोटे-छोटे कार्यक्रम तो कई कर चुकी है, लेकिन अब पार्टी महासचिव प्रियंका वाड्रा के यूपी दौरे के बाद इसमें तेजी लाने की रूपरेखा तैयार कर ली है। कांग्रेस प्रदेश भर में 'प्रतिज्ञा यात्रा' निकालने जा रही है। इसमें ग्रामीण स्तर तक सक्रियता के कार्यक्रम तय किए गए हैं। इधर, राष्ट्रीय लोकदल ने भी 'जन आशीर्वाद यात्रा' निकालने का ऐलान किया है। इस तरह लगभग सभी दल चुनाव के लिए मैदान में उतर चुके हैं, जिससे दिनों-दिन सूबे का सियासी ताप बढ़ता जाएगा।

भाजपा के सहयोगी के रूप में आरपीआइ प्रमुख और केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले उत्तर प्रदेश के हर जिले में अनुसूचित जाति के मतदाताओं को राजग की ओर मोड़ने में जुटेंगे। पार्टी ने प्रदेशभर में 'बहुजन कल्याण यात्रा' निकालने का फैसला लिया है, जो 26 सितंबर से गाजियाबाद से शुरू हुई है और 26 नवंबर को संविधान दिवस के दिन लखनऊ में समाप्त होगी।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो ऐसा नहीं यूपी में यह यात्राएं कोई नई हो। इसके पहले भाजपा ने बहुत सारी यात्राएं निकाली हैं। जिसमें अब संरक्षक मंडल के नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व अन्य वरिष्ठ नेताओं ने 'रामरथ यात्रा', 'जनादेश यात्रा', 'स्वर्ण जयंती यात्रा' जैसी अनेकों यात्राएं निकाली, जिनका व्यापक असर राष्ट्रीय स्तर पर देखने को भी मिला है। मुलायम सिंह की 1987 की क्रन्ति रथ यात्रा और स्व कल्याण सिंह की 'जनादेश यात्रा' का बहुत बड़ा असर हुआ।

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