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जानिए, राधाष्टमी क्या है और इसका महत्व, पूजन विधि

नई दिल्ली: हिंदू धर्म में भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इस बार 21 सितम्बर को मनाया जाएगा। राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊँची पहाडी़

कृष्ण से भी ज्यादा पूजित राधा मानी गई है इस बारें में खुद कृष्ण ने कहा था कि-

राधा मेरी स्वामिनी मैं राधे का दास। जनम-जनम मोह दीजिए वृंदावन को पास।।

राधा जी कृष्ण से आठ साल बड़ी थी, लेकि न कुछ लोगो का कहना है कि इन दोनें कीउम्र में केवल 15 दिनों के अंतर है। जहां कृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी को हुआ वही राधा का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ। जिस तरह श्री कृष्ण का जन्म का वर्त-पूजन बडी श्रृद्धा के साथ किया जाता है उसी तरह राधाष्टमी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन दोनों का साथ-साथ पूजा करनी चाहिए।     

ऐसे करें राधाष्टमी में राधा जी पूजा

राधाष्टमी में सबसे पहले राधाजी को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए और उनका विधिवत रुप से श्रृंगार करना चाहिए। इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा करना चाहिए। सवा मन दूध, दही, शुद्ध घी तथा बूरा और औषधियों से मूल शांति करानी चाहिए। बाद में कई मन पंचामृत से वैदिक मम्त्रों के साथ "श्यामाश्याम" का अभिषेक किया जाता है। नारद पुराण के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करनेवाले भक्तगण ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेते है। जो व्यक्ति इस व्रत को विधिवत तरीके से करते हैं वह सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।

राधाष्टमी के दिन शुद्ध मन से व्रत का पालन किया जाता है। राधाजी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराते हैं स्नान कराने के पश्चात उनका श्रृंगार किया जाता है। राधा जी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी हुई सुंदर मूर्ति को विग्रह में स्थापित करते हैं। मध्यान्ह के समय श्रद्धा तथा भक्ति से राधाजी की आराधना कि जाती है। धूप-दीप आदि से आरती करने के बाद अंत में भोग लगाया जाता है। कई ग्रंथों में राधाष्टमी के दिन राधा-कृष्ण की संयुक्त रुप से पूजा की बात कही गई है।

राधाष्टमी का महत्व

वेद तथा पुराणादि में राशाजी का ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर गुणगान किया गया है, वही कृष्णप्रिया हैं। राधाजन्माष्टमी कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी, धनी और सर्वगुणसंपन्न बनता है, भक्तिपूर्वक श्री राधाजी का मंत्र जाप एवं स्मरण मोक्ष प्रदान करता है। श्रीमद देवी भागवत श्री राधा जी कि पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता। श्री राधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं।

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