भोजन किसे कराना चाहिए
इस बारें में विष्णु पुराण के 15 वें अध्याय में बताया गया है कि श्राद्ध काल में भोजन किसी गुणशील ब्राह्मण को कराना चाहिए। ब्राह्मण ऐसा होना चाहिए जो छह वेदों का जाननें वाला हो, श्रोत्रिय, योगी, आनजा, जामाता, दौहित्रा, पंचाग्नि तपनें वाला और माता-पिता का प्रेमी हो। इन गुणों के ब्राह्मणों को पितरों के निमित्त करानें के बाद ही अन्य लोगों को प्रसाद देना चाहिए।
इन लोगों को भोजन नही कराना चाहिए
विष्णु पुराण की श्राद्ध विधि में यह बताया गया है कि ऐसे लोगो को शभोजन कराना वर्जित है जो लोग मित्रघाती, नपुंसक, कालें दातों वाला. अग्नि और वेदों का त्याग करनें वाला, , चोर, चुगलखोर, पैसे देकर ज्ञान देने वाला, पुर्नविवाहिता का पति, माता-पिता का त्याग करने वाला, शुद्रा का पति हो तो वो इसके योग्य नही है।
गरूण पुराण के अध्याय 218 में बताया गया है कि श्राद्ध दो प्रकार के होते है।
1. सपात्रक श्राद्ध- इसमें विश्व देव और पितरों के रूप में साक्षात ब्राह्मणों को उनके आसन में बिठाकर विधि विधान से पूजा कर भोजन कराया जाता है। लेकिन कलयुग में इस तरह के ब्राह्मण मिलना मुश्किल है। इसलिए असपात्रक श्राद्ध किया जाता है।
2. अपात्रक श्राद्ध- इस श्राद्ध में ब्राह्मणों को उनके आसन में नही बिठाया जाता है। पितरों के आसनों में कुश सें बना कर पितर बैठाया जाता है। तब भोजन कराया जाता है।
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