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Hindi News लाइफस्टाइल हेल्थ 101 साल की महिला हिप रिप्लेसमेंट से फिर चलने-फिरने में सक्षम

101 साल की महिला हिप रिप्लेसमेंट से फिर चलने-फिरने में सक्षम

राजधानी के आर्थोपेडिक चिकित्सकों ने 101 साल की महिला को हिप रिप्लेसमेंट की मदद से दोबारा चलने-फिरने में सक्षम बनाया। इंस्टीट्यूट आफ बोन एंड ज्वाइंट (एमजीएस हास्पिटल) के आर्थोपेडिक सर्जन ने एमआईएस तकनीक (मिनिमली इनवैसिव सर्जरी) की मदद से..

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नई दिल्ली:  राजधानी के आर्थोपेडिक चिकित्सकों ने 101 साल की महिला को हिप रिप्लेसमेंट की मदद से दोबारा चलने-फिरने में सक्षम बनाया। इंस्टीट्यूट आफ बोन एंड ज्वाइंट (एमजीएस हास्पिटल) के आर्थोपेडिक सर्जन ने एमआईएस तकनीक (मिनिमली इनवैसिव सर्जरी) की मदद से उसके कूल्हों का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया।

पानीपत की 101 साल की महिला पिछले दिनों अपने घर में गिर पड़ी थीं। इसके बाद उन्हें दाएं कूल्हे में तीव्र दर्द रहने लगा। इसके बाद, राष्ट्रीय राजधानी स्थित इंस्टीट्यूट आफ बोन एंड ज्वाइंट (एमजीएस हास्पिटल) के आर्थोपेडिक चिकित्सकों ने एमआईएस तकनीक की मदद से सफलतापूर्वक कूल्हा प्रत्यारोपण किया और इसका नतीजा यह निकला कि चलने-फिरने में असमर्थ 101 साल की महिला दोबारा चलने-फिरनेमें सक्षम हो गईं। इसे चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चिकित्सकीय कामयाबी का दुर्लभ मामला माना जा रहा है।

इंस्टीट्यूट आफ बोन एंड ज्वाइंट के निदेशक डॉ. अश्विनी माईचंद एवं उनकी टीम ने मरीज का एक्स-रे किया जिससे पता चला कि बाएं तरफ के कूल्हे में फ्रैक्चर है। मरीज उच्च रक्त चाप से पीड़ित थीं तथा उनकी किडनी भी ठीक से काम नहीं कर रही थी। सर्जरी के लिए कार्डियोलॉजी, नेफ्रोलॉजी एवं एनेस्थीसिया के विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया। इसके बाद एमआईएस के जरिए कूल्हे का प्रत्यारोपण किया गया।

उन्होंने बताया कि सर्जरी के दौरान रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी और न ही मरीज को आईसीयू में रखना पड़ा। वह पहले दिन से ही बिना किसी कष्ट के वॉकर के सहारे चलने लगीं।

डॉ. अश्विनी माईचंद ने कहा, "अभी हाल तक बुजुर्ग मरीज में हिप फ्रैक्चर को मरीज के लिए घातक माना जाता था। इसे ठीक करने के लिए अगर आपरेशन का विकल्प अपनाया जाता था तो यह आपरेशन काफी बड़ा हो जाता था। इसमें रक्त की काफी हानि होती थी। कई बार मरीज की मौत हो जाती थी।

एक और समस्या यह थी कि अगर हम स्क्रू एवं प्लेट का इस्तेमाल करते थे तो मरीज को गंभीर ओस्टियोपोरोसिसहोने के कारण ये स्क्रू एवं प्लेट ढीले हो जाते थे और कुछ माह बाद ही मरीज को दोबारा सर्जरी करनी पड़ती थी।"

उन्होंने कहा, "एक दूसरा विकल्प यह था कि हम मरीज का आपरेशन नहीं करें। लेकिन ऐसी स्थिति में अगर कई बीमारियों से ग्रस्त बुजुर्ग मरीज बिस्तर पर ही लेटे रहने के लिए विवश हो तो उसे बिस्तर पर पड़े-पड़े फेफड़े में संक्रमण, मूत्र नली में संक्रमण हो जाता था और पहले की बीमारियां गंभीर हो जाती हैं।

इसलिए बड़ा सवाल यह होता है कि ऐसे मरीजों का आपरेशन किया जाए या नहीं। दूसरा सवाल यह होता है कि आपरेशन किया जाए तो किस तरह का आपरेशन हो, फिक्सेशन हो या कूल्हा बदला जाए।

तीसरा सवाल यह होता है कि किस तरह से शरीर पर पड़ने वाले आपरेशन के प्रभाव को कम से कम किया जाए। इसलिए जोड़ बदलने की 6000 से अधिक सर्जरी कर चुकी हमारी टीम ने एमआईएस तकनीक से कूल्हा प्रत्यारोपण करने का फैसला किया और कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जरी को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया।"

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