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Magh Purnima 2021: 27 फरवरी को माघ पूर्णिमा, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा

माघी पूर्णिमा को ‘बत्तीसी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन किये गये दान-पुण्य का बत्तीस गुना फल मिलता है ।

Magh Purnima 2021: 27 फरवरी को माघ पूर्णिमा, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा- India TV Hindi Image Source : INSTAGRAM/NASIBWALA Magh Purnima 2021: 27 फरवरी को माघ पूर्णिमा, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा

माघ शुक्ल पक्ष की उदया तिथि पूर्णिमा और दिन शनिवार है। पूर्णिमा तिथि 27 फरवरी दोपहर 1 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। उसके बाद फाल्गुन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग जायेगी। इसलिए शनिवार को ही स्नान दान की माघी पूर्णिमा है। शास्त्रों के अनुसार पूरे माघ महीने के दौरान स्नान और दान का महत्व बताया गया है, लेकिन जो लोग पूरे माघ महीने के दौरान स्नान-दान का लाभ ना उठा पाए हों, वो  माघी पूर्णिमा के दिन इन सब चीज़ों का लाभ उठा सकते हैं। 

माघी पूर्णिमा को ‘बत्तीसी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन किये गये दान-पुण्य का बत्तीस गुना फल मिलता है। पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आज के दिन पितरों का तर्पण करने से धन-सम्पदा और बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।

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माघ पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि आरंभ- 26 फरवरी को दोपहर 04 बजकर 49 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 27 फरवरी  दोपहर 01 बजकर 47 मिनट तक

माघ पूर्णिमा में स्नान-दान का अधिक महत्व

शास्त्रों के अनुसार पूरे माघ महीने के दौरान स्नान और दान का महत्व बताया गया है | लेकिन जो लोग पूरे माघ महीने के दौरान स्नान-दान का लाभ ना उठा पाये हों, वो आज माघी पूर्णिमा के दिन इन सब चीज़ों का लाभ उठा सकते हैं। आज से माघ महीने के यम नियम आदि भी समाप्त हो जायेंगे। लिहाजा इन सब चीज़ों का लाभ उठाने का आज आखिरी दिन है। आज के दिन तिल के दान का बहुत महत्व है। तिल के अलावा आज के दिन गुड़, कपास, घी, फल, अन्न, कम्बल, वस्त्र आदि का दान भी करना चाहिए।

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माघ पूर्णिमा व्रत कथा

कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण निवास करता था। वह अपना जीवन निर्वाह दान पर करता था। ब्राह्मण और उसकी पत्नी के कोई संतान नहीं थी। एक दिन उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन सभी ने उसे बांझ कहकर भिक्षा देने से इनकार कर दिया। तब किसी ने उससे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा, उसके कहे अनुसार ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर 16 दिन बाद मां काली प्रकट हुई। मां काली ने ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया और कहा, 'अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ। इस तरह हर पूर्णिमा के दिन तक दीपक बढ़ाती जाना जब तक कम से कम 32 दीपक न हो जाएं।'

ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया। उसकी पत्नी ने पूजा की और फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई। प्रत्येक पूर्णिमा को वह मां काली के कहे अनुसार दीपक जलाती रही। मां काली की कृपा से उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा गया। काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया।

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देवदास ने कहा कि वह अल्पायु है परंतु फिर भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया। कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया। तभी से कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से संकट से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। 

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