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Hindi News विदेश अन्य देश रूस के हस्तक्षेप के बाद नागोर्नो-काराबाख में युद्धविराम के लिए राजी हुए आर्मेनिया-अजरबैजान, भारत किसके साथ?

रूस के हस्तक्षेप के बाद नागोर्नो-काराबाख में युद्धविराम के लिए राजी हुए आर्मेनिया-अजरबैजान, भारत किसके साथ?

रूस के हस्तक्षेप के बाद आखिरकार आर्मेनिया और अजरबैजान युद्धविराम के लिए सहमत हो गए हैं जिसकी शुरुआत शनिवार से होगी। बता दें कि नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में कई सप्ताह से लड़ाई चल रही है। रूस की मध्यस्थता से मॉस्को में 10 घंटे तक चली वार्ता के बाद दोनों देश युद्धविराम के लिए सहमत हुए। 

Armenia, Azerbaijan agree on ceasefire in Nagorno-Karabakh- India TV Hindi Image Source : PTI Armenia, Azerbaijan agree on ceasefire in Nagorno-Karabakh

मॉस्को: रूस के हस्तक्षेप के बाद आखिरकार आर्मेनिया और अजरबैजान युद्धविराम के लिए सहमत हो गए हैं जिसकी शुरुआत शनिवार से होगी। बता दें कि नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में कई सप्ताह से लड़ाई चल रही है। रूस की मध्यस्थता से मॉस्को में 10 घंटे तक चली वार्ता के बाद दोनों देश युद्धविराम के लिए सहमत हुए। रूसी विदेश सर्गेई लावरोव ने यह घोषणा की।

समाचार एजेंसी तास के मुताबिक, लावरोव ने आर्मेनिया और अजरबैजान के विदेश मंत्रियों द्वारा साइन किए गए बयान के हवाले से कहा, "युद्धबंदियो और अन्य पकड़े गए व्यक्तियों की अदला-बदली के मानवीय उद्देश्य के साथ-साथ सैनिकों के शवों की अदला-बदली पर सहमति के साथ युद्धविराम घोषित किया गया है।"

युद्धविराम की घोषणा लावरोव, अजरबैजान और आर्मेनियाई विदेश मंत्रियों जेहुन बेरामोव और जोहराब मेनात्सकनयान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता के बाद हुई, जिसमें नागोर्नो-काराबाख में क्षेत्र में लड़ाई खत्म कराने संबंधी समाधान को लेकर 10 घंटे से अधिक समय तक बातचीत हुई।

डॉक्युमेंट में यह भी कहा गया है कि अजरबैजान और आर्मेनिया नागोर्नो-काराबाख में शांति बहाली पर ओएससीई मिन्स्क समूह के प्रतिनिधियों की मध्यस्थता के साथ व्यावहारिक वार्ता शुरू करने के लिए सहमत हुए हैं।

आर्मीनिया-अज़रबैजान संघर्ष में भले ही भारत सरकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया संतुलित दिखे, कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि दोनों देशों में आर्मीनिया भारत के ज़्यादा निकट है। उनका कहना है कि जब से आर्मीनिया बना है, वहां के तीन राष्ट्रपति भारत आ चुके हैं, और हमारे दो उपराष्ट्रपति आर्मीनिया जा चुके हैं, और अज़रबैजान से आज तक किसी भी राष्ट्राध्यक्ष ने भारत का दौरा नहीं किया है, ना भारत से कोई वहाँ गया है।

वो ये भी बताते हैं कि आर्मीनिया कश्मीर के मुद्दे पर भारत को बिना शर्त समर्थन देता है और भारत ने जब परमाणु परीक्षण किए थे, तब भी उसने भारत की आलोचना नहीं की थी। भारत राजनीतिक रूप ही नहीं सांस्कृतिक रूप से भी आर्मीनिया के क़रीब है, क्योंकि अज़रबैजान ख़ुद को इस्लामिक देशों के साथ जोड़ने की कोशिश करता दिखता है।

हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि भारत के लिए आर्थिक हितों की दृष्टि से अज़रबैजान ज़्यादा क़रीब है। अज़रबैजान एक तेल संपन्न देश है, जहां ओएनजीसी ने भी निवेश किया हुआ है। साथ ही वहां भारत की फ़ार्मास्युटिकल कंपनियों ने भी कारखाने लगाए हुए हैं  इसलिए भारत आधिकारिक तौर पर खुलकर किसी भी देश के आंतरिक मामले में मदद नहीं कर सकता।

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