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जानें भारत ने क्यों जारी किया पाकिस्तान को नोटिस, अब बूंद-बूंद पानी को तड़पेगा पड़ोसी!

भारत और पाकिस्तान के बीच सितंबर 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी। अब इसमें संशोधन के लिए पाकिस्तान को भारत ने नोटिस जारी किया है। सरकारी सूत्रों ने शुक्रवार को बताया कि यह नोटिस इस्लामाबाद द्वारा संधि को लागू करने को लेकर अपने रूख पर अड़े रहने के कारण जारी किया गया है।

शहबाज शरीफ, पाकिस्तान के पीएम- India TV Hindi Image Source : AP शहबाज शरीफ, पाकिस्तान के पीएम

India Issued Notice to Pakistan: भारत ने वर्ष 1960 में हुए सिंधु नदी जल समझौते के मद्देनजर पाकिस्तान को एक नोटिस जारी किया है। भारत अब इस समझौते में संशोधन करना चाहता है। सूत्रों के अनुसार समझौतों के इतर पाकिस्तान की कुछ हरकतों ने भारत को यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया है। अगर पाकिस्तान संशोधन पर सहमत नहीं होता है तो भारत सरकार कड़ा कदम उठा सकती है। सिंधु जल समझौता रद्द किया जा सकता है। ऐसे में पड़ोसी पाकिस्तान बूंद-बूंद पानी को तरस सकता है।  

भारत और पाकिस्तान के बीच सितंबर 1960 में सिंधु जल संधि  हुई थी। अब इसमें संशोधन के लिए पाकिस्तान को भारत ने नोटिस जारी किया है। सरकारी सूत्रों ने शुक्रवार को बताया कि यह नोटिस इस्लामाबाद द्वारा संधि को लागू करने को लेकर अपने रूख पर अड़े रहने के कारण जारी किया गया है। यह नोटिस सिंधु जल संबंधी आयुक्तों के माध्यम से 25 जनवरी को पाकिस्तान को भेजा गया है। पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि और उसकी भावना को अक्षरश: लागू करने का भारत दृढ़ समर्थक व जिम्मेदार साझेदार रहा है। मगर पाकिस्तान की कुछ कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों एवं इसे लागू करने पर प्रतिकूल प्रभाव डाला और इसलिए अब भारत को इसमें संशोधन के लिए उचित नोटिस जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इससे पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

पाकिस्तान ने बदला स्टैंड
गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की लंबी वार्ता के बाद 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किया था। विश्व बैंक भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था। इस संधि के मुताबिक कुछ अपवादों को छोड़कर सभी पूर्वी नदियों का पानी भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया। वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिये तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था। वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया। पाकिस्तान का यह एकतरफा कदम संधि के अनुच्छेद 9 में विवादों के निपटारे के लिये बनाए गए तंत्र का उल्लंघन है। इसी के अनुरूप, भारत ने इस मामले को तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया है।

सिंधु जल संधि पड़ी खतरे में
पाकिस्तान के दोहरे मापदंड अपनाने से सिंधु नदी जल संधि खतरे में पड़ सकती है। सूत्र ने बताया कि एक ही प्रश्न पर दो प्रक्रियाएं साथ शुरू करने और इसके असंगत या विरोधाभासी परिणाम आने की संभावना एक अभूतपूर्व और कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा कर सकती है। इससे सिंधु जल संधि के खतरे में पड़ने की आशंका है। उन्होंने कहा कि विश्व बैंक ने 2016 में इसे माना था और दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू करने को रोकने का निर्णय किया था, साथ ही भारत और पाकिस्तान से परस्पर सुसंगत रास्ता तलाशने का आग्रह किया था। भारत द्वारा लगातार परस्पर सहमति से स्वीकार्य रास्ता तलाशने के प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान ने वर्ष 2017 से 2022 के दौरान स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस पर चर्चा करने से इंकार कर दिया।

पाकिस्तान के लगातर जोर देने पर विश्व बैंक ने हाल ही में तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत की प्रक्रियाएं शुरू की। उन्होंने कहा कि एक ही मुद्दे पर समानांतर विचार किया जाना सिंधु जल संधि के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता है। इस तरह से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के उल्लंघन के मद्देनजर भारत संशोधन का नोटिस देने के लिए बाध्य हो गया। अब दोनों देशों के बिच सिंधु जल संधि को लेकर नया तनाव पैदा हो गया है। 

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