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रूस के समर्थन में आया यूरोपीय संघ का यह देश! जेलेंस्की और पुतिन से की युद्ध में शांति की अपील

रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए 1 वर्ष होने को हैं, लेकिन अभी तक इस तबाही का कोई अंत नहीं दिखाई दे रहा। पश्चिमी देश और यूरोपीय संघों की ओर से अब तक युद्ध को रोकने की कोई पहल नहीं की गई है। यही वजह है कि इस युद्ध का अब तक कोई शांति का रास्ता नहीं खोजा जा सका है।

प्रतीकात्मक फोटो- India TV Hindi Image Source : AP प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए 1 वर्ष होने को हैं, लेकिन अभी तक इस तबाही का कोई अंत नहीं दिखाई दे रहा। पश्चिमी देश और यूरोपीय संघों की ओर से अब तक युद्ध को रोकने की कोई पहल नहीं की गई है। यही वजह है कि इस युद्ध का अब तक कोई शांति का रास्ता नहीं खोजा जा सका है। अब तक दुनिया में सिर्फ भारत एक मात्र ऐसा देश रहा है, जिसने रूस और यूक्रेन दोनों को युद्ध रोकने और बातचीत से समस्या का हल निकालने के लिए कई बार कह चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो रूस के राष्ट्रपति पुतिन को यह तक कह दिया था कि "यह युग युद्ध का नहीं है।

बातचीत से समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए। " इसके बाद पूरी दुनिया में पीएम मोदी के इस बयान की तारीफ हुई थी। पुतिन और जेलेंस्की से कई बार पीएम मोदी ने फोन पर भी शांति के लिए बातचीत की। मगर दोनों देश शांति की राह पर आगे नहीं बढ़ सके। अब पहली बार एक यूरोपीय देश ने रूस और यूक्रेन को युद्ध में शांति लाने की अपील की है।

हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में शांति का आह्वान किया है। ऐसा नहीं होने पर उन्होंने संघर्ष व तबाही और अधिक बढ़ने की चेतावनी दी है। ओर्बन ने कहा कि संघर्ष वर्षों तक चल सकता है और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और यूरोपीय संघ (ईयू) में हर कोई हंगरी को छोड़कर युद्ध के पक्ष में है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार अपने भाषण में ओर्बन ने बताया कि यूरोपीय संघ पहले से ही रूस के साथ युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से उलझा है। हंगेरियन पीएम ने वादा किया कि मामला और बिगड़ने पर भी हंगरी अपनी स्थिति पर कायम रहेगा और रूस के साथ आर्थिक संबंध बनाए रखना जारी रखेगा।

रूस से आर्थिक संबंध बने रहेंगे
ओर्बन कहते हैं कि हंगरी की स्थिति यूरोप के भीतर एक अपवाद है, लेकिन वास्तव में बाकी दुनिया में काफी सामान्य है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय आबादी प्रतिबंधों की कीमत चुकाते-चुकाते थक जाएगी। तब नई सरकारों को हंगरी की नीति उचित लगेगी। युद्ध और उच्च मुद्रास्फीति के कारण ओर्बन ने 2022 को 1990 के बाद से हंगरी के लिए सबसे कठिन वर्ष कहा। उन्होंने कहा कि देश में मुद्रास्फीति एकल अंकों में वापस आ जाएगी। हम युद्ध से बाहर रहेंगे, हंगरी शांति और सुरक्षा का द्वीप बना रहेगा और हम मुद्रास्फीति को भी खत्म करेंगे। यह सरकार का काम है, इसमें कोई गलती नहीं होगी। उन्होंने कहा कि रूस के साथ हम अपने आर्थिक संबंधों को बनाए रखेंगे। मगर बेहतर है कि रूस और यूक्रेन दोनों देश शांति के रास्ते पर आएं और युद्ध का त्याग करें। 

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