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Hindi News विदेश अमेरिका जयशंकर ने चीन को लिया आड़े हाथ, कहा- अफ्रीका के सहयोग में भारत का कोई ‘गुप्त एजेंडा’ नहीं

जयशंकर ने चीन को लिया आड़े हाथ, कहा- अफ्रीका के सहयोग में भारत का कोई ‘गुप्त एजेंडा’ नहीं

जयशंकर ने कहा कि अनेक अफ्रीकी देशों को प्रदान की गईं दवाओं, टीकों, स्वास्थ्य उपकरणों, एंबुलेंसों, वाहनों और खाद्यान्नों के जरिये भी अफ्रीका को नई दिल्ली का समर्थन देखा जा सकता है।

Africa, Africa China, Africa China Jaishankar, Africa Jaishankar- India TV Hindi Image Source : PTI विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि अफ्रीका को भारत का समर्थन हमेशा बिना किसी शर्त या गुप्त एजेंडा के रहा है।

संयुक्त राष्ट्र: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन को आड़े हाथ लेते हुए गुरुवार को कहा कि अफ्रीका को भारत का समर्थन हमेशा बिना किसी शर्त या गुप्त एजेंडा के रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि वैश्विक व्यवस्था में सच्ची बहु-ध्रुवीयता के लिए अफ्रीका का बढ़ना जरूरी है। बता दें कि बेल्ट ऐंड रोड प्रॉजेक्ट की आड़ में चीन ने कई देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसा लिया है और अब उन्हें अपनी शर्तें मानने के लिए मजबूर कर रहा है। जयशंकर के बयान को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है।

‘हमारा समर्थन बिना शर्त के रहा है’
‘संयुक्त राष्ट्र और उप-क्षेत्रीय संगठनों (अफ्रीकी संघ) के बीच सहयोग’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की खुली चर्चा में जयशंकर ने कहा, ‘हमने अफ्रीका की प्राथमिकताओं, सुविधा और आकांक्षाओं के अनुरूप उसके साथ काम किया है। हमारा मानना है कि वैश्विक व्यवस्था में सच्ची बहु-ध्रुवीयता के लिए अफ्रीका का बढ़ना जरूरी है और हम ऐसा होने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भारत का समर्थन हमेशा बिना किसी शर्त या किसी गुप्त एजेंडा के रहा है। यह 41 अफ्रीकी देशों में रियायती वित्तपोषण के तहत लागू हमारी 184 परियोजनाओं से जाहिर है।’

ड्रैगन की शर्तें मानने को मजबूर कई देश
जयशंकर ने कहा कि अनेक अफ्रीकी देशों को प्रदान की गईं दवाओं, टीकों, स्वास्थ्य उपकरणों, एंबुलेंसों, वाहनों और खाद्यान्नों के जरिये भी अफ्रीका को नई दिल्ली का समर्थन देखा जा सकता है। बता दें कि यूएन के मंच से जयशंकर ने यह बयान चीन द्वारा अफ्रीका महाद्वीप के देशों समेत समेत कई राष्ट्र्रों को कर्ज के जाल में फंसाने से दुनिया भर में फैली चिंताओं के बीच दिया है। चीन की चालबाजियों के चलते कई छोटे देश उसके कर्ज के जाल में फंस गए हैं और वे ड्रैगन की शर्ते मानने के लिए मजबूर हैं।

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