अहमदाबाद। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की अहमदाबाद शाखा ने मंगलवार को एस्सार स्टील के प्रमोटर्स रुइया बंधुओं की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसे उन्होंने अपने कर्ज का भुगतान करने और एस्सार स्टील को दिवालापन की कार्रवाई से निकालने के लिए दायर की थी। इससे कंपनी पर नियंत्रण की दौड़ में शामिल आर्सेलर मित्तल को फायदा होगा।
इसके कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की धारा 12ए पर स्पष्ट किया था कि प्रमोटर अपनी दिवाला घोषित हो रही कंपनी का नियंत्रण वापस ले सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने 90 प्रतिशत शेयरधारकों का समर्थन चाहिए। मगर अब एस्सार के प्रमोटर्स को उनकी कंपनी पर वापस नियंत्रण नहीं मिल पाएगा।
एनसीएलटी की दो-सदस्यीय अहमदाबाद शाखा ने एस्सार की कंपनी एस्सार स्टील एशिया होल्डिंग्स लि. (ईएसएएच) की स्थिरता प्रक्रिया पर 7 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रखा था, जिसमें कंपनी को दिवाला प्रक्रिया से निकालने की मांग की गई थी। मंगलवार को सुनाए गए इस फैसले में प्रमोटर्स की याचिका खारिज कर दी गई।
एनसीएलटी ने यह भी कहा कि ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) द्वारा आर्सेलर मित्तल को चुनने के फैसले में कोई अवैधता नहीं है। एनसीएलटी की शाखा ने कहा कि केवल वे आवेदक, जिन्होंने दिवाला प्रक्रिया शुरू करने का आवेदन दिया था, वही इसे रोकने का आवेदन कर सकते हैं। भारतीय स्टेट बैंक और स्टैंडर्ड चाटर्ड बैंक ने एस्सार स्टील के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने का आवेदन दिया था।
एस्सार स्टील ने ईएसएएच पर वापस नियंत्रण हासिल करने के लिए 54,389 करोड़ रुपए के भुगतान की पेशकश की थी, जबकि आर्सेलर मित्तल का प्रस्ताव 42,202 करोड़ रुपए का था, जिसे सीओसी ने मंजूरी प्रदान की थी। अब एनसीएलटी 31 जनवरी को आर्सेलर मित्तल के समाधान योजना पर फैसला सुनाएगी।
आर्सेलर मित्तल ने एक बयान में कहा कि हम एनसीएलटी के आज के फैसले का स्वागत करते हैं, जो आईबीसी की पवित्रता की रक्षा करता है और एक नियम आधारित कानून के रूप में इसकी वैधता सुनिश्चित करता है। यह एस्सार स्टील इंडिया और देश दोनों के लिए व्यापक रूप से सकारात्मक है। हम इस मामले में अब सरल समाधान की उम्मीद कर रहे हैं।