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2021-22 में ग्रामीण मांग में आ सकती है गिरावट, बढ़ सकता है शहरी उपभोग: रिपोर्ट

रिपोर्ट में शरदकालीन खरीफ आय में 2020-21 के दौरान वृद्धि के अपने अनुमान को 9.4 प्रतिशत से घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया है। हालांकि ग्रीष्मकालीन रबी आय की वृद्धि की दर के अनुमान को 2020 के 8.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2021 में 10.4 प्रतिशत कर दिया है।

India TV Paisa Desk Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: January 31, 2021 19:33 IST
ग्रामीण मांग में...- India TV Paisa
Photo:PTI

ग्रामीण मांग में गिरावट की आशंका

नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2018-19 से अर्थव्यवस्था को सहारा देने वाली तथा उपभोग की वृद्धि को आगे बढ़ाने वाली ग्रामीण मांग कृषि उत्पादों की कीमतें कम होने के चलते 2021-22 में गिर सकती है। हालांकि नये वित्त वर्ष में शहरी उपभोग के तेज होने की उम्मीद है। एक रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त किया गया है। बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के अनुसार, महामारी का शहरी भारत पर अधिक असर हुआ। इसके चलते 2020 में ग्रामीण मांग ने शहरी मांग को पछाड़ दिया। हालांकि शहरी मांग में 2021 में सुधार होने की उम्मीद हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 से शहरी मांग नरम है। गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में संकट ने नरमी को और बढ़ाया है। बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज का पिछले साल 10.6 प्रतिशत की वृद्धि के बाद शरदकालीन खरीफ कृषि की आय में वृद्धि कम होकर 7.4 प्रतिशत पर आ जाने का अनुमान है। इसका कारण ज्यादातर फसलों की कीमतें कम होना है। इसके अलावा ग्रीष्मकालीन रबी फसलों की आय में वृद्धि की दर के 2020 के 8.7 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 10.4 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘हम मानते हैं कि 2021 की गर्मियों में ग्रामीण मांग अपेक्षाकृत कमजोर रहनी चाहिये। यह शहरी मांग की तुलना में बेहतर है, जो 2020-21 में महामारी के कारण गिर गयी है। 2021-22 में रिकवरी की अगुवाई शहरी मांग के करने का अनुमान है।’’ बैंक ने शरदकालीन खरीफ आय में 2020-21 के दौरान वृद्धि के अपने अनुमान को 9.4 प्रतिशत से घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया है, और 2019-20 में 10.6 प्रतिशत से नीचे कर दिया है। हालांकि ग्रीष्मकालीन रबी आय की वृद्धि की दर के अनुमान को 2020 के 8.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2021 में 10.4 प्रतिशत कर दिया है। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि कोरोनो वायरस महामारी के चलते अनियोजित लॉकडाउन ने महीनों तक आर्थिक गतिविधियों को बंद कर दिया था, जिसके चलते करीब दो करोड़ युवाओं की आजीविका छिन गयी। 

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