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रतन टाटा ने फोर्ड मोटर से ऐसे लिया था बेइज्जती का बदला, जगुआर लैंड रोवर खरीद कर दी थी सिट्टी-पिट्टी गुम

साल 1999 में, जब रतन टाटा और उनकी टीम ने अपना नया कार कारोबार फोर्ड को पेश किया, तो उन्हें तिरस्कार का सामना करना पड़ा। फोर्ड के प्रतिनिधियों ने उनकी विशेषज्ञता पर सवाल उठाए।

Edited By: Sourabha Suman @sourabhasuman
Published : Oct 10, 2024 12:26 IST, Updated : Oct 10, 2024 12:26 IST
अधिग्रहण के ठीक एक साल बाद, 2009 तक, जगुआर लैंड रोवर ने प्रॉफिट के संकेत दिखाने शुरू कर दिए। - India TV Paisa
Photo:INDIA TV अधिग्रहण के ठीक एक साल बाद, 2009 तक, जगुआर लैंड रोवर ने प्रॉफिट के संकेत दिखाने शुरू कर दिए।

रतन टाटा दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन जाते-जाते वह टाटा ग्रुप के लिए और आम लोगों के लिए प्रेरणा के तौर पर स्थापित हो गए। सफल कैसे हुआ जाता है, रतन टाटा इसके एक तरह से आदर्श हैं। उन्होंने अपने जीवन में यह साबित किया कि अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो और कठिन परिश्रम किया जाए तो आप निश्चित तौर पर सफल होंगे। आज टाटा समूह की ऑटोमोबाइल कंपनी टाटा मोटर्स की सफलता के पीछे रतन टाटा की बहुत बड़ी भूमिका है। दरअसल, इसके पीछे एक ऐसी कहानी है जो इतिहास में दर्ज चुका है। यह कहानी फोर्ड मोटर से जुड़ी है, जिसने कभी रतन टाटा पर व्यंग किया था, उनका मजाक उड़ाया था। बस इसी वाकये ने रतन टाटा को ऐसा बदल दिया कि आगे चलकर उन्होंने दुनिया की दिग्गज और लग्जरी कार कंपनी जगुआर लैंड रोवर को ही खरीद लिया। इसके बाद तो मानो फोर्ड मोटर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी। यह खरीद केवल व्यवसाय के बारे में नहीं था - यह एक तरह का बदला भी था जो रतन टाटा ने फोर्ड से लिया था।आइए, जानते हैं कि आखिर क्या कहानी थी और कैसे रतन टाटा ने टाटा मोटर्स को आज इंटरनेशनल ऑटोमोबाइल कंपनी बना दिया।

फोर्ड मोटर के अधिकारियों ने कसा तंज

साल 1999 में, जब रतन टाटा और उनकी टीम ने अपना नया कार कारोबार फोर्ड को पेश किया, तो उन्हें तिरस्कार का सामना करना पड़ा। फोर्ड के प्रतिनिधियों ने उनकी विशेषज्ञता पर सवाल उठाए। यहां तक ​​कि आश्चर्य भी जताया कि उन्होंने पैसेंजर कार डिवीजन में क्यों कदम रखा। डेट्रॉयट की एक मीटिंग में, फोर्ड के अधिकारियों ने अहंकारपूर्वक टाटा के संघर्षरत कार डिवीजन को खरीदने की पेशकश की, इस प्रक्रिया में उन्हें नीचा दिखाया। दरअसल, रतन टाटा अपने यात्री कार व्यवसाय को बेचने के लिए फोर्ड से मिल रहे थे। फोर्ड ने टाटा से कहा कि वे कार व्यवसाय खरीदकर उन पर एहसान करेंगे। यह बात रतन टाटा को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने ऑटोमोबाइल बिजनेस को नहीं बेचने का फैसला किया। इसके बाद रतन टाटा ने कार ब्रांड पर दृढ़ संकल्प के साथ काम किया।

जगुआर लैंड रोवर का विकास

फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक, साल 1922 में स्वैलो साइडकार कंपनी के रूप में स्थापित जगुआर, स्पोर्ट्स सैलून और कारों की प्रमुख कंपनी के रूप में उभरा। साल 1989 में, फोर्ड ने जगुआर को 2.5 अरब डॉलर में खरीदा, ताकि इसकी लग्जरी अपील को भुनाया जा सके। इसके अलावा, एक और प्रसिद्ध कंपनी लैंड रोवर को भी फोर्ड ने साल 2000 में 2.7 अरब डॉलर में खरीदा था। हालांकि, ब्रांड में फिर से जान फूंकने के फोर्ड के प्रयास वित्तीय घाटे, कड़ी प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता संबंधी मुद्दों से प्रभावित हुए।

टाटा की हुई जीत

फोर्ड ने साल 1989 में जगुआर के लिए 2.5 अरब डॉलर और साल 2000 में लैंड रोवर के लिए 2.7 अरब डॉलर का पेमेंट किया, लेकिन दोनों ब्रांडों की बिक्री से उसे सिर्फ 1.7 अरब डॉलर ही मिले। फोर्ड ने जगुआर को मुख्य रूप से उस समय हुए नुकसान ($700 मिलियन) के चलते बेचा। जब 2008 में वैश्विक आर्थिक मंदी आई, तो फोर्ड को गंभीर वित्तीय संकटों का सामना करना पड़ा, जिससे वह दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया। इसी बीच, रतन टाटा ने अपना बदला लेने का अवसर भुनाया। टाटा मोटर्स, जो अब ऑटोमोटिव उद्योग में एक महत्वपूर्ण प्लेयर है, ने फोर्ड से जगुआर लैंड रोवर को मात्र 2.3 अरब में खरीद लिया। यह कैश लेन-देन रतन टाटा के लिए एक उल्लेखनीय बदलाव था, जिन्हें लगभग एक दशक पहले फोर्ड ने तिरस्कृत किया था।

अधिग्रहण के ठीक एक साल बाद, 2009 तक, जगुआर लैंड रोवर ने प्रॉफिट के संकेत दिखाने शुरू कर दिए। चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक माहौल के बावजूद, रतन टाटा के नेतृत्व और साहसिक फैसलों ने ब्रांड्स में जान फूंक दी और साल 2009 में 55 मिलियन पाउंड का शुद्ध लाभ हुआ। यह टाटा के रणनीतिक हस्तक्षेप की प्रभावशीलता को दर्शाता है।

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