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गरीबी पर भारत को मिली बड़ी जीत, 21.2% से घटकर 8.5% पर आई, लोगों के हाथ में आ रहा पैसा

2004-2005 और 2011-12 के बीच गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई और यह 38.6 प्रतिशत से घटकर 21.2 प्रतिशत रह गई। महामारी से पैदा हुई चुनौतियों के बावजूद इसमें गिरावट का सिलसिला जारी रहा और यह 21.2 प्रतिशत से घटकर 2022-24 में 8.5 प्रतिशत पर आ गई।

Edited By: Pawan Jayaswal
Published : Jul 03, 2024 18:22 IST, Updated : Jul 03, 2024 18:23 IST
भारत में गरीबी- India TV Paisa
Photo:FREEPIK भारत में गरीबी

आर्थिक शोध संस्थान एनसीएईआर के एक शोधपत्र में कहा गया है कि कोविड महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद भारत में गरीबी वित्त वर्ष 2011-12 के 21.2 प्रतिशत से घटकर 2022-24 में 8.5 प्रतिशत पर आ गई। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) के एक शोधपत्र में भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) की हाल ही में पूरी हुई तीसरी सीरीज के आंकड़ों के साथ पहली और दूसरी सीरीज के आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया गया है। यह शोधपत्र 'बदलते समाज में सामाजिक सुरक्षा दायरा पर पुनर्विचार' पर केंद्रित है।

2022-24 में 8.5% पर आ गई गरीबी

शोधपत्र कहता है कि 2004-2005 और 2011-12 के बीच गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई और यह 38.6 प्रतिशत से घटकर 21.2 प्रतिशत रह गई। महामारी से पैदा हुई चुनौतियों के बावजूद इसमें गिरावट का सिलसिला जारी रहा और यह 21.2 प्रतिशत से घटकर 2022-24 में 8.5 प्रतिशत पर आ गई। शोधपत्र के मुताबिक, आर्थिक वृद्धि और गरीबी की स्थिति में कमी से एक गतिशील परिवेश पैदा होता है, जिसके लिए कारगर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की जरूरत होती है।

लोगों के पास आ रहा पैसा

सामाजिक बदलाव की रफ्तार के साथ सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बनाए रखना भारत के लिए एक प्रमुख चुनौती होगी। नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी बी वी आर सुब्रह्मण्यम ने कुछ महीने पहले कहा था कि नवीनतम उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि देश में गरीबी घटकर पांच प्रतिशत रह गई है और ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों के पास पैसे आ रहे हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) ने फरवरी में वर्ष 2022-23 के लिए घरेलू उपभोग व्यय के आंकड़े जारी करते हुए कहा था कि 2011-12 की तुलना में 2022-23 में प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू व्यय दोगुने से भी अधिक हो गया है। तेंदुलकर समिति ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा को क्रमशः 447 रुपये और 579 रुपये निर्धारित किया था। बाद में योजना आयोग ने 2011-12 के लिए इसे बढ़ाकर 860 रुपये और 1,000 रुपये कर दिया था।

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