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IPO Watch: 80 फीसदी सरकारी कंपनियों के आइपीओ ने निवेशकों को कराया नुकसान, LIC के पहले इन कंपनियों ने दिया झटका

दर्जनों सरकारी कंपनियों के IPO ने निवेशकों को पैसा डुबोया है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 12 वर्षों के दौरान बाजार निवेशकों को सरकारी कंपनियों (CPSE) के IPO से 4,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है ।

India TV Paisa Desk Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: June 13, 2022 18:04 IST
IPO (File photo)- India TV Paisa
Photo:GOOGLE

IPO (File photo)

Highlights

  • सरकारी कंपनियों के IPO ने निवेशकों के पैसे डुबोए
  • सिर्फ HAL कंपनी ने ही निवेशकों को फायदा पहुंचाया
  • IPO में निजी कंपनियों ने सबसे ज्यादा रिटर्न दिया है

IPO Watch: LIC के IPO में पैसा लगाने वाले निवेशक भारी नुकसान में हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि LIC पहली सरकारी कंपनी है जिसने निवेशकों को घाटा पहुंचाया है। इससे पहले दर्जनों सरकारी कंपनियों के IPO ने निवेशकों को पैसा डुबोया है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 12 वर्षों के दौरान बाजार निवेशकों को सरकारी कंपनियों (CPSE) के IPO से 4,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। 2010 और 2022 के बीच कुल 23 CPSE IPO बाजार में आए। इनमें से LIC सबसे बड़ी कंपनी थी । LIC के अलावा कोल इंडिया, सामान्य बीमा निगम, न्यू इंडिया एश्योरेंस, भारतीय रेलवे वित्त निगम और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के भी IPO आए लेकिन एचएएल को छोड़कर सभी के शेयर गिरते चले गए।

सिर्फ HAL ने निवेशकों को फायदा दिया

प्राइम डेटाबेस द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार एलआईसी, कोल इंडिया और जीआईसी जैसी कंपनियों का IPO प्राइस 10000 करोड़ या उससे अधिक ही था जबकि शेष तीन NIA, IRFC और HAL का IPO प्राइस 4,000 करोड़ और 10,000 करोड़ था। बाकी बाजार में 17 IPO जो हिट हुए उनका IPO प्राइस 120 से 1500 करोड़ रुपए के बीच था। बीएसई के आंकड़े बताते हैं कि 4,000 करोड़ से अधिक के IPO में सिर्फ एचएएल ने ही अपने निवेशकों को बेहतर रिटर्न दिया है। 

निजी कंपनियों ने बंपर मुनाफा कराया

कई सार्वजनिक उपक्रमों ने निवेशकों को निराश किया है वहीं बीते दो सालों में कई प्राइवेट कंपनियों ने निवेशकों को मालामाल करने का काम किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्राइवेट के विपरीत सरकार सिर्फ  मुनाफे के लिए कंपनी नहीं चला सकती है। इसलिए अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। अपने पीएसयू समकक्षों की तुलना में निजी क्षेत्र की इकाइयां कुशल मानी जाती हैं। सरकार ने भी कई बार स्वीकार किया है कि इसकी भूमिका शासन करने की है न कि व्यापार चलाने की।

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