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क्या है आर्टिकल 15 में, जिस पर आयुष्मान खुराना फिल्म लेकर आ रहे हैं?

आखिर ये आर्टिकल 15 है क्या? क्या भारत में ऐसे विषय पर अन्य फिल्म बनी है, आइए जानते हैं...

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मुंबई: आयुष्मान खुराना की फिल्म 'आर्टिकल 15' का ट्रेलर आज रिलीज हो गया है। इस ट्रेलर में एक ऐसे मुद्दे को उठाया गया है जो फिल्मों के लिए ज्यादातर अछूत ही रहा है। यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है, देश में किस तरह से जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव किया जाता है और किस तरह से निचले तबके के लोगों के लिए जीना मुश्किल होता है, इस फिल्म में इसे ही दिखाया गया है। इस फिल्म का निर्देशन 'मुल्क' बनाने वाले निर्देशक अनुभव सिन्हा ने किया है। इस फिल्म का नाम आर्टिकल 15 है इसकी भी वजह है। दरअसल हमारे संविधान में तो लिखा गया है कि किसी भी वर्ग, जाति, लिंग या धर्म के व्यक्ति में किसी तरह का अंतर नहीं किया जाएगा लेकिन देश में क्या हो रहा है इससे ना आप अन्जान हैं और ना ही हम। 

पहले आप आर्टिकल 15 का ट्रेलर देखिए उसके बाद हम आपको बताते हैं कि ये आर्टिकल 15 है क्या।

क्या है आर्टिकल 15?

संविधान में अनुच्छेद होते हैं, और 15वां अनुच्छेद ही आर्टिकल 15 है। संविधान के आर्टिकल 15 के मुताबिक आप किसी भी व्यक्ति से धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेद-भाव नहीं कर सकते हैं। आर्टिकल 15 में क्या लिखा है आइए आपको प्वाइंटर में बताते हैं।

  • राज्य, किसी नागरिक से केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी भी आधार पर किसी तरह का कोई भेद-भाव नहीं करेगा।
  • किसी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर किसी दुकान, सार्वजनिक भोजनालय, होटल और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों जैसे सिनेमा और थियेटर इत्यादि में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है। इसके अलावा सरकारी या अर्ध-सरकारी कुओं, तालाबों, स्नाघाटों, सड़कों और पब्लिक प्लेस के इस्तेमाल से भी किसी को इस आधार पर नहीं रोक सकते हैं।
  • यह अनुच्छेद किसी भी राज्य को महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधा देने से नहीं रोकेगा।
  • इसके अलावा यह आर्टिकल किसी भी राज्य को सामाजिक या शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष प्रावधान बनाने से भी नहीं रोकेगा।

इस टॉपिक पर अन्य फिल्में?

'आर्टिकल 15' अपने आप में एक अनोखी फिल्म है। लेकिन जाति के आधार पर अंतर पर पहले भी कुछ फिल्में बन चुकी हैं हालांकि वो फिल्में ज्यादातर प्रेम संबंधों पर आधारित थीं।

सुजाता

साल 1959 में 'सुजाता' नाम की फिल्म आई थी। इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय थे। इस फिल्म में सुनील दत्त और नूतन लीड रोल में थे। यह फिल्म भारत में प्रचलित छुआछूत की कुप्रथा को दर्शाती है। इस फ़िल्म की कहानी एक ब्राह्मण पुरुष और एक अछूत कन्या के प्रेम की कहानी है। 

एक सभ्रांत ब्राह्मण दम्पति उपेन्द्र चौधरी (तरुण बोस) तथा चारु (सुलोचना) के घर काम करने वाले की पत्नी समेत हैजे के कारण मृत्यु हो जाती है और वह अपने पीछे एक नवजात बच्ची छोड़ जाते हैं जिसे चारु की ज़िद से उपेन्द्र के परिवार की आया पालने लग जाती है और जिसका नाम सुजाता (बड़ी होकर नूतन) रखा जाता है। उपेन्द्र दम्पति की अपनी भी एक नवजात बच्ची होती है जिसका नाम होता है रमा (बड़ी होकर शशिकला)। चूंकि सुजाता का पिता अछूत जाति से था इसलिए जब उपेन्द्र की बुआ (ललिता पवार) उनके घर आती हैं तो सुजाता को छुपाने की कोशिश किये जाने के बावजूद बुआ को पता चल जाता है और उपेन्द्र दम्पति को वह निर्देश देती है कि उसे किसी भी तरह से उसी की जात बिरादरी में भेज दिया जाये। लेकिन सारे प्रयास विफल हो जाते हैं। सुजाता उपेन्द्र परिवार में ही बड़ी होती है और उपेन्द्र दम्पति को ही वह अपना माँ-बाप समझने लगती है। रमा भी उसको अपनी बड़ी बहन मानती है। लेकिन सुजाता अनपढ होती है जबकि रमा कॉलेज में पढ़ती है।
बुआ का नवासा अधीर (सुनील दत्त) जब शहर से पढ़ाई कर वापस आता है तो उसे सुजाता को देखते ही प्यार हो जाता है जबकि बुआ चाहती है कि अधीर और रमा का विवाह हो। सुजाता भी अधीर को चाहने लगती है। एक दिन जब चारु और बुआ के बीच चल रही बातचीत को जब सुजाता सुनती है तो उसे पता चलता है कि वह अछूत है। वह अधीर से किनारा करने की कोशिश करती है लेकिन अधीर नये ख्यालात का लड़का है और वह इन दकियानूसी बातों को नहीं मानता है। 
एक दिन एक हादसे में चारु को चोट लग जाती है और उसे खून देने की ज़रुरत पड़ती है। केवल सुजाता का ही खून चारु के खून से मिलता है इसलिए चारु को सुजाता का खून चढ़ता है। इससे पहले चारु बुआ के बहकावे में आकर सुजाता को अधीर से प्रेम करने के लिए दुत्कारती थी, लेकिन अब चारु सुजाता को अपना लेती है और आखिरकार बुआ भी इस रिश्ते को अपनी मंज़ूरी दे देती है। इस फ़िल्म को १९५९ में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

अछूत कन्या

अछूत कन्या साल 1936 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म की कहानी ऊँची जाति के लड़के (अशोक कुमार) और नीची जाति की लड़की (देविका रानी) के प्रेम संबंध पर आधारित है। 1936 के दौर में इस प्रकार के विचारशील मुद्दे पर बनी इस फिल्म को महात्मा गांधी द्वारा भी सराहा गया था|

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