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भारत कोरोना वैक्सीन बनाने के करीब? तीन टीके ह्यूमन ट्रायल के चरण में पहुंचे

भारत के वैज्ञानिक और कई दवा कंपनियां भी वैक्सीन पर काम कर रहे हैं और जो रिपोर्ट्स आ रही हैं उससे लगता यही है कि कोरोना वैक्सीन भारत ही बनाएगा।

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नई दिल्ली: पूरी दुनिया में मौत बांटने वाला कोरोना वायरस चीन ने फैलाया लेकिन इससे बचाने के लिए कई देश वैक्सीन तैयार करने की कोशिश में लगे हुए है। चीन से लेकर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक दावा किया जा रहा है कि वैज्ञानिक कोरोना से बचाने वाली वैक्सीन बनाने वाले हैं। टेस्ट किए जा रहे हैं लेकिन अब तक कहीं से कोई गुड न्यूज नहीं आई है। भारत के वैज्ञानिक और कई दवा कंपनियां भी वैक्सीन पर काम कर रहे हैं और जो रिपोर्ट्स आ रही हैं उससे लगता यही है कि कोरोना वैक्सीन भारत ही बनाएगा।

कोरोना से जिस तरह भारत लड़ रहा है उसकी तारीफ WHO भी कर चुका है और अब वैक्सीन को लेकर भी हिंदुस्तानी वैज्ञानिक जल्द ही गुड न्यूज सुना सकते हैं। भारत की 6 दवा कंपनियां कोरोना वैक्सीन पर रात दिन काम कर रही है। ये कंपनियां करीब 70 तरह के टीकों का परीक्षण कर रही है और कम से कम तीन टीके ह्यूमन ट्रायल के चरण में पहुंच चुके हैं। ये कंपनियां जाइडस कैडिला, सीरम इंस्टिट्यूट, बॉयोलॉजिकल ई, भारत बॉयोटेक, इंडियन इम्युनोलॉजिकल और मिनवैक्स हैं।

कोरोना की टेंशन के बीच गुजरात से भी अच्छी खबर आई। गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (GBRC) में कोरोना वायरस के जीनोम सीक्वेंस की पहचान की गई है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने खुद ट्वीट करके ये जानकारी दी। जीनोम से वायरस की पहचान और वैक्सीन बनाने में मदद मिलेगी।

गुजरात में कई कोरोना वायरस पीड़ित मरीजों के शरीर से वायरस का जींस लिया गया। करीब 100 सैंपल का डीएनए टेस्ट किया गया, तब जाकर ये कामयाबी मिली। जीनोम सिक्वेंस से कोरोना वायरस की उत्पत्ति, दवा बनाने, वैक्सीन विकसित करने, वायरस के टारगेट और वायरस को खत्म करने को लेकर कई अहम बातें पता चलेंगी। जीनोम सीक्वेंसिंग वो प्रोसेस है जिसकी मदद से किसी वायरस की पूरी डीएनए चेन का पता लगाया जाता है। 

इन सबके बीच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के वैज्ञानिक रमन आर गंगाखेड़कर ने कहा है कि कोरोना वायरस भारत में 3 महीने से है, इसका म्यूटेशन बहुत जल्दी नहीं होता है। अब जो भी वैक्सीन बनती है, वह भविष्य में भी वायरस से लड़ने का काम करेगी। इसके अलावा भारत कोरोना से इलाज में कारगर टेक्नीक Plazma transfusion को भी अपनाने जा रहा है। दिल्ली के AIIMS में इसकी तैयारियां चल रही हैं।

अभी दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं। ऐसे में ब्लड प्लाज़्मा उसी तर्ज़ पर एक अस्थायी उपाय है जो मरीज़ के इम्यून सिस्टम को अपना एंटीबॉडीज बनाने के लिए तैयार करता है। जिस चीन से कोरोना की शुरुआत हुई थी वहां भी वैक्सीन की खोज का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है। अब चीन से ताजा खबर ये आई है कि वहां के वैज्ञानिकों ने  कोरोना टीके के लिए क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया है। ये ट्रायल का दूसरा फेज बताया जा रहा है।

चीन की मीडियी की खबर के मुताबिक 84 साल की उम्र वाले शख्स को ये वैक्सीन दी गई है, ये शख्स वुहान का रहने वाला है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वैक्सीन को जेनेटिक इंजिनियरिंग पद्धति से बनाया गया है और ये कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली बीमारी को रोकता है। पहले फेज में वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल में मुख्य ध्यान इसकी सुरक्षा पर था,जबकि दूसरे फेज में ध्यान इसकी क्षमता पर दिया जा रहा है। 

कोरोना के खिलाफ जंग में अमेरिका पूरी तरह आउटसोर्सिंग पर निर्भर है। प्लाज्मा तकनीक को छोड़कर वो अब तक कोरोना के खिलाफ कोई बड़ा और कारगर कदम नहीं उठा सका है लेकिन दूसरी तरफ भारत ने सीमित संसाधनों के बीच कोरोना से जमकर फाइट की है। भारत में भी जिस तरह से वैक्सीन पर रिसर्च हो रही है, जीनोम सीक्वेंस की पहचान हो चुकी है और प्लाज्मा तकनीक का इस्तेमाल कोरोना के इलाज में होने जा रहा है उससे लगता यही है कि कोरोना वाली वैक्सीन बनाने से भारतीय वैज्ञानिक ज्यादा दूर नहीं है।

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