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जानिए, वामन द्वादशी का महत्व और पूजा विधि

नई दिल्ली: हिन्दू मान्यताओं में एकादशी का बेहद महत्व है, क्योंकि हर एक एकादशी एक खास व्रत से जुड़ी है। इस दिन लोग पूर्ण विधि के अनुसार व्रत रखते हैं और व्रत से जुड़े देवी-देवता

वामन अवतार कब और कैसे हुआ

इसके बारें में पूर्ण जानकारी श्री भगवत पुराण के अष्टम स्कंध में बताया गया है। इसके अनुसार हिंदू धर्म का ग्रंथ श्री भगवत महापुराण के अष्टम् स्कंध के 17 वें अध्याय में इसके बारें में पूर्ण जानकारी दी गई है। उसके अनुसार जिस समय राजा बलि नें पराक्रम से तीनों लोकों को जीत लिया था। देवता लोग डर गए और अससे छिप-छिप कर रहनें लगे। तब देवताओं की माता अदिति नें भगवान विष्णु की उपासना की की औऱ पयोव्रत रखा यानि की बारह दिन सिर्फ दूध पिया। इनके व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु नें प्रकट होकर कहा कि हे देवी मै समझ सकता हूं कि आपनें इतना कठिन व्रत किसलिए रखा । आप अपने पुत्र इन्द्र का सिहांसन छिन जानें के कारण दुखी है, लेकिन आप चिंता न करें आपके व्रत सें मै प्रसन्न हुआ हूं, इसलिए मै  तुम्हारें पति कश्यप से तुम गर्भवती होगी और मै तुम्हें पुत्र के रुप में प्राप्त हूंगा और तुम्हारें पुत्र की रक्षा कंरुगा। इस बात को तुम किसी को बताना मत। इतना कह कर भगवान अंर्तध्यान हो गए।

इस व्रत के प्रभाव से अदिति को पुत्र की प्राप्ति हुई जिस समय भगवान नें जन्म लिया उस समय चंद्रमा श्रावण नक्षत्र में था और भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी। जिस समय भगवान का जन्म हुआ उस समय को विजया द्वादशी भी कहतें है। भगवान विष्णु नें अदिति को अपनें वरदान की याद दिलानें के लिए उनके सामनें असली रुप में प्रकट हुए जो कि चार भुजाओं में से एक में शंख, दूसरें में चक्र, तीसरें में गदा और चौथी भुजा में कमल धारण किए हुए थे। उनका रुप देश कर प्रजापति कश्यप भी आचंभित हो गए और उनका जय-जयकार करनें लगें। कश्यप और अदिति को देखतें-देखतें भगवान नें वामन का अवतार धारण कर लिया। भगवान ब्रहस्पति गुरु नें वामन अवतार में यज्ञोपवीत, प्रथ्वी ने कृष्ण मृग का चर्म, चंद्रमा नें दण्ड, माता अदिति नें कोपीन और कटि वस्त्र, ब्रह्मा जी नें कमण्डल, सप्त श्रृषि नें कुश, और सरस्वती नें रुद्राक्ष की माला धारण कराई और जगत जननी माता भगवती नें उनको भिक्षा दी। इसी कारण इस तिथि को वामन द्वादशी कहा जाता है।

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