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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र मां बगलामुखी मंदिर: पांडवों ने विजय प्राप्ति के लिए की थी यहां पूजा, दर्शन मात्र से हो जाते है कष्ट दूर

मां बगलामुखी मंदिर: पांडवों ने विजय प्राप्ति के लिए की थी यहां पूजा, दर्शन मात्र से हो जाते है कष्ट दूर

मां बगलामुखी एक ऐसा मंदिर है जहां दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है। जानिए इस मंदिर के बारे में खास बातें।

Baglamukhi Temple - India TV Hindi Image Source : INSTAGRAM/BAGALAMUKHII Baglamukhi Temple 

नवरात्रि के दिनों में माहौल भक्तिभय हो जाता है। जगह-जगह मंदिरों में लंबी कतारे लग जाती हैं, लोग माता के दर्शन कर उनका आर्शीवाद लेना चाहते हैं। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर आज हम आपको नलखेड़ा में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां बगलामुखी मंदिर के बारे में बताएंगे। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। जानिए बगलामुखी मंदिर से जुड़ी ऐसी बातें, जो शायद आप नहीं जानते होंगे।

मान्यता है कि मां बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णोदेवी और मां हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या प्राप्त होती है। कहा जाता है कि सोने जैसे पीले रंग वाली, चांदी के जैसे सफेद फूलों की माला धारण करने वाली और चंद्रमा के समान संसार को प्रसन्न करने वाली इस त्रिशक्ति का देवीय स्वरूप हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है।

अब बात करते हैं तीन मुख वाली मां बगलामुखी मंदिर के बारे में। कहा जाता है कि ये मंदिर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से 100 किलोमीटर दूर ईशान कोण में आगर मालवा जिला मुख्‍यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर नलखेड़ा में लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में विराजमान है।

मान्यता तो ये भी है कि महाभारत काल में यहीं से पांडवों को विजय श्री का वरदान प्राप्त हुआ था। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था। उस समय मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजमान थी। मान्यता है कि पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपत्तियों से मुक्ति पाई और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया।

ऐसी मान्यता है कि सिद्धिदात्री मां बगलामुखी के दाएं ओर धनदायिनी महालक्ष्मी और बाएं ओर विद्यादायिनी महासरस्वती विराजमान हैं। कहा जाता है कि मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है। एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और एक नलखेड़ा में। कहा जाता है कि नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आद्या शंकराचार्य जी द्वारा मां की प्रतिमा स्थापित की गयी, जबकि नलखेड़ा में इस स्थान पर मां बगलामुखी पीताम्बर रूप में शाश्वत काल से विराजित है। 


अहम बात ये है कि मां बगलामुखी की इस चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला है। मान्यता है कि ये मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है। बगलामुखी की यह प्रतिमा पीताम्बर स्वरूप की है। इसी कारण यहां पीले रंग की सामग्री चढ़ाई जाती है। जैसे कि पीला कपड़ा, पीली चूनरी, पीला प्रसाद और पीले फूल। 

इस मंदिर की पिछली दीवार पर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए स्वास्तिक बनाने का भी प्रचलन है। भक्तों का मानना है कि मनोकामनाओं की पूर्ति यहां होती है। मंदिर परिसर में हवन कुंड है जिसमें आम और खास सभी भक्त अपनी आहुति देते हैं।  अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले इस हवन में पीली सरसों, हल्दी, कमल गट्टा, तिल, जौ, घी, नारियल आदि का होम किया जाता है। मान्यता है कि माता के इस मंदिर में हवन करने से सफलता के अवसर दोगुने हो जाते है।  
 

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