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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र 102 साल पहले आज के ही दिन साईं बाबा ने द्वारकामाई ली थी समाधि, जानिए मंदिर की खास बातें

102 साल पहले आज के ही दिन साईं बाबा ने द्वारकामाई ली थी समाधि, जानिए मंदिर की खास बातें

आज से साईं बाबा को समाधि लिए पूरे 102 साल हो गए हैं। 15 अक्टूबर 1918 को दशहरे के दिन साईं बाबा ने द्वारकामाई में समाधि ली थी।

102 साल पहले आज के ही दिन साईं बाबा ने द्वारकामाई ली थी समाधि- India TV Hindi Image Source : INSTA/SHIRDI_SAIBABA_/OMSAIRAM36 102 साल पहले आज के ही दिन साईं बाबा ने द्वारकामाई ली थी समाधि

शिरडी के साईं बाबा में किसी भी व्यक्ति को बिना जाति-पात किए दर्शन हो जाते हैं। माना जाता है कि शिरडी साईं बाबा की कर्मस्थली होने के साथ-साथ यही देह त्याग किया था। जिस कारण हर साल लाखों लोग दर्शन करने के लिए शिरडी पहुंचते है। हर गुरुवार को भक्तों की लंबी लाइन लगती है। क्योंकि साईं बाबा को चमत्कारी मानी जाता है। 

आज से साईं बाबा को समाधि लिए पूरे 102 साल हो गए हैं। 15 अक्टूबर 1918 को दशहरे के दिन दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर साईं बाबा ने द्वारकामाई में समाधि ली थी। 

इस तरह साईं बाबा नश्वर शरीर का त्याग हो गए ब्रह्मलीन 

मान्यताओं के अनुसार दशहरा के कुछ दिन पहले ही साईं बाबा ने अपने एक भक्त रामचन्द्र पाटिल को विजयादशमी पर 'तात्या' की मौत की बात कही थी। तात्या बैजाबाई के पुत्र थे और बैजाबाई साईं बाबा की परम भक्त थीं। इस कारण तात्या साईं बाबा को 'मामा' कहकर बुलाते थे। इसी कारण साईं बाबा ने तात्या को जीवनदान देने का निर्णय लिया था।

जब साईं बाबा को लगा कि अब जाने का समय आ गया है, तब उन्होंने श्री वझे को 'रामविजय प्रकरण' (श्री रामविजय कथासार) सुनाने की आज्ञा दी थी। श्री वझे ने एक सप्ताह प्रतिदिन पाठ सुनायाष। जिसके बाद साईं बाबा ने उन्हें आठों प्रहर पाठ करने की आज्ञा दी। श्री वझे ने उस अध्याय की द्घितीय आवृत्ति 3 दिन में पूर्ण कर दी और इस प्रकार 11 दिन बीत गए। फिर 3 दिन और उन्होंने पाठ किया। अब श्री वझे बिल्कुल थक गए थे इसलिए उन्हें विश्राम करने की आज्ञा मांगी। साईं बाबा अब बिल्कुल शांत बैठ गए और आत्मस्थित होकर वह अंतिम क्षण की प्रतीक्षा करने लगे। 27 सितंबर 1918 को साईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा था। इसके साथ ही उन्होंने अन्न-जल सब कुछ त्याग दिया था। साई बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था लेकिन उसकी जगह साईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए।

साईं बाबा ने पूरा जीवन बिताया शिरडी में

महाराष्ट्र के अहमदनगर के मौजूद शिरडी गांव में साईं बाबा ने अपना पूरा जीवन व्यतीत किया। कहा जाता है कि जब वह 16 साल के थे तो यहां पर आ गए थे और समाधि लेने तक यही रहें। साईं बाबा का जन्म कब हुआ इस बारे में अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। शिरडी में साईं बाबा का भव्य मंदिर बना हुआ है। जहां पर भक्तों की काफी भीड़ होती है।

साईं मंदिर में चढ़ावा

हर साल साईं मंदिर में अपनी इच्छा के अनुसार चढ़ावा चढ़ाया जाता है। यगह एक ऐसा मंदिर है जहां पर रिकार्ड तोड़ चढ़ावा चढ़ता है। कई लोग तो करोड़ों रुपए का गुप्तदान भी कर देते है। आधिकारिक पुष्टि के अनुसार हर साल करीब 5 करोड़ का चढ़ावा साईं मंदिर में आता है। 

साईं बाबा मंदिर के आसपास घूमने की जगह

अगर आप साईं के दर्शन करने जा रहे हैं तो आसपास कई धार्मिक स्थल मौजूद है। जिनकी अपनी एक मान्यता है। वहीं पर आप भी दर्शन करने जा सकते हैं। साईं मंदिर से करीब 65 किलोमीटर शनि शिंगणापुर है। यहां पर तेल चढ़ाने से आपके कुंडली से साढ़ेसाती और ढैय्या हट जाती है।  इसके अलावा भगवान शिव से समर्पित खानडोबा मंदिर मंदिर मुख्य मार्ग में ही स्थित है।   इस मंदिर के मुख्य पुजारी महलसापति ने साईंं का शिरडी में स्वागत करते हुए कहा था - 'आओ साईंं'। जिसके साथ ही उन्हें भक्त साईं बाबा के नाम से पुकारने लगे थे। इस मंदिर में आपको महलसापति, उनकी पत्नी और बेटे की तस्वीर लगी हुई नजर आएगी।

साईं म्यूजियम में साईं बाबा ने अपने जीवन में किन-किन चीजों का इस्तेमाल किया था। वह सभी चीजें इस म्यूजियम में मौजूद है। इसमें आपको साईंं का पादुका, खानडोबा के पुजारी को साईंं के दिए सिक्के, समूह में लोगों को खिलाने के लिए इस्तेमाल हुए बर्तन, साईंं द्वारा इस्तेमाल की गई पीसने की चक्की आदि देखने को मिल जाएगी।  

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