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Hindi News महाराष्ट्र Mumbai High Court: "आयोग कर्मचारी के खिलाफ नियोक्ता की कार्रवाई में NCSC को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं"

Mumbai High Court: "आयोग कर्मचारी के खिलाफ नियोक्ता की कार्रवाई में NCSC को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं"

Mumbai High Court: याचिका के अनुसार, चंद्रप्रभा केदारे को जनवरी 1973 में महाराष्ट्र के नासिक के देवलाली में छावनी बोर्ड में स्टाफ नर्स के रूप में नियुक्त किया गया था। वर्ष 2013 में, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई और उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेने के लिए कहा गया।

Mumbai High Court- India TV Hindi Image Source : ANI Mumbai High Court

Highlights

  • स्टाफ नर्स के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई
  • NCSC के आदेश में महिला को सेवानिवृत्त कर दिया गया
  • मामले में मुंबई हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया

Mumbai High Court: मुंबई हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) को नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारी के खिलाफ लिए गए निर्णय में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। हाल के एक आदेश में, न्यायमूर्ति आर डी धानुका और न्यायमूर्ति कमल खता की पीठ ने रक्षा मंत्रालय द्वारा इस साल मार्च में NCSC द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका मंजूर कर ली, जिसमें एक स्टाफ नर्स के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की फिर से जांच करने का निर्देश दिया गया था। 

नर्स की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई

हाईकोर्ट ने 27 जुलाई को आदेश पारित किया और इसकी एक प्रति शुक्रवार को मिली। याचिका के अनुसार, चंद्रप्रभा केदारे को जनवरी 1973 में महाराष्ट्र के नासिक के देवलाली में छावनी बोर्ड में स्टाफ नर्स के रूप में नियुक्त किया गया था। वर्ष 2013 में, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई और उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेने के लिए कहा गया। केदारे ने अन्याय और उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए NCSC का रुख किया, जिसके बाद आयोग ने अपने मार्च के आदेश में दावा किया कि रक्षा मंत्रालय ने बिना उचित प्रक्रिया अपनाए महिला को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया। 

कोर्ट ने NCSC के आदेश को रद्द किया

NCSC के आदेश को रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि आयोग ने पूरी तरह से अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर काम किया। हमारे विचार में, आयोग के पास प्रक्रिया का पालन करने के बाद केदारे के खिलाफ नियोक्ता द्वारा पहले ही लिए गए निर्णय में हस्तक्षेप करने का ऐसा कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। आयोग किसी कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने वाले नियोक्ता द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपीलीय प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर सकता है।

पीठ ने NCSC के आदेश को रद्द कर दिया और केदारे द्वारा उसके समक्ष दायर शिकायत को खारिज कर दिया। आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि अनुसूचित जाति समुदाय से आने वालीं केदारे के खिलाफ अन्याय हुआ और अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा कठोर प्रकृति की थी। अदालत ने कहा कि केदारे ने अपनी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के खिलाफ उनके पास उपलब्ध सभी कानूनी उपायों का इस्तेमाल कर लिया था और जब वह सफल नहीं हो सकीं, तो उन्होंने NCSC के समक्ष एक आवेदन दायर किया था।