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Hindi News विदेश एशिया ताशकंद छोड़ने से पहले लाल बहादुर शास्त्री के स्मारक पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे विदेश मंत्री

ताशकंद छोड़ने से पहले लाल बहादुर शास्त्री के स्मारक पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे विदेश मंत्री

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में स्थित देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के स्मारक पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

Jaishankar, Jaishankar Lal Bahadur Shastri, Lal Bahadur Shastri, Jaishankar Lal Bahadur Shastri Tash- India TV Hindi Image Source : TWITTER/DRSJAISHANKAR विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में स्थित देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के स्मारक पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

ताशकंद: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में स्थित देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के स्मारक पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। बता दें कि जयशंकर उज्बेकिस्तान की मेजबानी में आयोजित सम्मेलन  ‘सेंट्रल एंड साउथ एशिया : कनेक्टिविटी’ में हिस्सा लेने के लिए ताशकंद पहुंचे थे। इस सम्मेलन में  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और लगभग 35 देशों के नेता शामिल हुए। विदेश मंत्री ने इस सम्मेलन में परोक्ष रूप से चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) पर भी निशाना साधा था।

ताशकंद में हुआ था लाल बहादुर शास्त्री का निधन
भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 में भीषण जंग हुई थी। इस जंग के खत्म होने के कुछ महीने बाद जनवरी 1966 में दोनों देशों के शीर्ष नेता तब के सोवियत संघ में आने वाले ताशकंद में एक शांति समझौते में शामिल हुए थे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गई। शास्त्री ने दबाव में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और माना जाता है कि इसी के तनाव के चलते उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। शास्त्री की याद में ताशकंद में एक स्मारक बनवाया गया।

जयशंकर ने कहा- संपर्क निर्माण में विश्वास जरूरी
जयशंकर ने शुक्रवार को सम्मेलन में कहा कि संपर्क निर्माण में विश्वास आवश्यक है क्योंकि यह एकतरफा नहीं हो सकता और संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इसके मूलभूत सिद्धांत हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संपर्क प्रयास आर्थिक व्यवहार्यता एवं वित्तीय दायित्व पर आधारित होने चाहिए तथा इनसे कर्ज का भार उत्पन्न नहीं होना चाहिए। जयशंकर की इस टिप्पणी को परोक्ष रूप BRI के संदर्भ में देखा जा रहा है। बता दें कि BRI की वैश्विक निन्दा होती रही है क्योंकि इसके चलते कई देश चीन के कर्ज तले दब गए हैं।

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