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क्या 17 सितंबर से थम जाएगी गुरुग्राम रैपिड मेट्रो? परिचालन को कोई नहीं है तैयार

गुरुग्राम रैपिड मेट्रो का परिचालन जारी रखने की समयसीमा 17 सितंबर को समाप्त होने से पहले इस बात की अटकलें तेज हो गई हैं कि क्या हुडा इसका परिचालन करेगा, क्योंकि रैपिड मेट्रो रेल गुड़गांव लिमिटेड (आरएमजीएल) ने आगे इसका परिचालन करने से अपनी असमर्थता जाहिर की है।

Reported by: IANS
Updated : September 15, 2019 10:55 IST
Gurugram Rapid Metro- India TV Paisa

Gurugram Rapid Metro

गुरुग्राम। गुरुग्राम रैपिड मेट्रो का परिचालन जारी रखने की समयसीमा 17 सितंबर को समाप्त होने से पहले इस बात की अटकलें तेज हो गई हैं कि क्या हुडा इसका परिचालन करेगा, क्योंकि रैपिड मेट्रो रेल गुड़गांव लिमिटेड (आरएमजीएल) ने आगे इसका परिचालन करने से अपनी असमर्थता जाहिर की है। रैपिड मेट्रा का निर्माण आईएलएंडएफएस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने दो चरणों में किया था। पहले चरण में कंपनी ने 5.1 किलोमीटर एलिवेटेड ट्रैक का निर्माण किया था, जो राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या आठ स्थित शंकर चौक से सिकंदरपुर डीएमआरसी स्टेशन को जोड़ता है और इसमें छह स्टेशन हैं। इसके दूसरे चरण को 31 मार्च, 2017 को खोला गया।

तीन साल में 1,450 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित इस मेट्रो की सेवा लोगों के लिए नवंबर 2013 में शुरू हुई थी। हालांकि गुरुग्राम के निवासी आपको बताएंगे कि मेट्रो से सफर करने वालों की तादाद में कमी, खर्चीली सेवा, अनुपयुक्त लोकेशन के कारण मेट्रो का परिचालन बंद होने के कगार पर है।

आईएलएंडएफएस के दो स्पेशल परपस व्किल्स (एसपीवी)- रैपिड मेट्रो रेल गुड़गांव लिमिटेड (आरएमजीएल) और रैपिड मेट्रो रेल गुड़गांव साउथ लिमिटेड द्वारा क्रमश: 2013 और 2017 से गुरुग्राम में रैपिड मेट्रो का परिचालन किया जा रहा है और दोनों ने प्रदेश सरकार को करार तोड़ने का आरोप लगाते हुए सेवा बंद करने का नोटिस भेजा है।

अब हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (हूडा) पर न सिर्फ इसके परिचालन का दायित्व है, बल्कि यह भी तय करना है कि कौन-सा करार तोड़ा गया है। गुरुग्राम के लोग आपको बताएंगे कि लाइन को एक्सप्रेसवे से होकर पुराने गुरुग्राम तक ले जाना चाहिए, जहां सार्वजनिक परिवहन की नितांत आवश्यकता है।

हुडा को मेट्रो में यात्रियों की तादाद बढ़ाने के तौर-तरीकों और इलाकों में लाइन का विस्तार करने के संबंध में अध्ययन करना होगा। इसे दिल्ली मेट्रो से जोड़ना बदलावकारी साबित हो सकता है। आईएएनएस ने यह जानने की कोशिश की कि निजी क्षेत्र के स्वामित्व वाली भारत की पहले मेट्रो की ऐसी स्थिति आखिर क्यों बन गई कि कोई इसका परिचालन नहीं करना चाहता है। आईएलएंडएफ से संपर्क किया तो उसने यह कहते हुए औपचारिक रूप से कोई टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया कि मसला न्यायालय में विचाराधीन है।

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