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Explainer: GST काउंसिल पर SC के फैसले के क्या हैं मायने, अदालत के फैसले से बदल जाएगा Tax सिस्टम?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा इसलिए यह तर्क कि यदि जीएसटी परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होंगी, तो जीएसटी का पूरा ढांचा चरमरा जाएगा, यह टिकने वाला नहीं है।

Sachin Chaturvedi Edited by: Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Published on: May 20, 2022 17:04 IST
GST- India TV Paisa

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Highlights

  • जीएसटी काउंसिल (GST Council) की सिफारिशें केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी नहीं: SC
  • काउंसिल पूरे देश में वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक ही कर निर्धारित करती है
  • सिर्फ एक बार दिसंबर 2019 में लॉटरी पर लेवी के मामले में ही वोटिंग की नौबत आई थी

भारतीय टैक्स व्यवस्था में बड़े बदलाव के साथ जुलाई 2017 को लागू हुआ GST सिस्टम इस साल अपने 5 साल पूरे करने जा रहा है। GST कानून के अनुसार इस व्यवस्था की धुरी केंद्र और राज्य के प्रतिनिधियों वाली जीएसटी काउंसिल (GST Council) है, जो समय समय पर टैक्स व्यवस्था की समीक्षा करती है और इसके बदलाव केंद्र और सभी राज्यों में लागू होते हैं। 

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इसी व्यवस्था को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने कहा कि जीएसटी काउंसिल (GST Council) की सिफारिशें केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास जीएसटी पर कानून बनाने की शक्तियां हैं लेकिन काउंसिल को एक व्यावहारिक समाधान हासिल करने के लिए सामंजस्यपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा

यह तर्क टिकने वाला नहीं है कि यदि जीएसटी परिषद की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होंगी, तो जीएसटी का पूरा ढांचा चरमरा जाएगा ।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य काउंसिल का निर्णय मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। क्या जीएसटी लागू होने के बाद भी राज्यों में अलग अलग टैक्स सिस्टम होगा? यदि ऐसा होगा तो वन नेशन वन टैक्स की सोच का क्या होगा? आइए इंडिया टीवी के साथ कोर्ट के इसी फैसले को गहराई से जानने का प्रयास करते हैं। 

क्या है इस फैसले का बैकग्राउंड

सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला दरअसल गुजरात हाईकोर्ट को दी गई चुनौती से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखते हुए यह फैसला दिया। इससे पहले हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि ‘रिवर्स चार्ज’ के तहत समुद्री माल के लिए आयातकों पर एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) नहीं लगाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीएसटी काउंसिल की सिफारिशें केंद्र और राज्यों पर बाध्यकारी नहीं हैं। अनुच्छेद 279बी को हटाना और संविधान संशोधन अधिनियम 2016 से अनुच्छेद 279 (1) को शामिल करने के पीछे संसद का इरादा सिफारिशों के लिए था। 

SC ने कहा, जीएसटी काउंसिल सिर्फ एक प्रेरक की तरह है क्योंकि जीएसटी फ्रेमवर्क का उद्देश्य सहकारी संघवाद (Co-operative federalism) को बढ़ावा देना था।

क्या होती है जीएसटी काउंसिल 

जीएसटी (GST) काउंसिल कुछ राज्यों के लिए विशेष दरों और प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए कर (TAX) निर्धारण, कर में छूट, रूपों के घोषित तिथि अथवा कर कानून और कर समय सीमा तय करती है। जीएसटी परिषद (काउंसिल) की जिम्मेदारी पूरे देश में वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक ही कर निर्धारित करती है। जीएसटी परिषद के अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री होते हैं। 

खतरे में है जीएसटी काउंसिल ?

जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जीएसटी काउंसिल की वैधता पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। हालांकि राजस्व सचिव तरुण बजाज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केवल मौजूदा कानून का दोहराव है, जो राज्यों को टैक्सेशन पर काउंसिल की सिफारिश को स्वीकार करने या खारिज करने का अधिकार देता है। बजाज ने साथ ही कहा कि इस शक्ति का इस्तेमाल पिछले पांच साल में किसी ने भी नहीं किया। 

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Image Source : INDIATV
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आ सकती है मुकदमों की बाढ़ 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तत्काल असर यह हो सकता है कि जीएसटी सिस्टम के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ सकती है। राज्य जीएसटी काउंसिल के पिछले फैसलों के खिलाफ कोर्ट का रुख कर सकते हैं। संभव है कि इससे जीएसटी व्यवस्था ही पटरी से उतर जाए। यह कंपनियों और इकॉनमी के लिए अच्छा नहीं होगा। देश की इकॉनमी अभी कोरोना महामारी के असर से पूरी तरह निकल नहीं पाई है। रूस-यूक्रेन संकट ने भी उसकी मुश्किलें बढ़ाई हैं। 

क्या पहले अनिवार्य थीं सिफारिशें?

तरुण बजाज ने कहा कि संवैधानिक संशोधन के अनुसार जीएसटी काउंसिल की सिफारिशें हमेशा एक मार्गदर्शन थीं और इनका पालन अनिवार्य नहीं था। जीएसटी कानून कहता है कि काउंसिल सिफारिश करेगी और इसमें आदेश देने की बात कहीं नहीं है। चूंकि राज्य के प्रतिनिधि ही काउंसिल में फैसला लेते हैं ऐसे में टकराव की संभावना नहीं होती है।

क्या पटरी से उतरेगा टैक्स सिस्टम ?

अगर कोई राज्य जीएसटी काउंसिल की सिफारिश को स्वीकार नहीं करने का फैसला करता है तो समस्याएं और बढ़ सकती हैं। हालांकि सरकार ने जीएसटी के मौजूदा कानूनी स्वरूप में किसी भी प्रकार के बदलाव की संभावना से इंकार कर दिया है। जीएसटी अधिनियम की धारा नौ स्पष्ट रूप से कहती है कि टैक्स रेट का फैसला काउंसिल की सिफारिशों पर आधारित होना चाहिए।

भविष्‍य में इसके क्‍या मायने

भविष्‍य में इस फैसले के असर कहीं ज्‍यादा बड़े होंगे। जीएसटी परिषद अब सिफारिश करने में पहले ज्‍यादा सतर्कता बरतेगी। यहां राज्यों को ज्‍यादा बड़ा रोल भी मिलेगा। सभी राज्‍य अपने हितों के अनुसार परिषद पर सिफारिश के लिए दबाव बना सकेंगे। पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब सीबीआईसी की ओर से जारी नोटिफिकेशन को महाराष्‍ट्र सरकार ने मानने से इनकार कर दिया और आपने हितों के हिसाब से नई गाइडलाइन तैयार की। इसका एक असर जीएसटी वसूली पर भी दिख सकता है। 

फैसले पर क्या है सरकार का बयान 

जीएसटी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वित्त मंत्रालय का बयान आया है। मंत्रालय का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जीएसटी व्यवस्था के कामकाज पर कोई असर नहीं होगा। कोर्ट ने सिर्फ जीएसटी के कामकाज की अपनी तरह से व्याख्या दी है। फैसले में किसी भी प्रकार से कोई नया नियम जोड़ा नहीं गया है। कोर्ट ने कहा है कि जीएसटी काउंसिल केंद्र और राज्यों के बीच आपसी सामंजस्य और सहकारी संघवाद को सर्वोत्तम उदाहरण है। जीएसटी काउंसिल में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं, और उनके बीच सर्वसम्मति से ही सिफारिेशें पेश की जाती हैं। 

सिर्फ एक बार हुई है काउंसिल में वोटिंग

जीएसटी काउंसिल में सामान्यतया निर्णय सर्वसम्म​ति से होते हैं। सिर्फ एक बार दिसंबर 2019 में लॉटरी पर लेवी के मामले में ही वोटिंग की नौबत आई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कई बार इसे सहकारी संघवाद (Cooperative federalism) का जीता-जागता उदाहरण बता चुके हैं

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