Highlights
- बीते 70 दिनों से देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ
- एक्साइज और वैट दरों में कटौती के बाद 10 से 17 रुपये तक की गिरावट आई थी
- 4 नवंबर के बाद से 95.23 रुपये में पेट्रोल व 86.49 रुपये में डीजल मिल रहा है
पेट्रोल या डीजल से चलने वाली कार और बाइक चलाने वालों के अच्छे दिन चल रहे हैं। इसे चुनावी राहत कहें या आपकी खुशनसीबी! जो भी हो, बीते 70 दिनों से देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। 4 नवंबर को दिवाली के दिन केंद्र और भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा एक्साइज और वैट दरों में कटौती के बाद 10 से 17 रुपये तक की गिरावट आई थी। तब से दामों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसकी आचार संहिता बीते शनिवार को ही लागू हुई है। लेकिन तेल के दाम करीब ढाई महीने से स्थिर हैं। माना जा रहा है कि चुनाव खत्म होने तक यानि 10 मार्च तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों से लोगों को राहत मिलती रहेगी। यूपी के कानपुर में 4 नवंबर के बाद से 95.23 रुपये में पेट्रोल व 86.49 रुपये में डीजल मिल रहा है। वहीं मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में पेट्रोल की कीमत 107.23 रुपये और डीजल की कीमत 90.87 रुपये प्रति लीटर है।
तेल कंपनियां तय करती हैं कीमतें?
कागजी तौर पर देखा जाए तो पेट्रोल डीजल की कीमतें तय करने का अधिकार सरकारी तेल कंपनियों पर है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में देश में राज्यों के चुनावों के बीच तेल की कीमतों पर ब्रेक लग जाता है। कच्चे तेल का भाव इस समय 84 डॉलर के पार है, बावजूद इसके आने वाले समय में इनके दामों में बढ़ोत्तरी का कोई इरादा नहीं है।
क्रूड की कीमतों में बढ़ोत्तरी
नवंबर से देखा जाए तो क्रूड की कीमतें गिरावट के बाद एक बार फिर चढ़ने लगी हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 11 नवंबर को क्रूड ऑयल का भाव 85 डॉलर प्रति बैरल था। एक दिसंबर को घटकर यह 69 डॉलर पर आ गया था। तब से लेकर अब तक इसमें करीबन 16 डॉलर की बढ़ोत्तरी हुई है। दिसंबर में जहां क्रूड की कीमत में कटौती का फायदा जहां ग्राहकों को नहीं मिला, वहीं तेल कंपनियों ने 16 डॉलर के उछाल से भी आम जनता को दूर रखा। दिसंबर के बाद से कीमतें फिर उफान पर हैं। फिलहाल क्रूड 84 डॉलर पर है, जिसके 95 डॉलर तक जाने की संभावना है। ऐसे में चुनावों के बाद तगड़ा झटका लगना तय है।
सरकार के इंपोर्ट बिल पर असर
कच्चे तेल की कीमतोें का सीधा असर भारत के इंपोर्ट बिल पर पड़ता है। साथ ही यह महंगाई और रुपए की कीमत के लिए भी हानिकारक है। कोरोना की दस्तक के बावजूद देश में परिवहन गतिविधियां जारी हैं। जिससे तेल के उपयोग में कोई कमी नहीं है। क्रूड महंगा होने के बावजूद कीमतें न बढ़ाना सरकारी खजाने की सेहत के लिए फायदेमंद कतई नहीं है।