Highlights
- इस्पात की कीमतें करीब 40 प्रतिशत टूट चुकी हैं
- दाम गिरकर 57,000 रुपये प्रति टन पर आ गए हैं
- निर्यात पर रोक को प्रमुख कारण माना जा रहा है
आप यदि घर बनवाने की सोच रहे हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है। घर के निर्माण की सबसे जरूरी वस्तु स्टील की कीमतें इस साल की शुरुआत में आसामान से गिरकर सीधे जमीन पर आ गई हैं। इसके पीछे सरकार द्वारा द्वारा निर्यात पर रोक को प्रमुख कारण माना जा रहा है। स्टील इंडस्ट्री से जुड़ी जानकारी देने वाली कंपनी स्टीलमिंट के अनुसार घरेलू बाजार में पिछले छह महीने के दौरान इस्पात की कीमतें करीब 40 प्रतिशत टूट चुकी हैं और दाम गिरकर 57,000 रुपये प्रति टन पर आ गए हैं।
स्टील निर्यात रुकने का पड़ा असर
स्टीलमिंट ने कहा कि 15 फीसदी निर्यात शुल्क लगाने की वजह से निर्यात में नरमी से कीमतों में यह गिरावट आयी है। इस साल की शुरुआत में हॉट रोल्ड कॉइल (एचआरसी) की कीमतों में बढ़ोतरी दिखना शुरू हो गयी थी। सरकार ने 21 मई को लौह अयस्क के निर्यात पर 50 प्रतिशत तक और कुछ इस्पात मध्यवर्तियों पर 15 प्रतिशत तक शुल्क बढ़ा दिया। इस कदम का उद्देश्य घरेलू निर्माताओं के लिए इन कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाना था।
इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग को फायदा
एचआरसी की बढ़ती कीमतें उपयोगकर्ता उद्योगों के लिए चिंता का विषय था। इसकी वजह से देश की रफ्तार घटने की भी संभावना रहती है। इस्पात की कीमतों में उतार-चढ़ाव का सीधा असर रियल एस्टेट और आवास, बुनियादी ढांचे तथा निर्माण, वाहन और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे उद्योगों पर पड़ता है। ऐसे में कीमतें घटने का असर यहां पर भी दिखाई दिया है।
अप्रैल मे 78000 पहुंच गई थीं कीमतें
स्टीलमिंट के अनुसार, घरेलू बाजार में इस्पात की कीमतें अप्रैल, 2022 में 78,800 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई थी। वहीं 18 प्रतिशत जीएसटी के बाद कीमत लगभग 93,000 रुपये प्रति टन हो गई थी। अनुसंधान कंपनी के आंकड़ों के अनुसार, कीमतें अप्रैल के अंत से गिरनी शुरू हुई और जून के अंत तक घटकर 60,200 रुपये प्रति टन पर आ गई। जुलाई और अगस्त में भी कीमतों में गिरावट जारी रही और सितंबर के मध्य तक यह घटकर 57,000 रुपये प्रति टन पर आ गई। हालांकि सभी कीमतों में 18 फीसदी जीएसटी शामिल नहीं है।
ये रहे गिरावट के प्रमुख कारण
कीमतों में गिरावट के मुख्य कारण इस्पात उत्पादों पर सरकारी कर, विदेशों से मांग में कमी, उच्च मुद्रास्फीति और ऊर्जा लागत को माना जा रहा है। घरेलू एचआरसी की कीमतें अगली तिमाही में सीमित दायरे में बनी रहेंगी। चूंकि इस्पात का निर्यात सामान्य से कम रहने और इन्वेंट्री दबाव बने रहने की भी संभावना है। ऐसे में मिलों के अगले दो महीनों में कीमतों में वृद्धि की संभावना नहीं है।