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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र मनुष्य का ये एक गुण जीवन को बना सकता है अच्छा और बुरा, तोल-मोल के इस्तेमाल करने में ही समझदारी

मनुष्य का ये एक गुण जीवन को बना सकता है अच्छा और बुरा, तोल-मोल के इस्तेमाल करने में ही समझदारी

खुशहाल जिंदगी के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो चाणक्य के इन सुविचारों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।

Chanakya Niti- India TV Hindi Image Source : INDIA TV Chanakya Niti - चाणक्य नीति

आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार मनुष्य की वाणी पर आधारित है। 

"मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है।" आचार्य चाणक्य 

आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि मनुष्य की वाणी जहर और अमृत दोनों की खान है। आचार्य चाणक्य के कहने का अर्थ है कि मनुष्य के व्यक्तित्व में उसकी भाषा बहुत अहमियत रखती है। मनुष्य की पर्सनैलिटी में बोली अहम भूमिका निभाती है। जब भी कोई व्यक्ति किसी के बारे में बात करता है तो उसके चाल-चलन और रहन-सहन के अलावा जिस बात पर सबसे ज्यादा ध्यान देता है वो है बात करने का तरीका। अपने टैलेंट के अलावा व्यक्ति अपनी भाषा के आधार पर भी लोगों के बीच अपनी पहचान बनाता है।

अगर किसी व्यक्ति में सब कुछ अच्छा है लेकिन उसकी भाषा ठीक नहीं है तो सब कुछ बेकार है। ऐसा इसलिए क्योंकि भाषा में मिठास से आप किसी का भी दिल आसानी से जीत सकते हैं। हर कोई आपसे बात करना चाहेगा और आपका समाज में भी बहुत नाम होगा। इसके ठीक उलट अगर किसी के बातचीत करने का तरीका ठीक नहीं है तो लोग उसे खराब नजरिए से ही देखते हैं। फिर चाहे आप कितने भी गुणवान क्यों न हो। अगर बोली ही ठीक नहीं है तो लोग आपसे कटने लगेंगे। यहां तक कि लोगों के बीच आपका मान-सम्मान भी समय के साथ कम होता जाएगा।

जिस तरह धनुष से निकला हुआ तीर वापस नहीं लिया जा सकता उसी तरह मुंह से बोले हुए बोल वापस नहीं लिए जा सकते हैं। कुछ भी बोलने से पहले हमेशा पहले सोचें और फिर बोले। मनुष्य अपने शब्दों के जरिए जहर और उन्हीं शब्दों के जरिए लोगों के दिलों में मिठास भी घोल सकता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है।
 

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