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Hindi News धर्म त्योहार Maha Shivratri 2023: वैराग्य जीवन को त्याग महाशिवरात्रि के दिन शादी बंधन में बंधे थे महादेव, जानें मां पार्वती को कैसे मिला था शिवजी का साथ

Maha Shivratri 2023: वैराग्य जीवन को त्याग महाशिवरात्रि के दिन शादी बंधन में बंधे थे महादेव, जानें मां पार्वती को कैसे मिला था शिवजी का साथ

MahaShivratri 2023: आज शिव-पार्वती की प्रेम कहानी का उदाहरण दिया जाता है लेकिन दोनों को संगम इतना आसान भी नहीं था। महादेव को पाने के लिए माता पार्वती को कठिन तप से गुजरना पड़ा था। वहीं महादेव को भी सदियों तक विरह की आग में जलना पड़ा था। जानिए शिव-पार्वती के मिलन की पौराणिक कथा।

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Maha Shivratri 2023 Shiv Parvati Marriage Story: हिंदू धर्म को मानने वाले हर शख्स शिव-पार्वती जैसे जीवनसाथी को पाने की चाह रखते हैं। हर लड़कियों की ख्वाहिश रहती है कि उसे पति के रूप में भगवान भोलेनाथ की तरह वर मिले। वहीं लड़कों की भी चाह होती है कि जीवन संगिनी के रूप में उसे मां गौरी की तरह साथ चलने वाली धर्मपत्नी की प्राप्ति हो। आज के मॉडर्न युग में भी सच्चे प्यार की परिभाषा महादेव और माता पार्वती ही है। लेकिन दोनों का मिलन इतना आसान भी नहीं था उन्हें भी कई युग तक इंतजार करना पड़ा था। विरह की पीड़ा से भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती भी नहीं बच पाए थे। हालांकि आखिर में उनकी प्रेम की जीत हुई और युगों युगांतर के लिए दोनों का संगम हो गया। ये पावन मौका था शिवरात्रि का। इसी दिन महादेव और गौरी मां विवाह के बंधन में बंधे थे। 

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शिवजी से मिलन के लिए मां पार्वती को लेन पड़ा था दूसरा जन्म

महादेव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती के साथ हुआ था। दक्ष शिवजी को पसंद नहीं करते थे इसलिए उन्होंने महादेव को अपना दामाद के रूप में कभी नहीं स्वीकारा। एक बार दक्ष प्रजापति विराट यज्ञ का आयोजन करवाया जिसमें उन्होंने शिवजी और सति जी को छोड़कर हर किसी को निमंत्रण दिया। इस बात की जानकारी जब माता सती को लगी तो वह बहुत दुखी हुई लेकिन फिर भी वहां जाने का निर्णय ले लिया। शिवजी के समझाने के बाद भी सती जी नहीं रुकी और यज्ञ में शामिल होने के लिए अपने पिता के घर पहुंच गई। यहां दक्ष प्रजापति ने महादेव का घनघोर अपमान किया जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उसी यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। कहते हैं कि देवी सती ने देह त्याग करते समय यह संकल्प किया था कि वह पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म ग्रहण कर पुन: भगवान शिव की अर्धांगिनी बनेंगी। हालांकि इसके लिए शिवजी को सदियों तक इंतजार करना पड़ा। 

पार्वती के रूप में किया कठिन तप

देवी सती का दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। पर्वतराज के घर जन्म लेने की वजह से उनका नाम पार्वती पड़ा। शिवजी को पाने के लिए माता पार्वती ने इतनी कठिन तपस्या की थी कि चारों तरफ इसे लेकर हाहाकार मच गया था। अन्न, जल त्याग कर उन्होंने सालों साल महादेव की अराधना की। इस दौरान वह रोजाना शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाती थी, जिससे भोले भंडारी उनकी तप से प्रसन्न हो। आखिर में देवी पार्वती की तप और निश्छल प्रेम से शिवशंकर प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी संगिनी के रूप में स्वीकार किया। मान्यताओं के मुताबिक, शिवजी ने पार्वती जी से कहा था कि वह अब तक वैराग्य जीवन जीते आए हैं और उनके पास अन्य देवताओं की तरह कोई राजमहल नहीं है, इसलिए वह उन्हें जेवरात, महल नहीं दे पाएंगे। तब माता पार्वती ने केवल शिवजी का साथ मांगा और शादी बाद खुशी-खुशी कैलाश पर्वत पर रहने लगी। आज शिवजी और माता पार्वती का संपन्न परिवार है। 

(डिस्क्लेमर - ये आर्टिकल जन सामान्य सूचनाओं और लोकोक्तियों पर आधारित है। इंडिया टीवी इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।)

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