इसी संदर्भ में रिपोर्ट में पाकिस्तान के बनने के समय से हो रहे धर्म अधारित भेदभाव के उदाहरण पेश किये हैं। रिपोर्ट के अनुसार पंजाब क्रिश्चियन लीग के नेता सत्य प्रकाश सिंघल आज़ादी के बाद पंजाब असैंबली के पहले स्पीकर बने थे क्योंकि उन्होंने विभाजन का समर्थन किया था। लेकिन उर्दू के सबसे बड़े अख़बार के एक संपादक के ये लिखने पर उन्होंने अगले ही दिन इस्तीफ़ा दे दिया था कि उन्होंने ये सोचा भी नहीं था कि पाकिस्तान में एक ग़ैर मुसलमान इस पद आसीन होगा। सिंघल का इस्तीफ़ा फ़ौरन स्वीकृत हो गया था।
ऐसा ही क क़िस्सा है पाकिस्तान के पहले नोबल पुरस्कार विजोता डॉ. अब्दुस सलाम का। पाकिस्तान ने उनको मिले सम्मान का तभी सम्मान किया जब भारत ने किया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें बुलवाकर उनके पैर छुए थे। इसके बाद कई देशों ने डॉ. सलाम को अपने देश आमंत्रित किया लेकिन धार्मिक कट्टरपंथियों ने उनका उनके ही देश में कभी सम्मान इसलिये नहीं होने दिया क्योंकि वह अहमदी थे। प्रदर्शनकारियों ने उन्हें क़ायद-ए-आज़म और पंजाब यूनिवर्सिटीज़ में दाख़िल नहीं होने दिया। यहां तक कि जब वह दिसंबर 1979 में पाकिस्तान आए तो उनके सरकारी कॉलेज लाहोर ने कोई तवज्जो भी नही दी।
दिलचस्प बात ये है कि डॉ. सलाम ने कई देशों के नागरिकता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उनकी ख़वाहिश थी कि उन्हें पाकिस्तान में दफ़्न किया जाए और एक मुसलमान की तरह याद किया जाए। बहरहाल डॉ. सलाम की पहली ख़वाहिश तो पूरी हो गई लेकिन एक मजिस्ट्रैट के आदेश पर उनकी क़ब्र पर लगे कतबे (क़ब्र पर लगा पत्थर) पर लिखी इबारत ‘पहले नोबल पुरस्कार विजेता मुसलमान' मिटा दिया गया।
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