चीन को दुनिया की फैक्ट्री कहा जाता है। सेफ्टी पिन से लेकर रॉकेट तक तैयार करने वाले दुनिया के इस मैन्युफैक्चरिंग में फैक्ट्रियों के बंद पड़ने की नौबत आ सकती है। दरअसल चीन दुनिया भर के लिए सामान तैयार करता और बेचता है। लेकिन जब दुनिया के बड़े बाजारों में मंदी का साया हो और मांग घट रही हो। तो चीन की फैक्ट्रियों पर भी इसका असर पड़ना लाजमी है। साल के पहले दो महीने जनवरी और फरवरी ने चीन के खराब होते हालात की ओर इशारा किया है।
अमेरिका और यूरोप की मांग घटने से चीन के व्यापार में जनवरी और फरवरी में फिर गिरावट आई है। ब्याज दरों में वृद्धि के बीच अमेरिका और यूरोप की मांग प्रभावित हुई है। ऐसे में आर्थिक वृद्धि तेज करने के चीन के प्रयासों को भी झटका लगा है। चीन के सीमा शुल्क विभाग के मंगलवार को जारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली। इसके अनुसार, पिछले दो महीनों में चीन का निर्यात सालाना आधार पर 6.8 प्रतिशत घटकर 506.3 अरब डॉलर रह गया है।
दिसंबर के बाद से सुलझे हालात
हालांकि, दिसंबर में दर्ज हुई 10.1 प्रतिशत की गिरावट की तुलना में स्थिति कुछ सुधरी है। जनवरी-फरवरी में चीन का आयात 10.2 प्रतिशत घटकर 389.4 अरब डॉलर रह गया। दिसंबर में यह गिरावट 7.3 प्रतिशत की रही थी। हालांकि पिछले दो महीनों में चीन का व्यापार अधिशेष 0.8 प्रतिशत बढ़कर 116.9 अरब डॉलर पर पहुंच गया। चीन कोविड महामारी से जुड़ी पाबंदियों को हटाने के बाद अब अपनी आर्थिक गतिविधियों को तेज करने की कोशिश में लगा हुआ है। लेकिन यूरोप एवं अमेरिका में मांग सुस्त रहने से उसके व्यापार को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है।