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कोरोना के असर से क्रूड पर बढ़ेगा दबाव, 20 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ सकता है ब्रेंट

साल के ऊपरी स्तर से 66 फीसदी टूट चुका है ब्रेंट क्रूड

Edited by: India TV Paisa Desk
Published : March 29, 2020 20:48 IST
Crude Oil- India TV Paisa

Crude Oil

नई दिल्ली| कोरोना के बढ़ते असर से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आगे भी जारी रहने की आशंका बनी हुई है। बाजार के जानकारों की माने तो हालात यही रहे तो जल्द ही ब्रेंट क्रूड 20 डॉलर प्रति बैरल के नीचे भी फिसल सकता है।

कच्चे तेल पर कोरोना के कहर का असर काफी समय से देखने को मिल रहा है। बेंचमार्क कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड का भाव अब तक इस साल के ऊंचे स्तर से 66 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है। दुनियाभर में कोरोनावायरस के चलते आर्थिक गतिविधियां चरमरा गई हैं, जिससे कच्चे तेल के भाव पर लगातार दबाव बना हुआ है।

भारत कच्चे तेल का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है लेकिन कोरोनावायरस पर नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन का ऐलान किया है जिससे रेल, रोड और हवाई यातायात के साथ-साथ कारोबार बंद हैं जिससे तेल की खपत काफी नीचे आ गई है।

एंजेल कमोडिटी के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट (एनर्जी एवं करेंसी रिसर्च) अनुज गुप्ता ने बताया कि भारत की तरह दुनिया के अन्य देशों में भी तेल की खपत घट गई है, इसलिए आपूर्ति के मुकाबले मांग कम होने से कीमतों पर दबाव बना हुआ है और आने वाले दिनों में ब्रेंट क्रूड का दाम 20 डॉलर प्रति बैरल से नीचे गिर सकता है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी लाइट क्रूड वेस्ट टेक्सास यानि डब्ल्यूटीआई का दाम 17 डॉलर प्रति बैरल से नीचे तक गिर सकता है।

केडिया एडवायजरी के डायरेक्टर अजय केडिया का भी यही अनुमान है कि आने वाले दिनों में ब्रेंट क्रूड का भाव 20 डॉलर प्रति बैरल से नीचे तक आ सकता है जबकि डब्ल्यूटीआई 18 डॉलर प्रति बैरल टूट सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर बीते कारोबारी सत्र में शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड का जून अनुबंध 24.13 डॉलर प्रति बैरल तक टूटा जबकि आठ जनवरी 2020 को ब्रेंट का भाव 71.75 डॉलर प्रति बैरल तक उछला था जोकि इस साल का सबसे उंचा स्तर है। इस तरह साल के ऊंचे स्तर से बेंट्र का दाम 66.36 फीसदी लुढ़का है।

केडिया का कहना है कि कच्चे तेल के दाम में आगे होने वाली गिरावट ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगी, बल्कि उसके बाद रिकवरी आएगी क्योंकि अमेरिका में तेल की उत्पादन लागत ज्यादा है इसलिए वह उत्पादन में कटौती कर सकता है इसके बाद दूसरे प्रमुख तेल उत्पादक देश भी उत्पादन में कटौती करने को मजबूर होंगे जिससे कीमतों को सपोर्ट मिलेगा।

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