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सुरक्षित रिटर्न के लिए ग्रीन बॉन्ड बेहतर विकल्प, सोलर, Hydro और Wind energy प्रोजेक्ट में लगता है पैसा

दरअसल ग्रीन बॉन्ड भी गवर्नमेंट की तरह होते है।बस इसमें अंतर यह होता है कि जो पैसे ग्रीन बॉन्ड में एकत्रित या निवेश किए जाते हैं उसका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ हरित और अक्षय ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं जैसे सौर, पन बिजली और पवन ऊर्जा जैसी परियोजनाओं में ही खर्च किया जाता है।

Alok Kumar Edited By: Alok Kumar @alocksone
Updated on: November 03, 2023 15:32 IST
Green Bond- India TV Paisa
Photo:FILE ग्रीन बॉन्ड

आसान शब्दों में बॉन्ड पैसे जुटाने का जरिया होते हैं जिससे आय और व्यय के अंतर को कम किया जा सके। बॉन्ड जारीकर्ता,बॉन्ड से एकत्रित होने वाली धनराशि हमेशा कर्ज़ के रूप में ही लेता है। अगर बॉन्ड सरकार के द्वारा जारी किए जाते हैं तो उसे government securities कहते हैं और अगर किसी कारोबारी समूह द्वारा जारी किए जाते हैं तो उसे corporate bond कहते हैं। गवर्नमेंट बॉन्ड को निवेश के हिसाब से सुरक्षित माना जाता है,क्योंकि इसमें सरकार आपके निवेश की गारंटी लेती है। अब आते हैं अपने विषय के सबसे मुख्य भाग ग्रीन बॉन्ड क्या होते हैं,क्यों पर्यावरण के हिसाब से है महत्वपूर्ण और क्या निवेश के हिसाब से सुरक्षित है ग्रीन बॉन्ड?

दरअसल ग्रीन बॉन्ड भी गवर्नमेंट की तरह होते है,बस इसमें अंतर यह होता है कि जो पैसे ग्रीन बॉन्ड में एकत्रित या निवेश किए जाते हैं उसका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ हरित और अक्षय ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं जैसे सौर, पन बिजली और पवन ऊर्जा जैसी परियोजनाओं में ही खर्च किया जाता है यानी ग्रीन बॉन्ड से प्राप्त राशि का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ ऐसी परियोजनाओं में खर्च किया जाता है जो कार्बन फुटप्रिंट्स को कम करने में सहायक होती हैं।

ग्रीन बॉन्ड पूरी तरह से सुरक्षित

क्योंकि यह परियोजनाएं पर्यावरण और आर्थिक दृष्टिकोण से तो फायदेमंद होती हैं परंतु ‘लॉन्ग टर्म परियोजनाएं’होने के कारण काफी समय बाद ही उत्पादकता और रिटर्न देते है।जिसके कारण इन परियोजनाओं में हमेशा निवेश और धन की कमी बनी रहती है। इसी को देखते हुए पहली बार भारत सरकार ने 25 जनवरी 2023 को यानी पिछले वित्त वर्ष ग्रीन बॉन्ड की पहली किस्त जारी की थी,जिसके जरिए सरकार ने कुल साठ हज़ार करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था।

अगर आपके निवेश की सुरक्षा के हिसाब से बात करें तो ग्रीन बॉन्ड भी पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं, क्योंकि इसे सरकार,आरबीआई के माध्यम से जारी करती है।जो एक प्रकार से गवर्नमेंट बॉन्ड का भी रूप ले लेता हैं और गवर्नमेंट बॉन्ड में सरकार आपके निवेश की सुरक्षा की गारंटी भी लेती है,इसलिए निवेश की सुरक्षा की दृष्टि के हिसाब से ग्रीन बॉन्ड सबसे बेहतरीन विकल्प है.

बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने सॉवरेन ग्रीन बांड में निवेश को “बुनियादी ढांचे में निवेश” के रूप में वर्गीकृत किया है जिससे इन बांडों को “केंद्रीय सरकारी प्रतिभूतियों” के रूप में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि बीमा कंपनियों को अपने जीवन निधि ‘AUM’ का न्यूनतम 15 प्रतिशत ‘बुनियादी ढांचे और आवास’ श्रेणी में निवेश करना होता है,जैसा कि आईआरडीएआई द्वारा परिभाषित किया गया है।

क्यों पड़ी ग्रीन बॉन्ड को जारी करने की आवश्यकता?

1.दरअसल भारत ने वर्ष 2015 में पेरिस समझौते में हस्ताक्षर किया था जिसमें वैश्विक तापमान को डेढ़ डिग्री से अधिक न बढ़ाने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी।

2.वर्ष 2022 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में हुए वैश्विक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत ने वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल देश बनने की प्रतिबद्धता जताई है।

3.भारत सरकार ने ईंधन के पारंपरिक स्रोतों पर अपनी निर्भरता को कम करने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का ऐलान किया है।

4. भारत ने फ्रांस के साथ मिलकर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना की है और हाल ही में दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन में वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए ‘ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस’बनाने का ऐलान किया जिसका समर्थन 19 देशों और 12 अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी किया है।

अगर भारत अपने द्वारा तय किए गए इन लक्ष्यों को पूरा करना चाहता है,तो उसके लिए उसे बड़े पैमाने पर हरित और अक्षय ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देना होगा।जिसके लिए एक बड़ी पूंजी की आवश्यकता होगी इसी को देखते हुए भारत सरकार के द्वारा ग्रीन बॉन्ड जारी किए गए हैं।

क्या आ रही है ग्रीन बॉन्ड्स को लेकर निवेश संबंधी समस्याएं?

1) बीमा कंपनियों द्वारा आईआरडीएआई की नियामक आवश्यकताओं के कारण मांग तो की जा रही है।परंतु निवेशकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा इसके मांग में रुचि कम ही देखने को मिल रही है जिसका कारण है नया होने के कारण निवेशकों और वित्तीय संस्थानों में इसके रिटर्न को लेकर बनी हुई अस्थिरता।

2) कुछ संस्थाओं द्वारा अभी भी इसे निवेश के रूप में ना देखते हुए सिर्फ और सिर्फ इसे Corporate Social Responsibility (CSR) के तौर पर देखा जा रहा है जिसका इस्तेमाल ‘पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी’को कुछ हद तक श्रेय के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

(लेखक आशुतोष ओझा, आईआईएमसी से पीजी डिप्लोमा कर अभी इंडिया टीवी में ट्रेनी एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।)

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