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EMI से भरना चाहते हैं क्रेडिट कार्ड का बिल, जानिए क्या हैं इसके फायदे और नुकसान

कोरोना संकट के बीच नकदी समस्या को देखते हुए बैंक ऑफर कर रहें हैं EMI का विकल्प

Written by: Sarabjeet Kaur
Updated : June 17, 2020 20:34 IST
Credit Card bill via EMI- India TV Paisa
Photo:PTI

Credit Card bill via EMI

नई दिल्ली। कोरोना महामारी की वजह से लोगों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है । नौकरी जाने की वजह से और सैलरी कटने से लोग कैश की कमी के चलते परेशान हैं जिसकी वजह से उन्हें अपने खर्च को काबू करना पड़ रहा है और कर्ज चुकाने में परेशानी हो रही है। हालांकि, RBI ने 6 महीने का लोन मोरेटोरियम सुविधा ग्राहकों को देने का ऐलान भी किया है और लोग इसका फायदा ले भी रहें हैं। लेकिन, इस समय जिन ग्राहकों को कैश की दिक्कत हो रही है उनमें से अधिकांश लोग क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कर रहें हैं। नतीजा ये है कि उनके क्रेडिट कार्ड का बिल ज्यादा आ रहा है। ऐसी स्थिति में एक साथ ज्यादा बिल न देना पड़े, इससे बचने के लिए बैंकों ने क्रेडिट कार्ड के बिल को ईएमआई में कन्वर्ट करने का विकल्प भी दिया है ताकि ग्राहकों को एक साथ पूरे पैसे देने की जरुरत न पड़े। अगर आपने भी क्रेडिट कार्ड के बिल को ईएमआई में बदला है तो पहले जान लीजिए कि उससे होने वाले फायदे और नुकसान क्या हैं वरना आपको भी देना पड़ सकता है बिल पर ज्यादा ब्याज।

क्या है ईएमआई विकल्प?

जो लोग क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं उनको बैंक या एनबीएफसी द्वारा ईएमआई के ऑफर लगातार आते रहते हैं। जिसका मतलब है कि आप पूरे बिल को छोटी किस्त में बांटकर पूरी रकम अगले कुछ महीनों में जमा कर सकते हैं। हालांकि, सुनने में तो ये बड़ा अच्छा लगता है कि कम पैसे देने पड़ेगें लेकिन इसके काफी नुकसान भी हैं। कई बैंक ईएमआई के विकल्प को चुनने पर ग्राहक के क्रेडिट कार्ड लिमिट को भी घटा देती है। वैसे तो ये बैंकों पर निर्भर करता है कि वो ईएमआई के विकल्प को कितने दिनों तक देता है। लेकिन, ज्यादातर बैंक ईएमआई के जरिए 3 महीने से 2 साल के बीच पूरे पैसे जमा करने का विकल्प देती है। ईएमआई की रकम कर्ज अवधि के हिसाब से तय होती है।

ईएमआई विकल्प से क्रेडिट लिमिट और सिबिल पर होता है असर:

ग्राहक अगर पूरे बिल को ईएमआई के जरिए छोटी किस्त में बदलता है तो उसके सिबिल पर भी इसका असर देखने को मिलता है। साथ ही क्रेडिट कार्ड की लिमिट पूरी लिमिट से घटा दी जाती है। मान लिजिए किसी के क्रेडिट कार्ड का लिमिट 70,000 रुपये है और उसने 50,000 खर्च कर दिया है। ऐसे में 50,000 के बिल को उसने एक साथ न जमा करने के बजाय छोटे किस्त में हर महीने देने का फैसला किया है जिसे ईएमआई विकल्प कहा जाएगा। ऐसी स्थिति में ग्राहक का क्रेडिट लिमिट सिर्फ 20,000 रुपये ही रह जाता है। लेकिन जैसे-जैसे ग्राहक बिल के रकम को चुकाएगा क्रेडिट लिमिट उसी हिसाब से बढ़ती भी जाएगी। लेकिन जितना हो सके ईएमआई से बचे रहना ही एक अच्छा विकल्प माना गया है।

ईएमआई विकल्प पर देना पड़ता है अलग से चार्ज:

वैसे तो ग्राहक को सुनने में और देखने में ईएमआई की किस्त की रकम पूरे क्रेडिट कार्ड के बिल के मुकाबले काफी कम लगती है। लेकिन, सच्चाई ये है कि ग्राहक को ईएमआई के विकल्प के जरिए अलग से काफी सारे चार्ज लग जाते हैं जो उसे जमा करने होते हैं। ग्राहक से ईएमआई बिल के जरिए एक अतिरिक्त ब्याज वसूला जाता है। आपके लोन की अवधि जितनी होगी ब्याज भी उसी के हिसाब से देना पड़ता है। अगर ग्राहक बिल के रकम को ईएमआई के जरिए बढ़ाता है तो ब्याज भी उतना ज्यादा देना पड़ सकता है। क्योंकि किस्त के जरिए बिल जमा करने की तारीख और आगे बढ़ जाती है तो ब्याज भी बढ़ जाता है। कई बैंक प्रोसेसिंग फीस के नाम पर 1 से 3 फीसदी तक फीस चार्ज करते हैं। अगर किसी ने ईएमआई के पूरा होने से पहले ही पूरा बिल जमा करने का फैसला करता है तो बैंक अलग से प्रोसेसिंग फीस ग्राहक से लेता है। साथ ही नियम के अनुसार 18 फीसदी जीएसटी भी लागू होता है।

उद्धाहरण से समजिए:

मान लिजिए आपने कैश की कमी के चलते बैंक से तीन महीने के ईएमआई के विकल्प को चुना है और आपका सालाना ब्याज 20 फीसदी के हिसाब से बैंक वसूलता है जो सामान्य ब्याज से ज्यादा होगा। वहीं पूरी रकम एक साल में जमा करते हैं तो ब्याज दर 15 फीसदी होगा लेकिन पैसे आपको 3 महीने के मुकाबले ज्यादा जमा करने होंगे। जितनी अवधि बढ़ेगी ब्याज भी उतना ही बढ़ेगा।

अगर किसी का क्रेडिट कार्ड का बिल 20,000 रुपये है और वो 3 महीने यानी की 90 दिनों के ईएमआई विकल्प को चुनता है तो कुल ब्याज {20,000*(20%/365)*90}=986.3 रुपये का लागू होगा।

वहीं अगर अवधि बढ़ाकर 1 साल यानी की 12 महीने का करते हैं तो ब्याज और बढ़ जाएगा। कैलकुलेशन: [20,000*(15%/365)*365]=3,000 रुपये तक का ब्याज अलग से देना होगा।

ईएमआई विकल्प से पहले रखें ध्यान:

 

  • क्रेडिट कार्ड के बिल को ईएमआई में तभी बदलें जब आपको लगे कि कैश की कुछ दिनों तक दिक्कत होने वाली है और आप समय पर बिल नहीं भर सकते

 

  • अगर समय पर बिल नहीं भरते तो 40 फीसदी तक ब्याज देना पड़ सकता है

 

  • ग्राहक के क्रेडिट स्कोर पर भी लेट पेमेंट करने पर बुरा असर पड़ता है जिससे बाद लोन लेने में दिकक्त हो सकती है

 

  • क्रेडिट कार्ड के बिल को ईएमआई में बदलने पर अलग से चार्ज भी लगता है और बाकी विकल्प से काफी महंगा होता है

 

  • ईएमआई के जरिए क्रेडिट कार्ड के बिल को जमा करने से पहले सभी विकल्पों और नियमों को ध्यान से पढ़ें

 

  • जब तक आपको लगे कि आप समय से बिल जमा नहीं कर सकते ईएमआई विकल्प को नहीं चुनें

 

  • स्पेंडिंग लिमिट को भी चेक कर लें वरना कई बार बैंक ईएमआई विकल्प को रद्द कर देते हैं

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