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Hindi News भारत राष्ट्रीय Rajat Sharma’s Blog: SC के जजों ने कैसे LNJP अस्पताल में दयनीय स्थिति के लिए दिल्ली सरकार की खिंचाई की

Rajat Sharma’s Blog: SC के जजों ने कैसे LNJP अस्पताल में दयनीय स्थिति के लिए दिल्ली सरकार की खिंचाई की

सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा की गई टिप्पणियों को पढ़ने से मुझे कुछ राहत मिली। शीर्ष अदालत के आदेश से यह उम्मीद जगी है कि अब अस्पतालों में मरीज बच सकते हैं।

Rajat Sharma Blog on Supreme Court, Rajat Sharma Blog on LNJP, Rajat Sharma Blog on LNJP Hospital- India TV Hindi Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

सबसे पहले मैं अस्पतालों में भर्ती कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की तकलीफों का अहसास करने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय कौल और जस्टिस एम. आर. शाह का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। न्यायाधीशों ने खुद कहा कि इंडिया टीवी पर दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में शवों के बीच लेटे मरीजों के ‘भयानक’ एवं ‘दयनीय’ वीडियो देखकर उन्हें कष्ट महसूस हुआ।

बेंच ने कहा, ‘हम मृतकों की तुलना में जीवित लोगों के लिए ज्यादा चिंतित हैं। अस्पतालों में दयनीय स्थिति पर एक नजर डालें। जिस वॉर्ड में मरीज इलाज करवा रहे हैं, वहां शव पड़े हुए हैं। जिस तरह से शवों का रख-रखाव किया गया, उन्हें ठिकाने लगाया गया। उनके साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया गया।’ बेंच ने यह भी कहा, ‘जिन वॉर्डों में मरीज हैं उन्हीं में शव भी हैं। लॉबी और वेटिंग एरिया में भी शव दिखाई दे रहे हैं। मरीजों को न तो किसी तरह का ऑक्सिजन सपोर्ट दिया गया और न ही किसी अन्य तरह की कोई सहायता की गई। बेड पर सलाइन ड्रिप भी नहीं दिख रही थी और न ही रोगियों की देखरेख के लिए कोई वहां था। मरीज रो रहे हैं और उनके पास कोई भी नहीं है।’

बेंच ने इसके बाद कहा, ‘यह दिल्ली के एक ऐसे सरकारी अस्पताल की हालत है, जिसकी क्षमता 2,000 बिस्तरों की है। सरकारी ऐप के मुताबिक, 11 जून को LNJP अस्पताल में केवल 870 बिस्तरों पर मरीज थे। सरकारी ऐप ही दिल्ली में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में उन बिस्तरों को बारे में जानकारी देता है जो भरे हुए हैं। सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या 5,814 है, जिनमें से 2,620 बिस्तरों पर मरीज हैं।’ शीर्ष अदालत के आदेश की पहली पंक्तियों में इंडिया टीवी पर दिखाए उन वीडियो का जिक्र किया गया था, जिन्हें हमने बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में प्रसारित किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि ‘सरकारी अस्पतालों में मरीजों के प्रबंधन की स्थिति का तत्काल संज्ञान लें और सुधार के उपाय करें। सरकारी अस्पतालों के संबंध में स्टेटस रिपोर्ट, रोगी की देखभाल और कर्मचारियों के विवरण, बुनियादी ढांचे आदि की जानकारी कोर्ट के समक्ष रखी जाए ताकि सुनवाई की अगली तारीख पर उचित निर्देश जारी किए जा सकें।’ कोर्ट ने बुधवार तक स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। एलएनजेपी अस्पताल को भी अलग से एक नोटिस जारी किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि, ‘रिपोर्ट के मुताबिक मरीज अस्पतालों में भर्ती होने के लिए यहां से वहां भाग रहे हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों में बड़ी संख्या में बिस्तर खाली पड़े हैं। कई मामलों में मरीजों के परिजनों तक को उनकी मौत के बारे में सूचना नहीं दी जा रही है, जिसके चलते वे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं।’ बेंच ने पूछा, ‘...और दिल्ली में टेस्ट की संख्या इतनी कम क्यों हैं? मुंबई और चेन्नई में 16,000 से 17,000 टेस्ट किए जा रहे हैं जबकि दिल्ली में यह 7,000 से भी कम है। मीडिया ने इस मुददे को उजागर किया है।’ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल की सरकारों के मुख्य सचिवों को भी नोटिस जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा की गई टिप्पणियों को पढ़ने से मुझे कुछ राहत मिली। शीर्ष अदालत के आदेश से यह उम्मीद जगी है कि अब अस्पतालों में मरीज बच सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि मरीजों को अब एक ही वॉर्ड के अंदर शवों के बीच नहीं रहना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने कम से कम ये उम्मीद तो जगाई है कि कहीं तो मर-मरकर जी रहे लोगों की आवाज सुनी जा रही है। अस्पतालों की ‘दयनीय’ हालत दिखाने वाले वीडियो को देखने के बाद किसी सबूत, बहाने, औचित्य या आपत्ति की जरूरत नहीं है। यह खुशी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अन्य टीवी रिपोर्टों के साथ इंडिया टीवी की रिपोर्ट का संज्ञान लिया और सरकारों को जवाब देने का निर्देश दिया। शुक्रवार की सुनवाई के दौरान, विद्वान न्यायाधीशों ने 10 जून को रात 9 बजे 'आज की बात' में दिखाए गए वीडियो का उल्लेख किया।

जब अदालत ने इंडिया टीवी के वीडियो पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से राय मांगी, तो उन्होंने कहा कि दृश्य वाकई में भयानक और चौंकाने वाले थे। कोर्ट ने तब पूछा कि सरकारी अस्पतालों में इस तरह की लापरवाही कैसे हो सकती है क्योंकि वीडियो में साफ दिख रहा है कि मरीजों की जान जा रही थी और वहां उनकी मदद के लिए कोई नहीं था। जस्टिस शाह ने कहा कि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार के साथ और भी ज्यादा हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत बढ़ गई है। अस्पतालों में बेड और डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन सरकार ऐसी किसी भी योजना पर काम करती दिखाई नहीं दे रही है। उन्होंने इसे हेल्थ केयर सिस्टम की चौंकाने वाली विफलता करार दिया।

जस्टिस कौल ने कहा कि इंडिया टीवी पर दिखाए गए वीडियो साफ तौर से जमीनी हकीकत को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा, ‘भगवान के लिए, मरीजों की दयनीय हालत को देखें, वॉर्डों में शव पड़े हुए हैं, अदालत उन मरीजों के बारे में ज्यादा चिंतित है जो जीवित हैं, लेकिन जब हम देखते हैं कि किस अमानवीय तरीके से शवों का रखरखाव किया जा रहा तो, तो जो मरीज जीवित हैं उनका क्या होगा?’ जज ने कहा, ‘इंडिया टीवी पर दिखाए गए वीडियो को देखने के बाद कोई शक नहीं कि दिल्ली में हालात बिगड़ रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में स्थितियां दयनीय, भयानक और भयावह हैं।

मुझे शंका है कि क्या एलएनजेपी अस्पताल के अधिकारियों ने शवों के निपटान के लिए सरकार के दिशानिर्देशों को पढ़ा है। शायद उन्हें नहीं पता कि एक बार जब किसी मरीज की कोरोना वायरस के संक्रमण से मौत हो जाती है तो शवों की देखभाल कैसे की जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि वॉर्डों में, रास्तों में और वेटिंग एरिया तक में शव पड़े हुए थे। मैं आपको गाइडलाइंस के कुछ बिंदुओं के बारे में बताता हूं जिसके पालन की उम्मीद किसी COVID रोगी के शव के रखरखाव के दौरान स्वास्थ्य कर्मचारियों से की जाती है।

सबसे पहले तो कोरोना के मरीजों की डैड बॉडी को हैंडल करते वक्त कर्मचारियों को स्टैण्डर्ड इन्फेक्शन प्रिवेंशन कण्ट्रोल प्रैक्टिस का पालन करना है।  इसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति की मौत के बाद आधे घंटे के भीतर डेड बॉडी को वॉर्ड से क्लीयर करना है, और तुरंत परिवार वालों को मरीज की मौत की जानकारी देनी है। मरीज जिस बेड पर था, उसने जो सामान इस्तेमाल किए, उसे PPE किट पहनकर पूरी तरह डिसइन्फेक्ट करना जरूरी है। डेड बॉडी को 1% हाइपोक्लोराइट के घोल से साफ करने के बाद लीकप्रूफ बैग में पैक करना है। मोर्चरी में डेड बॉडी को कोल्ड चैम्बर में 4 डिग्री सेन्टिग्रेड टेम्परेचर पर रखना है। अन्तिम संस्कार के वक्त परिवार वालों को अपने परिजन का चेहरा आखिरी बार देखने की इजाजत है, और दूसरी जरूरी रस्में भी एतिहयात के साथ पूरी की जा सकती हैं। सरकारी गाइडलाइन्स में छोटी छोटी बातें तक साफ की गई हैं।

लेकिन हमने जो वीडियो दिखाए और जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के जजों ने भी देखा, उनमें साफ नजर आ रहा है कि इन दिशा-निर्देशों को पूरी तरह दरकिनार किया गया। इतनी एतिहयात बरतने की बात तो दूर, वॉर्डों और वेटिंग एरिया में पड़ी लाशों को उठाने के लिए वहां कोई नहीं था। दोपहर में जहां सुप्रीम कोर्ट से एक अच्छी खबर आई, वहीं शाम तक एक बुरी खबर भी सामने आ गई। मुझे उम्मीद थी कि एलएनजेपी अस्पताल के अधिकारी अपने बाकी के रोगियों की देखभाल में सुधार के लिए, ऑक्सीजन की व्यवस्था करने के लिए, उन्हें दवाइयां और भोजन उपलब्ध कराने के लिए तत्काल कदम उठाएंगे, लेकिन मैं गलत था।

वीडियो के प्रसारित होने के बाद सरकार ने 36 घंटे तक कुछ नहीं किया, और नतीजा यह निकला कि वीडियो में जीवित दिख रहे एक 23 वर्षीय युवक राजेश सिंह रावत का शुक्रवार को निधन हो गया। यह हमारे हेल्थ केयर सिस्टम पर एक काला धब्बा है। हमारे हेल्थ केयर सिस्टम ने इस नौजवान की जान ले ली। मृत COVID रोगी के भाई ने LNJP अस्पताल के बाहर इंडिया टीवी की रिपोर्टर दीक्षा पांडेय को बताया कि वह उनका शव लेने आए हुए थे। बुधवार के वीडियो में युवक को एक बिस्तर पर बैठे हुए देखा गया था। उन से कुछ ही दूरी पर एक दूसरे बिस्तर के नीचे नग्न अवस्था में एक शव पड़ा हुआ था। उनकी हालत उस समय ठीक नहीं थी, लेकिन उन्हें सांस लेने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी। राजेश के भाई ने जो भी कहा वह किसी भी समझदार व्यक्ति को रुला सकता है।

जब मैं एक असंवेदनशील हेल्थ केयर सिस्टम की वजह से जान गंवाने वाले COVID रोगियों के परिजनों की बातें सुनता हूं तो नि:शब्द हो जाता हूं। एक आम आदमी ऐसे अस्पतालों पर कैसे भरोसा कर सकता है जो काल कोठरी और नरक के द्वार के अलावा कुछ नहीं हैं। दिल्ली सरकार ने शाम को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक बयान जारी किया। इस बयान कहा गया है, COVID महामारी एक ‘असाधारण’ स्थिति थी और वह बेहतर बुनियादी ढांचा तैयार करने एवं सभी रोगियों को क्वॉलिटी हेल्थकेयर प्रदान करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रही है। राज्य सरकार ने कहा, ‘वह सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वेशन को ‘बेहद सम्मान’ एवं ‘पूरी ईमानदारी’ के साथ स्वीकार करती है और इसकी जानकारी में लाई गई किसी भी तरह की कमी को सही करने के लिए तैयार है।’ इसमें दावा किया गया कि NHRC की टीम ने LNJP अस्पताल की सुविधाओं के साथ ‘संतुष्टि’ जाहिर की है।

दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट से मिली फटकार से भले ही पल्ला झाड़ ले, लेकिन सरकार और एलएनजेपी अस्पताल, दोनों को शीर्ष अदालत में 17 जून तक स्पष्टीकरण देना होगा। यह अब शीर्ष अदालत के ऊपर होगा कि वह उनका स्पष्टीकरण को संतोषजनक मानकर स्वीकार करती है या फिर अस्वीकार कर देती है। आम तौर पर कानून के मामलों पर अदालतों के अंदर चर्चा की जाती है, लेकिन हमारा देश आखिरकार भावनाओं के आधार पर चलता है। आम आदमी अपने नजरिए से अस्पतालों की व्यवस्था की हकीकत को देखता है। हिंदी में कबीर का एक मशहूर दोहा है: ‘दुर्बल को ना सताइये, जाकी मोटी हाय। बिना सांस की चाम से, लोह भसम होई जाय।।’ (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 12 जून, 2020 का पूरा एपिसोड

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