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आज कार्तिक पूर्णिमा, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा

कार्तिक पूर्णिमा स्नान, दान, दीपदान और हवन आदि का बहुत ही महत्व है। इस दिन विशेषकर पुष्कर में स्नान का महत्व है। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा

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कार्तिक पूर्णिमा स्नान, दान, दीपदान और हवन आदि का बहुत ही महत्व है। इस दिन विशेषकर पुष्कर में स्नान का महत्व है। इस दिन किसी तीर्थ स्थल पर स्नान करने से वर्ष भर तीर्थस्थलों पर स्नान का फल मिलता है। यह पूर्णिमा सभी पूर्णिमाओं से श्रेष्ठ मानी जाती है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली का भी त्योहार मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा में दीपदान का विशेष महत्व होता है। इसके अलावा हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव की जन्मोत्सव मनाया जाता है। जानें कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि।

कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 11 नवंबर को शाम 06 बजकर 02 मिनट से 
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: 12 नवंबर को शाम 07 बजकर 04 मिनट तक 

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कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा और गंगा स्नान की पूर्णिमा के नाम से बी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इसी वजह से इसे त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसी के साथ कार्तिक पूर्णिमा की शाम भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार उत्पन्न हुआ था। साथ ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि गंगा स्नान के बाद किनारे दीपदान करने से दस यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।

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कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर गंगा स्नान या घर पर स्नान कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें। स्नान करने के बाद हाथ में कुश लें और दान देते हुए संकल्प लें। इससे आपको पूरा लाभ मिलेगा। इस दिन व्रत रखें। अगर नहीं हो सकता है, तो कम से कम 1 समय तो जरूर रखें। इसके बाद श्री सूक्त और लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करते हुए हवन करें। इससे महालक्ष्मी प्रसन्न होगी। रात को विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। इसके बाद सत्यनारायण की कथा सुनें या पढ़े। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती उतारने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दें। 

कार्तिक पूर्णिमा कथा
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। 
 
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। 
टिप्पणियां

इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बनें। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। 

भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।

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