नयी दिल्ली। देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है और यह 400 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के स्तर पर बना हुआ है। संसद में गुरुवार को पेश 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2017-18 के दौरान बाजार में रुपये की विनिमय दर 65-68 प्रति डॉलर पर रही, लेकिन 2018-19 में रुपया डॉलर के मुकाबले हल्का हो कर 70-74 तक चला गया था। रुपये में गिरावट मुख्य रूप से कच्चे तेल में उछाल की वजह से रही।
समीक्षा के अनुसार भारत की आयात क्रय क्षमता लगातार बढ़ रही है क्योंकि निर्यात की तुलना में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी कम रही है। समीक्षा के अनुसार 2018 के दिसंबर में भारत का विदेशी बकाया ऋण 521.1 अरब डॉलर था जो मार्च, 2018 की तुलना में 1.6 प्रतिशत कम है। दीर्घावधि का विदेशी बकाया ऋण 2018 के दिसंबर में 2.4 प्रतिशत घटकर 417.3 अरब डॉलर रहा गया। हालांकि देश के कुल विदेशी बकाया ऋण में इसकी हिस्सेदारी पिछले वर्ष की समान अवधि के 80.7 प्रतिशत के लगभग बराबर 80.1 प्रतिशत रही।
2018-19 में देश से कुल 330.7 अरब डॉलर मूल्य वस्तुओं का निर्यात हुआ। इनमें सबसे ज्यादा पेट्रोलियम उत्पादों, कीमती पत्थरों, दवाओं, सोने और अन्य कीमती धातुओं का निर्यात शामिल है। इस अवधि में देश में कुल 514.03 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का आयात किया गया। आयातित वस्तुओं में कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, मोती, कीमती और अर्द्ध-कीमती पत्थर तथा सोना प्रमुख रहे। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान भारत का व्यापार घाटा 183.96 अरब डॉलर रहा। इस दौरान अमेरिका, चीन, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब भारत के प्रमुख साझेदार बने रहे।
समीक्षा में व्यापार सुगमता के बारे में कहा गया है कि भारत ने अप्रैल, 2016 में विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुगमता समझौता की पुष्टि की और इसके तहत ही राष्ट्रीय व्यापार सुगमता समिति का गठन किया। समिति ने देश के आयात और निर्यात के उच्च शुल्क को घटाने में अहम भूमिका निभाई है। इसकी वजह से सीमापार व्यापार तथा देश के भीतर कारोबारी माहौल को सुगम बनाने के मामले में भारत का प्रदर्शन काफी बेहतर हुआ है।
समीक्षा में कहा गया है कि सरकार ने राष्ट्रीय लॉजिस्टिक कार्ययोजना के तहत राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति का मसौदा तैयार किया है। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक वृद्धि को गति देना और देश के व्यापार को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना है।