नई दिल्ली। पिछले कुछ महीनों से चर्चा में रही भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के लिए एक और चौंकाने वाली खबर आई है। रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में बैंक डिपॉजिट की ग्रोथ पिछले 50 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2018 में बैंकिंग सिस्टम में डिपॉजिट 6.7 पर्सेंट बढ़ा। जो कि 1963 के बाद से लेकर सबसे कम ग्रोथ है। बैंकिंग सेक्टर से जुड़े लोगों के मुताबिक नोटबंदी के बाद आए पैसे के निकलने और इंश्योरेंस और म्यूचुअल फंड जैसे फाइनैंशल प्रॉडक्ट्स में बचत को खर्च करने से डिपॉजिट ग्रोथ में कमी आई है।
आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के बाद नवंबर-दिसंबर 2016 में बैंकों के पास 15.28 लाख करोड़ रुपए आए थे। इससे वित्त वर्ष 2017 में बैंकों का डिपॉजिट 15.8 पर्सेंट बढ़कर 108 लाख करोड़ रुपये हो गया था। लेकिन अब इसकी ग्रोथ 6.7 पर्सेंट रह गई है। इस समय कुल डिपॉजिट 114 लाख करोड़ रुपए है। लोग बचत का पैसा म्यूचुअल फंड और इंश्योरेंस कंपनियों के प्रॉडक्ट्स में लगा रहे हैं। इसका भी बैंकों की डिपॉजिट ग्रोथ पर बुरा असर हुआ है। वित्त वर्ष 2018 में म्यूचुअल फंड्स का असेट्स अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) 22 पर्सेंट की बढ़ोतरी के साथ 21.36 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो मार्च 2017 में 17.55 लाख करोड़ रुपये था।
अंग्रेजी अखबार इकोनोमिक टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक इकरा में फाइनैंशल सेक्टर रेटिंग्स के हेड कार्तिक श्रीनिवासन ने कहा कि नोटबंदी के बाद बैंकिंग सिस्टम में काफी पैसा आया था। डिपॉजिट ग्रोथ कम होने में इस बेस इफेक्ट ने अच्छी भूमिका निभाई है। वैसे म्यूचुअल फंड में लोगों की दिलचस्पी भी बढ़ी है। इस साल ब्याज दरों में बढ़ोतरी हो रही है। इसलिए शेयर बाजार कमजोर रह सकता है। इससे डिपॉजिट में बढ़ोतरी हो सकती है।’ बैंक रेट्स में पहले ही बढ़ोतरी शुरू हो चुकी है।