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क्यों कम से कम समय में कर देना चाहिए दाह संस्कार, सद्गुरु ने बताया इसके पीछे का विज्ञान

हिंदू धर्म में कुल सोलह संस्कार होते हैं, जिनमें मृत्यु आखिरी यानी सोलहवां संस्कार है। मृत्यु संस्कार में मृतक व्यक्ति के आत्मा की शांति के लिए पूरे हिंदू रीति रिवाज के साथ उसे आखिरी विदाई दी जाती है।

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जीवन-मरण इस संसार का नियम है, जो कोई इस धरती पर आया था वो एक दिन इस दुनिया से जाएगा ही। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि  मृत्यु’ जीवन का अंतिम और अटल सत्य है, जिसे कोई टाल नहीं सकता है। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु अटल है और मत्यु के बाद उसका पुन: जन्म भी निश्चित है। गीता के मुताबिक, मृत्यु के बाद बाद जीवन का नया आरंभ होता है। यही वजह है कि मृत्यु के बाद सभी नियमों का पालन किया जाता है।

मान्यताओं के मुताबिक, अगर मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार सही तरीके से नहीं किया जाता है तो उसकी आत्मा धरती पर ही भटकती रहती है। वहीं अंतिम को नियम के साथ इसलिए भी किया जाता है कि जिससे जीवात्मा को मरने के बाद स्वर्ग और अगले जन्म में उत्तम शरीर मिले। ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु श्री जग्गी वासुदेव महाराज से जानिए कि हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के नियम और महत्व।

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अंतिम संस्कार के नियम

कुछ कर्मकांड ऐसे होते हैं जिनके माध्यम से कुछ हद तक उस जीवन की दिशा को प्रभावित करना संभव होता है। इसी आधार पर ये सभी मृत्यु संस्कार के नियम बनाए गए। अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो पारंपरिक रूप से लोग सबसे पहले  मृत शरीर के पैर की उंगलियों को एक साथ बांधते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पैर के अंगूठों को बांधना मूलाधार को एक तरह से कस देता है जिससे वो जीव एक बार फिर शरीर में नहीं घुस सकता और न ही घुसने की कोशिश कर सकता है। एक जीवन जो इस जागरूकता के साथ नहीं जिया है कि "यह मैं (शरीर) नहीं हूं"। शरीर के किसी भी छिद्र से प्रवेश करने की कोशिश करेगा, विशेष रूप से मूलाधार के माध्यम से। मूलाधार वह जगह है जहां जीवन पैदा होता है और जब शरीर ठंडा होने लगता है तो इकलौती जगह जहां आखिर तक गर्माहट रहती है, वो आखिरी बिंदु हमेशा मूलाधार होती है।

जल्द से जल्द कर दें दाह संस्कार

एक जीवन जो इस जागरूकता के साथ नहीं जिया है कि "यह शरीर मैं नहीं हूं" शरीर के किसी भी छिद्र से प्रवेश करने की कोशिश करेगा, विशेष रूप से मूलाधार के माध्यम से। यही कारण है कि पहले के समय में मृत्यु के कुछ देर बाद शरीर को जला दिया जाता था। दरअसल,  एक निश्चित समय सीमा के अंदर शरीर को जला देना चाहिए, क्योंकि जीवन वापस पाने की कोशिश करता है। यह जीविका के लिए भी जरूरी है।

यदि आपका कोई बहुत प्रिय मर जाता है तो आपका मन चाल चल सकता है यह सोचकर कि शायद कोई चमत्कार हो जाए, शायद भगवान आकर कुछ अच्छा कर दें। यह किसी के साथ कभी नहीं हुआ है लेकिन फिर भी मन ये खेल खेलता है क्योंकि उस व्यक्ति के लिए हमारी भावनाएं हैं और यही उस जीव के लिए भी सच है जो शरीर से निकला है। वह अब भी मानता है कि वह शरीर में वापस जा सकता है। अगर आप इस नाटक को रोकना चाह रहे हैं तो शरीर को जला दें वो भी डेढ़ घंटे के अंदर। कहते हैं कि जितनी जल्दी संभव हो मृत शरीर को जला देना चाहिए।

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कृषि समुदायों में पहले मृत शरीर को दफनाया जाता था, क्योंकि वे चाहते थे कि उनके पूर्वजों का शरीर जो कि मिट्टी का एक टुकड़ा है, उस मिट्टी में वापस जाए जिसने उन्हें पोषण दिया था। आज लोग खाने की सामग्री दुकान से खरीदते हैं और नहीं जानते कि यह कहां से आता है, इसलिए, अब दफनाना उचित नहीं है। पहले के जमाने में जब लोगों के पास अपनी जमीन थी तब शव को दफनाने से पहले हमेशा शव पर नमक और हल्दी लगाते थे ताकि वह जल्दी मिट्टी में मिल जाए।

दफनाने से ज्यादा अच्छा दाह संस्कार को माना जाता है, क्योंकि यह अध्याय को बंद कर देता है। आपने देखा होगा कि जब परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है तो लोग बिलख-बिलख कर रोते हैं लेकिन जैसी ही दाह-संस्कार होता है, वे शांत हो जाते हैं। क्योंकि वो अचानक ही सही लेकिन सच को स्वीकार कर लेते हैं कि अब सब खत्म हो गया मरने वाला व्यक्ति वापस नहीं आ सकता है। दरअसल, कहा जाता है कि जब तक शरीर है लोग भ्रम में रहते हैं कि वे वापस मिल सकते हैं, इसलिए दफनाने की जगह दाह संस्कार को बेहतर माना गया है।

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मृत्यु संस्कार का महत्व 

मृत्यु संस्कार केवल मृत व्यक्ति को उसकी यात्रा में सहायता करने के लिए नहीं होते हैं, वे उन लोगों के लाभ के लिए भी होते हैं जो पीछे छूट जाते हैं। यदि वह मरता हुआ व्यक्ति हमारे चारों ओर बहुत सी अस्त-व्यस्त जीवन छोड़ जाता है तो हमारा जीवन अच्छा नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि भूत आएंगे और पकड़ लेंगे लेकिन यह माहौल को प्रभावित करेगा। यह आसपास के लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करेगा। यह आसपास के जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करेगा। यही कारण है कि दुनिया की हर संस्कृति में मृतकों के लिए अपने-अपने तरह के कर्मकांड होते हैं।  आमतौर पर इसका बहुत कुछ निकट और प्रिय लोगों के कुछ मनोवैज्ञानिक कारकों को व्यवस्थित करने के लिए होता है। एक तरह से उनके पीछे एक निश्चित प्रासंगिकता और विज्ञान भी था। लेकिन, शायद, किसी अन्य संस्कृति में इतने विस्तृत तरीके नहीं हैं जितने भारतीय संस्कृति में है।

 

 

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