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भारत ग्लोबल पीपीई हब बन सकता है, ज्यादा रिसर्च, विकास की जरूरत- रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने हालांकि स्थानीय निर्माताओं और पीपीई कवरऑल्स, पीपीई फैब्रिक और सीम टेप के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की है, फिर भी यह सीम-सीलिंग उपकरण जैसे महत्वपूर्ण कम्पोनेंट के लिए आयात पर निर्भर है। रिपोर्ट मे कहा गया है कि देश को उपकरणों और मशीनरी का भी विकास करना होगा

India TV Paisa Desk Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: October 18, 2020 21:58 IST
भारत बन सकता है पीपीई...- India TV Paisa
Photo:PTI

भारत बन सकता है पीपीई किट निर्माण में अग्रणी

नई दिल्ली| कभी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट की कमी से जूझ रहा भारत आने वाले समय में इसका प्रमुख हब बन सकता है। एक रिपोर्ट में इस संभावना का जिक्र करते हुए कहा गया है कि भारत पीपीई किट के लिए वैश्विक हब बनने की क्षमता रखता है । इंस्टीट्यूट ऑफ कॉम्पिटिटिवनेस की रिपोर्ट बताती है कि भारत ने हालांकि स्थानीय निर्माताओं और पीपीई कवरऑल्स, पीपीई फैब्रिक और सीम टेप के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की है, फिर भी यह सीम-सीलिंग उपकरण जैसे महत्वपूर्ण कम्पोनेंट की खरीद के लिए आयात पर निर्भर है।

इसमें कहा गया कि आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति के लिए एंड-टू-एंड मैन्युफैक्च रिंग वैल्यू चेन पर पूर्ण नियंत्रण रखने और उच्चतम गुणवत्ता वाले पीपीई किट और अन्य आवश्यक मेडिकल आपूर्ति का पूरी तरह से सक्षम निर्माता बनने के लिए, भारत को आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति के साथ महत्वपूर्ण उपकरणों और मशीनरी के उत्पादन को स्वदेशी करने की जरूरत है। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि गुणवत्ता के लिए सुधार की अभी भी जगह है, और इसे सुधारने के लिए अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) प्रयास किए जाने चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उच्च गुणवत्ता वाले पीपीई किट के उत्पादन के लिए वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलने की रणनीति अपना सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू आपूर्ति के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने की भारत की उपलब्धि स्वदेशी उत्पादन के लिए केंद्र सरकार के दबाव का नतीजा थी। भारत को सभी पीपीई निमार्ताओं के बीच मजबूत गुणवत्ता आश्वासन (क्यूए) और गुणवत्ता नियंत्रण (क्यूसी) प्रक्रियाओं को सक्षम करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे निर्मित पीपीई की गुणवत्ता में और अधिक स्थिरता आएगी, डिलीवरी के बाद होने वाले परीक्षण और अस्वीकृति को कम किया जा सकेगा और स्थानीय निमार्ताओं को अपने उत्पादन को न केवल घरेलू बाजारों, बल्कि वैश्विक बाजारों तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी।

इंस्टीट्यूट ऑफ कॉम्पिटिटिवनेस के चेयरमैन अमित कपूर ने कहा, "हमें अपनी मानसिकता को विश्वस्तरीय गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए लागत पर ध्यान केंद्रित करने से दूर करना होगा, अगर हम एक राष्ट्र के रूप में किफायती लागत के साथ उच्च गुणवत्ता वाले पीपीई निमार्ता के रूप में जाना चाहते हैं।" उन्होंने कहा कि स्थानीय रूप से निर्मित पीपीई किट की गुणवत्ता में सुधार के लिए अभी भी जगह है। इसलिए, भारत को गुणवत्ता में सुधार के लिए अनुसंधान और विकास प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। यह निकट भविष्य में वैश्विक बाजार में स्वदेशी पीपीई उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को भी बढ़ाएगा।

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