नई दिल्ली। रियल्टी कंपनी सुपरटेक लिमिटेड (Supertech) ने नोएडा के एमराल्ड कोर्ट हाउसिंग प्रोजेक्ट में अपने दो 40 मंजिला टॉवर्स को ध्वस्त करने के कोर्ट आदेश को रोकने के लिए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इस याचिका में कहा गया है कि उसके पास एक वैकल्पिक योजना है जिसके माध्यम से कई करोड़ रुपये की राशि को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। स्टे ऑर्डर के लिए अपने आवेदन में सुपरटेक ने दावा किया है कि दो में से एक टॉवर के 224 फ्लैट्स – ग्राउंड फ्लोर से लेकर 32वें फ्लोर तक और ग्राउंड फ्लोर पर कम्युनिटी एरिया के साथ- को आंशिक रूप से गिराने से इस स्ट्रक्चर को बिल्डिंग नॉर्म के अनुरूप बनाया जा सकेगा। यदि कोर्ट इस नए प्रस्ताव को स्वीकार करती है, तो कंपनी ने दावा किया है कि वह फायर सेफ्टी और अन्य म्यूनिसीपल नॉर्म्स को एक निश्चित समयावधि में पूरा करेगी।
सुपरटेक ने कहा कि टावर-17 (सेयेन) के दूसरे रिहायशी टॉवर्स के पास होने की वजह से वह विस्फोटकों के माध्यम से इमारत को ध्वस्त नहीं कर सकती है और उसे धीरे-धीरे तोड़ना होगा। कंपनी ने कहा कि प्रस्तावित संशोधनों का अंतर्निहित आधार यह है कि अगर इसकी मंजूरी मिलती है, तो करोड़ों रुपये के संसाधन बर्बाद होने से बच जाएंगे, क्योंकि वह टॉवर टी-16 (एपेक्स) और टॉवर टी-17 (सेयेन) के निर्माण में पहले ही करोड़ों रुपये की सामग्री का इस्तेमाल कर चुकी है। कंपनी ने साथ ही कहा कि वह 31 अगस्त के आदेश की समीक्षा की अपील नहीं कर रही है। इसमें कहा गया है कि टावरों के निर्माण में भारी मात्रा में इस्पात और सीमेंट की खपत हुई है, इसके अलावा मानव श्रम सहित कई अन्य सामग्रियों पर करोड़ों रुपये का खर्च किया गया जो टावरों को पूरी तरह से ध्वस्त करने पर कबाड़ बन जाएंगे और बेकार हो जाएंगे।
याचिका में कहा गया, प्रस्तावित संशोधन पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद होगा क्योंकि स्क्रैप का कोई लाभकारी उपयोग नहीं होगा, उसका बस निपटान करना होगा, टॉवर्स को गिराने से पैदा होने वाले अधिकांश मलबे को केवल लैंडफिल साइट पर फेंकना होगा, जहां पहले से ही काफी बोझ है। यह लैंडफिल साइट की पर्यावरण से जुड़ी मौजूदा समस्याओं को और बढ़ा देगा और इस प्रकार मौजूदा कार्बन फुटप्रिंट (ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा) में और वृद्धि होगी।
कंपनी ने 31 अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले में संशोधन की अपील की है जिसमें न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 11 अप्रैल, 2014 के फैसले में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। उच्च न्यायालय ने भी अपने फैसले में इन दो टावरों को गिराने के निर्देश दिए थे। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि सुपरटेक के 915 फ्लैट और दुकानों वाले 40 मंजिला दो टावरों का निर्माण नोएडा प्राधिकरण के साथ साठगांठ कर किया गया है और उच्च न्यायालय का यह विचार सही था।
पीठ ने कहा था कि दो टावरों को नोएडा प्राधिकरण और विशेषज्ञ एजेंसी की निगरानी में तीन माह के भीतर गिराया जाए और इसका पूरा खर्च सुपरटेक लिमिटेड को उठाना होगा। उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि घर खरीदारों का पूरा पैसा बुकिंग के समय से लेकर 12 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाया जाए। साथ ही रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन को दो टावरों के निर्माण से हुई परेशानी के लिए दो करोड़ रुपये का भुगतान किया जाए।
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