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मोदी सरकार अगली पीढ़ी को कर्ज के बोझ तले नहीं दबने देगी, वित्त मंत्री ने साझा की ये अहम जानकारी

सीतारमण ने कहा कि मौजूदा वैश्विक स्थिति में बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) सहित बहुपक्षीय संस्थान कम प्रभावी हो गए हैं। सीतारमण ने वैश्विक आतंकवाद से उत्पन्न चुनौतियों को भी रेखांकित किया और जोर दिया कि निवेशकों तथा कंपनियों को निवेश संबंधी फैसले करते समय ऐसे कारकों को ध्यान में रखना होगा।

Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published : Oct 20, 2023 17:27 IST, Updated : Oct 20, 2023 17:27 IST
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण- India TV Paisa
Photo:PTI वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

मोदी सरकार अगली पीढ़ी को कर्ज के बोझ तले नहीं दबने देगी। सरकार कर्ज के बोझ को कम करने पर काम कर रही है। ये बातें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार ‘कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन’ 2023 को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि सरकार राजकोषीय घाटे (fiscal deficit) के प्रबंधन के प्रति सचेत है और यह सुनिश्चित करेगी कि कर्ज चुकाने का बोझ अगली पीढ़ी पर न पड़े। उन्होंने कहा कि सरकार कुल कर्ज कम करने के तरीकों पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा, हम देश की वृहत आर्थिक स्थिरता से जुड़े मामलों के प्रति सचेत हैं, जिसका सामना हम राजकोषीय तथा राजकोषीय प्रबंधन fiscal (management) में करते हैं। इसलिए आज हम हर फैसला इस बात के प्रति सतर्क रह कर करते हैं कि इसका अगली पीढ़ी पर क्या बोझ आएगा। 

भारत सरकार के कर्ज के प्रति सचेत 

वित्त मंत्री ने कहा कि फिजूलखर्ची करना और आने वाली पीढ़ियों पर उस कर्ज का बोझ डालना बहुत आसान है, जिसे लेकर आप बैठे रहेंगे। सीतारमण ने कहा, हम भारत सरकार के कर्ज के प्रति सचेत हैं। कई अन्य की तुलना में यह उतना अधिक नहीं है लेकिन फिर भी हम सतर्क रहकर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में किए जा रहे कामों पर गौर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार कुछ उभरते बाजार वाले देशों के कर्ज से संबंधित आंकड़ों पर सक्रिय रूप से नजर रख रही है। साथ ही उनके इससे निपटने के तरीके पर भी गौर कर रही है। सीतारमण ने कहा कि सरकार कर्ज के बोझ को प्रबंधित करने में सफल है क्योंकि भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रयास बहुत अच्छी तरह से सुव्यवस्थित हैं। हालांकि इससे जिम्मेदारी से निपटने की जरूरत है ताकि इसका बोझ आने वाली पीढ़ी पर न पड़े। 

डिजिटल अर्थव्यवस्था से पारदर्शिता आई

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार कर्ज की स्थिति को लेकर सचेत है और उसने यह सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय प्रबंधन किया है कि आने वाली पीढ़ी पर बोझ न पड़े। सीतारमण ने कहा कि डिजिटल अर्थव्यवस्था के जरिए अधिक पारदर्शिता लायी गयी है। नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए डिजिटलीकरण से अधिक शक्तिशाली कोई उपकरण नहीं है। ऐसा नहीं होता तो नागरिक अपनी विकासात्मक आकांक्षाओं को पूरा करने से बहुत दूर रह जाते। साथ ही उन्होंने कहा, जन-धन खाते देश में वित्तीय समावेश लाने का सबसे बड़ा साधन रहे हैं। जब इसे 2014 में शुरू किया गया तो लोगों ने सवाल उठाए थे और कहा था कि ये ‘जीरो बैलेंस’ खाते होंगे जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) पर बोझ होंगे। मंत्री ने कहा कि आज इन जन-धन खातों में कुल दो लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान इन जन-धन खातों के कारण ही गरीब लोगों को उनकी आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार से उनके खातों में पैसे मिले। 

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