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  4. कैसे बनती हैं बनारसी साड़ियां? इस इंडस्ट्री में टेक्नोलॉजी निभा रही बड़ा रोल; हफ्तों का काम घंटों में हो रहा संभव

बनारसी साड़ी तैयार करने में टेक्नोलॉजी निभा रही महत्वपूर्ण भूमिका, हफ्तों का काम घंटों में हो रहा संभव; पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Banarasi Saree Future: बनारस और बनारसी साड़ियों के बारे में आज के समय में हिंदूस्तान और दुनिया के लाखों लोग जानते हैं। आज की स्टोरी में हम बनारस की साड़ी के बनने के तरीके और उसके उद्योग के भविष्य के बारे में समझने की कोशिश करेंगे।

Reported By: Vikash Tiwary @ivikashtiwary
Published : Jun 14, 2023 14:12 IST, Updated : Jun 14, 2023 14:59 IST
How Banarasi Saree Made- India TV Paisa
Photo:FILE How Banarasi Saree Made

Banarasi Silk Saree Industry: बनारस एशिया का सबसे पुराना शहर है। यह बाबा विश्वनाथ के साथ-साथ वहां तैयार की जाने वाली वर्ल्ड फेमस साड़ी को लेकर भी जाना जाता है। बनारस की लगभग एक तिहाई आबादी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से बनारसी साड़ी के कारोबार से अपनी आजीविका चलाती है। पीएम मोदी जबसे वाराणसी के सांसद बने हैं तब से उस शहर की चर्चा दुनियाभर में और अधिक होने लगी है। छोटी से लेकर बड़ी कंपनियां तक अब अपना बिजनेस बनारसी साड़ी के माध्यम से शुरू करने की कोशिश में लगी है। आज के समय में वहां के बुनकर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। उनका कहना है कि बनारस की पारंपरिक साड़ियों के कारोबार पर अब बड़ी कंपनियों की नजर आ टिकी है, जिससे उनके कारोबार पर असर पड़ रहा है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि एक बनारसी साड़ी को तैयार करने में क्या प्रोसेस फॉलो होता है? बुनकर एक साड़ी के लिए कितना चार्ज करते हैं। 

छोटे बुनकरों की कमाई पर पड़ रहा असर

बनारस में कुछ खास जगहों पर साड़ी बुनने का काम होता है। उसमें से एक मैदागिन चौराहे से कुछ दूर आगे जाने पर पीली कोठी नाम का एक जगह पड़ता है। वहां हैंडलूम और पावरलूम की मदद से साड़ी तैयार करने का काम करने वाले इब्राहिम इंडिया टीवी को बताते हैं कि इन दिनों जब से बड़ी बड़ी कंपनियों ने बनारसी साड़ी के कारोबार में हाथ आजमाना शुरू किया है तब से छोटे-छोटे बुनकरों की कमाई पर असर पड़ा है। हाथ से साड़ियों की बुनाई करने में मेहनत और खर्च मशीन की तुलना में अधिक लगता है। यही कारण है कि हाथ से बनी साड़ियों की कीमत अधिक होती है। रेट अधिक होने के चलते ग्राहक मशीन से तैयार की गई साड़ियों को खरीदना अधिक पसंद कर रहे हैं। इससे बिक्री पर असर पड़ रहा है। बड़ी कंपनियां इन्वेस्टमेंट के दम पर विदेशों से मशीन खरीद कर ला रही हैं और कम समय में अधिक प्रोडक्शन को अंजाम दे रही हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, टाइटेन ने रामनगर में हथकरघा उद्योग में बड़ा निवेश किया है। कंपनी ने अंगिका हथकरघा विकास उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड और आदर्श सिल्क बुनकर सहकारी समिति लिमिटेड के साथ समझौता किया है, जिसके तहत प्योर सिल्क और सोने-चांदी की ज़री से बुनी साड़ियों की मैन्युफैक्चरिंग की जानी है। 

Banarasi Silk Saree Industry

Image Source : INDIA TV
साड़ी तैयार करने का काम करने वाले इब्राहिम

टेक्नोलॉजी निभा रही महत्वपूर्ण भूमिका

हाथ से तैयार की जाने वाली साड़ी में एक हफ्ते तक का कम से कम समय लग जाता है बाकि साड़ी के डिजाइन पर समय डिपेंड करता है। किसी साड़ी को बनाने के लिए सबसे पहले उसके धागे को एक खास तरह की लिक्विड की मदद से गर्म पानी में मिलाया जाता है। उसे धागा डाई करना कहते हैं। इस काम में 20 मिनट तक का समय लगता है। डाई करने के बाद जो मटेरियल तैयार होता है उसे ताना और बाना कहते हैं। एक साड़ी का हाथ से डिजाइन तैयार करने में तीन रोज का समय लगता है। एक रोज में 8 घंटे काम होता है। एक साड़ी को डिजाइन करने में हाथ से तीन रोज तो मशीन से 2 घंटे का समय लगता है। इब्राहिम कहते हैं कि चीन से लाई गई इस मशीन से जो काम 3-4 दिन में होता है वह इस मशीन से 2-3 घंटे में हो जाता है। एक दिन में 2-3 साड़ियों का डिजाइन मशीन से तैयार हो जाता है। 

मशीन से साड़ी की डिजाइन तैयार करता बुनकर
Image Source : INDIA TV
मशीन से साड़ी की डिजाइन तैयार करता बुनकर

सबसे पहले धागा डाई किया जाता है। उससे ताना-बाना तैयार होता है, जो अलग-अलग कलर का होता है। उसके बाद साड़ी की डिजाइनिंग होती है। बता दें कि साड़ी की डिजाइनिंग एक खास तरह के कागज पर की जाती है जिसे पत्ता कहते हैं। एक साड़ी की डिजाइनिंग में करीब-करीब 1,000 पत्ते लगते हैं। जब साड़ी डिजाइन का काम पूरा हो जाता है, तब बुनकर साड़ी बुनना शुरू करते हैं। इब्राहिम कहते हैं कि एक साड़ी को हैंडलूम की मदद से बुनने में 8-10 दिन का समय लगता है। अगर यही साड़ियां मशीन से तैयार की जाए तो एक दिन में 2 साड़ी तैयार की जाती है, लेकिन यह ओरिजनल साड़ी नहीं होती है। कई बार किसी-किसी साड़ी को तैयार करने में महीनों लग जाते हैं। एक साड़ी की कीमत 6,00 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक होती है। यह साड़ी पर किए गए वर्क के ऊपर निर्भर करता है। 

Banarasi Silk Saree Industry employee

Image Source : INDIA TV
हाथ से साड़ी की डिजाइन तैयार करता बुनकर

कितना बड़ा है साड़ी का कारोबार?

टेक्नोपार्क की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में साड़ी का कारोबार 1 लाख करोड़ रुपये है। इसमें से उत्तर भारत का हिस्सा 15 हजार करोड़ रुपये के करीब है। इब्राहिम बताते हैं कि साड़ी का कारोबार मुख्य रूप से 25 वर्ष से अधिक की उम्र वाली महिलाओं की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाता है। अगर हम बनारसी साड़ी के कारोबार की बात करें तो यह 3 से 5 हजार करोड़ रुपये के बीच है। इस कारोबार से 10 लाख लोगों की आजीविका चलती है, जिनमें 2.5 लाख के करीब बुनकर शामिल हैं। टेक्नोपार्क का अनुमान है कि 2025 तक उत्तर भारत के साड़ी का कारोबार 6 फीसदी की दर से बढ़ सकता है।

Banarasi Silk Saree Industry

Image Source : INDIA TV
साड़ी की बुनाई करती मशीन
 

बनारसी साड़ी का ये है इतिहास

बनारसी साड़ी का कारोबार मुगलों के समय के साथ चला आ रहा है। कहा जाता है कि इरान, इराक, बुखारा शरीफ से आए कारीगर इस डिजाइन को बुनते थे। मुगल पटका, शेरवानी, पगड़ी, साफा, दुपट्टे, बैड-शीट, और मसन्द पर इस कला का उपयोग करते थे, लेकिन भारत में साड़ी पहनने का चलन था, इसलिए धीरे-धीरे हथकरघा के कारीगरों ने इस डिजाइन को साड़ियों में उतार दिया। बता दें कि इसमें रेशम और जरी के धागों का इस्तेमाल किया जाता है।

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