Tuesday, June 24, 2025
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Costao Review: 24 कैरेट का खरा सोना हैं नवाजुद्दीन सिद्दीकी, लेकिन रियल हीरो की कहानी का खोटा सिक्का है निर्देशन

'कोस्टाओ' जी 5 पर स्ट्रीम हो रही है। फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी लीड रोल में हैं। उन्हें कस्टम अफसर कोस्टाओ फर्नांडिस का रियल लाइफ किरदर निभाते दिखाया गया है। फिल्म की कहानी कैसी है जानने के लिए पढ़ें पूरा रिव्यू।

जया द्विवेदी
Updated : May 01, 2025 8:25 IST
Costao
Photo: INSTAGRAM कोस्टाओ और नवाजुद्दीन।
  • फिल्म रिव्यू: कोस्टाओ
  • स्टार रेटिंग: 3 / 5
  • पर्दे पर: 01.05.2025
  • डायरेक्टर: सेजल शाह
  • शैली: बायोपिक ड्रामा

इस बार नवाजुद्दीन सिद्दीकी एक रियल लाइफ हीरो की कहानी के साथ ओटीटी के पर्दे पर वापसी किए हैं। सच्ची कहानी पर आधारित यह फिल्म गोवा के कस्टम अधिकारी कोस्टाओ फर्नांडीस की जिंदगी बयां कर रही है। 1990 के दशक में सोने की तस्करी की खुलासा करके कोस्टाओ फर्नांडीस ने लोगों का ध्यान खींचा था। देश के प्रति उनके निस्वार्थ भाव को इस फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है। इस कहानी में दर्द, इमोशन, स्टोरी टेलिंग, शानदार अभिनय और एक दमदार शख्सियत का चित्रण है, कमी बस एक ही है, वो है इसका कमजोर निर्देशन, जो 24 कैरेट की कहानी का खोटा सिक्का है। फिल्म की कहानी कैसी है, इसमें क्या शानदार है और क्या खामियां हैं, ये जानने के लिए पढ़े पूरा रिव्यू। 

कहानी

कोस्टाओ फर्नांडिस का मामला एक ऐतिहासिक फैसला था। वह किसी भी तरह से स्वार्थी पति नहीं थे, जैसा कि कई लोग उन्हें मानते हैं, लेकिन वह निश्चित रूप से एक निस्वार्थ कस्टम अधिकारी थे। वह एक एब्सेंट फैदर नहीं थे, बल्कि एक शानदार पिता थे और यही उनकी बड़ी बेटी को भी महसूस हुआ क्योंकि वह उनके तीन बच्चों में से अकेली थी जो पूरी घटना को समझने के थोड़ा काबिल थी। वो अपने पिता की जर्नी को देखते हुए ये समझ सकती थी कि उनके पिता काम के तनाव से कैसे गुजर रहे थे और उनके जीवन की अनिश्चितताओं और उनके परिवार की सुरक्षा के कारण उनकी शादी भी प्रभावित हो रही थी। फिल्म की कहानी शुरू होती है एक छोटी बच्ची से जो कोस्टाओ का नाम लेते हुए उसकी खूबियां बयां करती है और अपने जुड़ाव के बारे में भी बताती है, ये बच्ची नरेटर के रूप में नजर आती है और पूरी कहानी में इसकी आवाज को आधार रखा गया है। यही कहानी की सूत्रधार और कहानीकार है, जो अंत तक आपको जोड़े रखेगी।

कहानी में दिखाया गया है कि कैसे कोस्टाओ फर्नाडिस एक राजनीतिक रूप से जुड़े तस्कर माफिया को पकड़ने के चक्कर में एक मर्डर केस में उलझ जाते हैं। इस माफिया को पकड़ते हुए हाथापाई होती है और खुद को बचाने की कोशिश में वो इस माफिया का खून कर देते हैं, लेकिन ये सब आत्मरक्षा में किया गया था। इसके बाद कहानी लंबे संघर्ष, परिवार के तबाह होने के दृश्यों से गुजरती हुई अदालत और कई कानूनी जांचों से गुजरती है। जहां बारीकियों पर फोकस नहीं किया गया है, लेकिन कॉस्टो की मुश्किलों को सामने लाने का प्रयास किया गया है। ये फिल्म इस लैंडमार्क जजमेंट, केस की पर्तें कैसे खुलीं और जांच के मुख्य बिंदु क्या थे, इस पर फोकस करने से ज्यादा पारिवारित दृष्टिकोण दिखाने के प्रयास में लगी रही, जो इस कहानी ठोस नहीं बना रहे हैं। 

वैसे कहानी में कुछ गंभीर सीन हैं जो मानसिक तनाव को दिखाते हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि एक छोटी बच्ची जिसकी उम्र सिर्फ 8-10 साल होगी, उस पर माता-पिता की लड़ाई का क्या प्रभाव होता है। ये बच्ची अपनी मां के साथ सड़क पर बदसलूकी देखती है, लेकिन समझ नहीं पाती कि इस पर कैसे रिएक्ट करना है। वो अपने पिता को महिलाओं के एक समूह से अदालत के बाहर पिटते हुए देखती है, जिसे वो हमेशा हीरो समझती थी। बच्ची के मन और दिमाग पर लगे आघात को ज्यादा तवज्जो दी गई है, जो कहानी को अलग नजरिया तो दे रही, लेकिन फिल्म को मोटिव से भटका रही है, जो असल में कोस्टाओ की कहानी को पर्दे पर उकेरने और इस लैंडमार्क जजमेंट के किस्से को जगजाहिर करने का था। 

अभिनय

कोई भी अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी को मैच नहीं कर सकता था। इस किरदार के लिए वो परफेक्ट च्वाइस हैं। वह सहज हैं और जानते हैं कि किरदार में कैसे उतरना है। उनके हाव-भाव शानदार हैं। उनकी डायलॉग डिलीवरी में कनविक्शन है। रोमांच, हास्य, दर्द और क्रोध सभी भाव इस फिल्म में नवाजुद्दीन जाहिर करते नजर आ रहे हैं। यही कहा जा सकता है कि बीतती हर फिल्म के साथ उनकी कला में निखार बढ़ता ही जा रहा है। एक्टिंग के प्रति उनकी ईमानदारी और जिम्मेदारी दोनों नजर आती है। ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी किरदारों को घोल कर पी जाते हैं, वो गहरे अध्यन के बाद किसी भी रोल को करते हैं। नवाजुद्दीन ही फिल्म में वो कड़ी हैं जिसकी वजह से इसे एक्स्ट्रा ब्राउनी प्वाइंट्स दिए जाने चाहिए, क्योंकि कहानी कहने की शानदार कोशिश सिर्फ कोशिश ही रह गई है। 

फिल्म में नजर आए बाकी किरदारों में से एक प्रिया बापट नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी के रोल में काबिले तारीफ हैं। उन्होंने अच्छा काम किया है। उनकी एक्टिंग में दम है। उन्होंने सही जगह सही इमोशन्स पर्दे पर दिखाएंगे। पति की फिक्र, बच्चों की चिंता, चेहरे पर डर और अकेले सब संभालने का जज्बा उनकी आंखों में साफ नजर आ रहा है। पीटर के रोल में हुसैन दलाल नजर आए हैं। ये रोल काफी छोटा है, लेकिन इंपैक्टफुल है। सीबीआई अफसर के रोल में गगन देव रियार एक खड़ूस, नीरस और करप्ट अफसर के रोल में परफेक्ट हैं। फिल्म में लीड विलेन डिमेलो के रोल में किशोर कुमार जी नजर आए हैं, जो एक मंझे हुए एक्टर हैं। साउथ की फिल्मों में ये पहले ही छाप छोड़ चुके है। इनको स्क्रीन स्पेस भले ही कम मिला हो, लेकिन क्रूरता जाहिर करने में इन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी है। फिल्म दिखाए गए इंफॉर्मर और साथी कस्टम अफसर नायक का काम भी कहानी को दिशा देते दिखे। इस कहानी में नवाजुद्दीन सिद्दी के बाद किसी का किरदार सबसे अहम रहा तो वो थी फिल्म में नजर आई कोस्टाओ की बेटी, इस रोल को निभाने वाली चाइल्डा आर्टिस्ट ने दिल जीतने वाला काम किया है। उसकी मासूमियत से आप रिलेट कर पाएंगे। 

निर्देशन, स्क्रिप्ट और सिनेमैटोग्राफी

फिल्म का निर्देशन और लेखन दोनों सेजल शाह ने किया है। सेजल ने कहानी को आकार देने की कोशिश जरूर अच्छी और प्रभावी की, लेकिन वो इसे आगे की सही दिशा नहीं दे सकीं। शानदार शुरुआत के बाद भी कहानी बीच में ही भटक गई। 2 घंटे 5 मिनट की इस फिल्म में वो इमोशनल पक्षों पर ही फोकस करती रहीं। अंत में लैंडमार्क जजमेंट कब आया, कैसे आया और इसमें क्या ऐसे पक्ष रहे कि दो बार लोवर कोर्ट और हाई कोर्ट में केस हारने के बाद भी कोस्टाओ सुप्रीम कोर्ट में केस जीते ये नहीं दिखाया गया है। फिल्म में ये भी मिसिंग है कि केस को लेकर क्या रिसर्च हुई, फैसला किस आधार पर दिया गया और क्या कस्टम डिपार्टमेंट ने सोना पकड़ा या फिर कोई ठोस सबूत हाथ लगा जिससे कोस्टाओ बच सके ये भी नहीं बताया गया। माना कि ये केस एक लंबी टाइमलाइट रही होगी, ऐसे में हर पहलू को दिखाना और स्क्रिप्ट में शामिल करना संभव नहीं, लेकिन अहम पक्षों को छोड़ा नहीं जा सकता है। जैसा कि कहा जा रहा है कि ये कास्टाओ की कहानी है तो उनकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ पर बारीकी से फोकस करना जरूरी था, जो कि नहीं हुआ, न फिल्म में प्रोफेशनल लाइफ के हर पहलू को दिखाया गया और न ही पर्सनल लाइफ सटीक तरीके से दिखाई गई। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग दोनों ही अच्छी रही। गोवा की वाइब को इस फिल्म में जोड़ा गया। कैमरा एंगल भी शानदार हैं, जो एक्टर्स के भाव को निखार रहे हैं।  

कैसी है ये फिल्म

कुल मिला कर ये एक ऐसी फिल्म है जिसे आप एक बार जरूर देख सकते हैं। फिल्म की शुरुआत आपके लिए हाई बार सेट कर देगी, लेकिन कहानी का क्लाइमैक्स निराश करेगा। ऐसे में थोड़ा ठगा महसूस हो सकता है, लेकिन इमोशन्स का सही चित्रण और कलाकारों की दमदार एक्टिंग ही इसकी जान है। कहानी में सब्सटैंस खोजने वाले लोगों के लिए ये फिल्म नहीं है, लेकिन जो लोग हार्डकोर इमोशनल जर्नी देखना पसंद करते हैं उन्हें ये काफी पसंद आएगी। इस फिल्म को हम 3 स्टार दे रहे हैं।

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