Friday, July 11, 2025
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Detective Sherdil Review: रहस्य की तलाश में एक थकी हुई कॉमेडी, मर्डर मिस्ट्री के फेर में उलझी दिलजीत दोसांझ की 'डिटेक्टिव शेरदिल'

'डिटेक्टिव शेरदिल' ओटीटी प्लेटफॉर्म जी 5 पर रिलीज हो गई है। दिलजीत दोसांझ की इस सस्पेंस कॉमेडी में क्या कुछ खास है और क्या कमियां हैं, चलिए आपको बताते हैं।

जया द्विवेदी
Published : June 20, 2025 17:04 IST
Detective Sherdil
Photo: INSTAGRAM दिलजीत दोसांझ।
  • फिल्म रिव्यू: डिटेक्टिव शेरदिल
  • स्टार रेटिंग: 2 / 5
  • पर्दे पर: 20/06/2025
  • डायरेक्टर: रवि छाबड़िया
  • शैली: सस्पेंस कॉमेडी

'डिटेक्टिव शेरदिल' एक ऐसी फिल्म है जो रहस्य, हास्य और ग्लैमर को एक साथ परोसने की कोशिश करती है, लेकिन किसी भी स्वाद में गहराई नहीं ला पाती। बुडापेस्ट की खूबसूरत गलियों में बसी यह कहानी एक पर्यटक गाइड की तरह लगती है-चमकदार, आकर्षक, लेकिन भावनात्मक रूप से खोखली। फिल्म में दिलजीत दोसांझ जैसे करिश्माई अभिनेता हैं, एक अमीर आदमी की हत्या, एक रहस्यमयी वसीयत और एक कुत्ते को मिला विरासत का हिस्सा, लेकिन तमाम घटक होते हुए भी यह थ्रिलर सिर्फ सतही रह जाती है। ये सिरीज आज ओटीटी प्लेटफॉर्म जी 5 पर रिलीज हो गई है, जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं। 

शोर में खोया हुआ रहस्य

फिल्म की शुरुआत एक दिलचस्प सेटअप से होती है। अरबपति पंकज भट्टी (बोमन ईरानी) की रहस्यमयी मौत हो जाती है और उसकी वसीयत उसके परिवार को चौंका देती है। संपत्ति बेटी के बॉयफ्रेंड और परिवार के कुत्ते को मिलती है। यही से एक हास्यास्पद दौड़ शुरू होती है जिसमें धोखे, लालच और हत्या का जाल है। यह एक बेहतरीन ब्लैक कॉमेडी हो सकती थी। लेकिन फिल्म जल्दबाज़ी में अपने ही रहस्य को निगल जाती है। हर सीन इतना तेज, इतना ऊंचे सुर में पेश किया गया है कि दर्शकों को ठहर कर सोचने का मौका ही नहीं मिलता कि आखिर किसे क्या मिला, किसकी मंशा क्या थी और हत्यारा कौन है?

दिलजीत दोसांझ का बेमेल प्रदर्शन

फिल्म की आत्मा, शेरदिल नाम का जासूस है, जिसे निभा रहे हैं दिलजीत दोसांझ। दिलजीत में एक स्वाभाविक आकर्षण और हास्य है, लेकिन यहां उनका किरदार एक ऐसी नौटंकी में बदल जाता है जो थका देने वाली है। शेरदिल किसी बच्चों के नाटक से निकलकर सीधे एक व्यस्क थ्रिलर में आ गया लगता है और वहीं फंस गया है। हर डायलॉग ज़्यादा चिल्लाकर बोला गया है, हर एक्सप्रेशन जरूरत से ज़्यादा बढ़ाया गया है और हर दृश्य ऐसा लगता है मानो कॉमिक बुक के पन्नों से निकला हो। सबसे ज्यादा खटकती है फिल्म की “सिग्नेचर स्टाइल” सिरीयस सीन में हारमोनिका बजाना। यह तकनीक न तो मजेदार है, न ही प्रतीकात्मक, यह केवल फिल्म के भ्रम को और गहरा करती है।

सहायक कलाकारों की कोशिशें

जहां मुख्य किरदार भ्रमित है, वहीं सहायक कलाकार कुछ स्थिरता लाने की कोशिश करते हैं। डायना पेंटी नताशा की भूमिका में पेशेवर और संतुलित दिखती हैं, जो शेरदिल की हरकतों के बीच फिल्म को सीरीयस भाव देती हैं। बोमन ईरानी और रत्ना पाठक शाह अपने सीमित दृश्यों में भी गरिमा और सूक्ष्मता लेकर आते हैं। सुमित व्यास और बनिता संधू भी ठीक-ठाक काम करते हैं, लेकिन कोई खास छाप नहीं छोड़ते। अर्जुन तंवर, जो पुरवाक के किरदार में हैं, एकमात्र ऐसे कलाकार हैं जो वाकई सादगी और संतुलन के साथ नजर आते हैं। उनके दृश्य इस पागलपन में थोड़ी शांति जैसे लगते हैं।

मूल समस्या: टोन की अस्थिरता

'डिटेक्टिव शेरदिल' की सबसे बड़ी कमी उसकी टोन में है। यह तय ही नहीं कर पाती कि यह एक पैरोडी है या एक सच्ची मर्डर मिस्ट्री। एक पल यह खुद को अगाथा क्रिस्टी की परंपरा में खड़ा करने की कोशिश करती है और अगले ही पल खुद को गिरा देती है किसी हल्की-फुल्की, जबरदस्ती हंसाने वाली कॉमेडी के स्तर पर। फिल्म शुरुआत में ही शेरलॉक होम्स, ब्योमकेश बक्शी और करमचंद जैसे प्रसिद्ध जासूसों का जिक्र कर बैठती है, जैसे खुद को उन्हीं की श्रेणी में रखना चाहती हो, लेकिन फिर वो कुछ भी ऐसा नहीं करती जो इस दावे को साबित कर सके।

निर्देशन और लेखन 

एक अच्छी रहस्य-फिल्म का सबसे अहम हिस्सा होता है—रहस्य। लेकिन यहां हर दृश्य इतना तेज, चटख और बेतरतीब है कि आप भूल जाते हैं कि हत्या भी हुई थी। क्लू तो हैं, लेकिन उन्हें देखने, समझने और जोड़ने का कोई मौका नहीं दिया गया है। हर सीन मानो अगले मजाक की प्रतीक्षा में भाग रहा हो। दर्शक हँसी के बजाय हैरानी से देखते हैं—कि ये हो क्या रहा है? फिल्म का निर्देशन सतही है और लेखन जैसे हर आइडिया को बिना परखे ही स्क्रिप्ट में शामिल कर लिया गया हो। डायलॉग्स में आत्म-व्यंग्य की थोड़ी झलक है, लेकिन उनमें वह चतुराई नहीं है जो शैली के साथ खिलवाड़ कर सके।

निष्कर्ष: एक बेहतर स्क्रिप्ट का हकदार किरदार

‘डिटेक्टिव शेरदिल’ एक दिलचस्प किरदार के बीज के साथ शुरू होती है, लेकिन उसे इतनी अव्यवस्था में उलझा देती है कि कोई जड़ ही नहीं जमती। फिल्म में हास्य है, रहस्य है, खूबसूरत लोकेशन है, लेकिन यह सब मिलकर एक संतुलित अनुभव नहीं बन पाते। यह एक ऐसे प्रोजेक्ट की तरह लगती है जिसे केवल तेज, रंगीन और अराजक बनाने की कोशिश की गई, गहराई और प्रभाव की कीमत पर। 'डिटेक्टिव शेरदिल' में दिल है, अंदाज है, और ढेर सारा शोर, लेकिन अगर आप किसी मजेदार, चतुर और दिलचस्प मर्डर मिस्ट्री की उम्मीद कर रहे हैं तो यह फिल्म उस उम्मीद के आसपास भी नहीं पहुंचती। शेरदिल को एक बेहतर केस और उससे भी बेहतर निर्देशन की सख्त जरूरत थी।

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