Monday, May 12, 2025
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ग्राउंड जीरो रिव्यू: सही समय पर आई है इमरान हाशमी की फिल्म, गुमनाम हीरो को मिली पहचान

इमरान हाशमी की फिल्म ग्राउंड जीरो, एक वास्तविक घटना पर आधारित है। ये आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म देखने से पहले इसका पूरा रिव्यू पढ़ने के लिए स्क्रॉल करें।

साक्षी वर्मा
Published : April 25, 2025 14:38 IST
Emraan hashmi
Photo: INSTAGRAM इमरान हाशमी।
  • फिल्म रिव्यू: ग्राउंड जीरो
  • स्टार रेटिंग: 3 / 5
  • पर्दे पर: 25.04.2025
  • डायरेक्टर: तेजस प्रभा, विजय देउस्कर
  • शैली: एक्शन

इमरान हाशमी दो साल बाद बड़े पर्दे पर वापस आ गए हैं। सलमान खान की 'टाइगर 3' (2023) में खलनायक की भूमिका निभाने के बाद अभिनेता अब 'ग्राउंड जीरो' में सीमा सुरक्षा बल (BSF) अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं। यह शायद उन कुछ बॉलीवुड फिल्मों में से एक है जो सही समय पर रिलीज हुई हैं। पहललगाम आतंकवादी हमले को लेकर पूरे देश में गुस्सा है, ग्राउंड जीरो एक 'सही समय, सही जगह' वाली फिल्म है जो लोगों को इतिहास को दोहराने के लिए मजबूर कर देगी। एक वास्तविक जीवन की घटना पर आधारित और कश्मीर की धरती पर शूट की गई, इमरान हाशमी की यह फिल्म अब लोगों को और भी ज्यादा पसंद आएगी।

कहानी

कहानी अगस्त 2001 में श्रीनगर से शुरू होती है, जहां एक कश्मीरी आतंकवादी को बंदूक थमाते और युवा लड़कों को बरगलाते हुए देखा जा सकता है। ये गरीब कश्मीरी लड़के पैसे और अपने परिवारों की सुरक्षा के लालच में अपने हाथों में बंदूकें उठा लेते हैं। बाद में लगभग 70 सैनिकों को इन बंदूकधारी गिरोहों द्वारा सिर के पीछे गोली मारकर कायरतापूर्वक मार दिया जाता है, जब तक कि BSF अधिकारी नरेंद्र नाथ धर दुबे (इमरान हाशमी) एक ऑपरेशन के बाद शहर में वापस नहीं आ जाता। जब नरेंद्र एक आईबी अधिकारी के साथ गाजी बाबा को लगभग पकड़ लेता है तो उसे पता चलता है कि 2001 में दिल्ली संसद पर हमले और 2002 में गुजरात के गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर पर हमले के पीछे गाजी ही था।

दूसरे भाग में फिल्म और भी गंभीर हो जाती है। हालांकि एक चीज जो पूरी फिल्म में कम नहीं पड़ता वह है नरेंद्र का दृढ़ संकल्प और उनकी टीम का उन पर विश्वास। कुछ करीबी लोगों को खोने और एक आतंकवादी हमले के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद BSF अधिकारी अपराधी को पकड़ लेता है। 7 गोलियों का सामना करने के बावजूद नरेंद्र आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद का सफाया करने और गाजी बाबा को खत्म करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण मिशन पूरा करता है।

लेखन और निर्देशन

ग्राउंड जीरो कश्मीर में तैनात किसी भी सैनिक के दृढ़ संकल्प और साहस को सलाम है। चलिए मान लेते हैं, एक ऐसी जगह जहां सेना के जवानों पर पत्थर फेंके जाते हैं और आतंकवाद अपने चरम पर होता है, वहां कभी-कभी जोश कम पड़ सकता है। लेकिन इसके बावजूद हमारे सैनिक न केवल अपनी आखिरी सांस तक युद्ध लड़ते हैं, बल्कि हमारे इतिहास की किताबों में भी अज्ञात या अस्वीकृत रहते हैं। लेकिन कुछ फिल्मों की तरह ग्राउंड जीरो भी लोगों को एक गुमनाम नायक की भूमिका के बारे में बताती है, जो हमारी ओर से हर तरह की मान्यता का हकदार है। फिल्म घटनाओं की एक श्रृंखला का अनुसरण करती है, जिन्हें बहुत अच्छे तरीके से क्रम में रखा गया है। फिल्म में कश्मीरी लहजे और लोकेशन दोनों का खूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा यह आपको अंत तक बांधे रखती है।

लेकिन समस्या संवादों में है! देशभक्ति वाली फिल्मों में रोंगटे खड़े कर देने वाले संवाद और आपकी आंखों में आंसू ला देने वाले गाने डालने की सबसे ज़्यादा जरूरत होती है। लेकिन ग्राउंड जीरो दोनों ही करने में विफल है। फिल्म में सिर्फ एक संवाद है, जो फर्क पैदा करेगा। 'पहरेदारी बहुत हो गई अब प्रहार होगा', यह फिल्म में एकमात्र सही समय पर कही गई लाइन है। इसके अलावा यह शायद इमरान हाशमी की पहली फिल्म होगी जिसमें ऐसा कोई गाना नहीं है जिसे आप थिएटर से बाहर निकलने के बाद याद रख सकें। इसके अलावा 'ग्राउंड जीरो' में कुछ ब्रेक हैं जिन्हें टाला जा सकता था।

अभिनय

ग्राउंड जीरो एक ऐसी फिल्म है जिसमें कोई भी अभिनेता ऐसा नहीं है जो भूमिका के लिए अनुपयुक्त हो। चाहे वह छोटा हो या बड़ा, प्रत्येक अभिनेता ने अपना काम बखूबी किया है और पूरी टीम का नेतृत्व इमरान हाशमी ने किया है, जो हमेशा की तरह किरदार में पूरी तरह से ढले हुए हैं। बॉलीवुड अभिनेता को बाधाओं को तोड़ते हुए और अलग-अलग भूमिकाएं निभाते हुए देखना वाकई राहत की बात है। 'टाइगर 3', 'ऐ वतन मेरे वतन' और अब 'ग्राउंड जीरो' के साथ 'किसर मैन' के रूप में टाइपकास्ट हुए इमरान वह सब कुछ कर रहे हैं जो एक सिनेप्रेमी उनसे उम्मीद करता है। अभिनेता फिल्म में स्वाभाविक है और जोया हुसैन ने उनका अच्छा साथ दिया है। हालांकि, इमरान की ऑन-स्क्रीन पत्नी, सई तम्हाणकर अप्रभावी हैं। ऑनस्क्रीन पति-पत्नी और 3 बच्चों के माता-पिता के बीच बिल्कुल भी ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री नहीं है।

फैसला

ग्राउंड जीरो कुल मिलाकर एक अच्छी फिल्म है जिसमें कई उतार-चढ़ाव हैं। यह फिल्म कश्मीरी दृष्टिकोण को सामने लाती है जिसकी वर्तमान परिदृश्य में बहुत जरूरत है और यह इस समय वास्तविक रूप से जले हुए दिलों को सांत्वना भी प्रदान करेगी। एक प्रामाणिक चित्रण और अच्छे निर्देशन के साथ, यह फिल्म 5 में से 3 स्टार की हकदार है।

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